रविवार, 17 जनवरी 2010

ब्लॉग के उन्चासवां पोस्ट ब्लॉगर मित्र के नाम

अब एक बात मन मा बहुत बुद बुदावत हे. अचानक रामायण के सुन्दरकाण्ड के  ये दोहा याद आवत हे.  प्रसंग आय सीता मई ल खोजे बर लंका आये अउ रावन के दरबार म खड़े हनुमान जी के पूछी मा आगी लगा दे जाथे अउ ओही समय भगवान के प्रेरणा से उन्चासों पवन  जम के चले लागथे जउन  ल दोहा के रूप म लिखे गे हे ...  "हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास. अट्टहास करि गरजा कपि बढ़ी लागि अकास". ओइसने  मोला ब्लॉग म घुसरे के प्रेरणा जम्मो ब्लॉगर मित्र, जेमा जोजियावत रहे वाले संजीव ललित अउ शरद भाई आय, से मिलिस अउ एही कारन हे के उनचासवां  पोस्ट लिखत हंव. ये हा इन्खरे  बर आय;
१.  संजीव  ललित  तव प्रेरणा लिखा पोस्ट उनचास
    ऊर्जा बीच में भरत रह्यो भाई ललित, शरद कोकास
२. ब्लॉगर बैठकी बुलाई के जगा गयो मन में आस 
    चल पाएगी लेखनी, भले कर पाऊं न कुछ ख़ास 
तो भैया इसी आशा के साथ तनि लिखने की सनक चढ़ी हुई  है. बस आप लोगों का आशीर्वाद और प्रोत्साहन की जरूरत है.
सभी  टिपण्णी(प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष) के माध्यम से हौसला आफजाई करने वाले समस्त ब्लॉगर मित्रों  का भी शुक्रिया अदा करना चाहूँगा.

शुभ रात्रि ..........
जय जोहार

4 टिप्‍पणियां:

  1. रावन के लंका जरिस,
    ता पवन चले उनचास।
    राम जी करिस सहाय,
    ता पोस्ट हुईस पचास॥

    बधाई होय सुरुजकांत जी

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  2. भईया सुर्यकांत के आगे पोस्ट उनचास

    बधाई हमर झोक लव कहत संजीव दास.
    अइनहे तुम लिखते रहव मन म धर के आस

    उमड घुमड बरसत रहव बन के ब्लागर खास.

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