गुरुवार, 31 दिसंबर 2009

गए रहंव मैं छुट्टी मा लउटे हौं अभीच्चे

छब्बीस ले लेके अभी तक 
रेलगाड़ी के धक्का खाएन 
खोलेन घर के दुआरी, लागिस 
लउट के बुद्धू घर आयेन
कहाँ गे हमर चैत के अंजोरी के परवां

एला कैसे हमन भुलाएन 
अब्बड नाचत कूदत भैया 
१ जनवरी के नवा साल मनायेन
खैर, जनता के मांग 
फेर जम्मो झन ल दू हज़ार दस के 
गाडा भर बधाई अउ जय जोहार

4 टिप्‍पणियां:

  1. वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाने का संकल्प लें और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

    - यही हिंदी चिट्ठाजगत और हिन्दी की सच्ची सेवा है।-

    नववर्ष की बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ!

    समीर लाल
    उड़न तश्तरी

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  2. दु 10 चकिया डम्फ़र भर के बधई भेजे हंव, खाली करवा लेहु। अउ ये दे नवा साल आगे, बने बधई झोंकौ।

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  3. बडे भाई को प्रणाम अउ नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाये.
    सुख आये जन के जीवन मे यत्न विधायक हो
    सब के हित मे बन्धु! वर्ष यह मंगलदयक हो.

    (अजीत जोगी की कविता के अंश)

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  4. काबर धक्का खाये रहेस भैया ..रिझर्भेसन नही रहीस का?

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