शनिवार, 10 अप्रैल 2010

अंग्रेजियत है कूट कूट के भरा, हिंदी का है क्या भी काम

श्री राम जयराम जय जय राम. अंग्रेजों के थे हम गुलाम
अंग्रेजियत है कूट कूट के भरा, हिंदी का है क्या भी काम
हिंदी है देश कि "राष्ट्र भाषा'' काम काज की "राज भाषा"
जो "हिंदी दिवस"  मनाने आता काम
चाहे कितना भी हम हिंदी के प्रयोग के बारे में बतिया लें, पर अमल में लाना कठिन है. कानून की दृष्टि से, विज्ञान व तकनालोजी  की दृष्टि से,  विश्व में प्रचलित सर्वमान्य भाषा की दृष्टि से, और सबसे बड़ी बात बेरोजगारों को रोजगार या कहें नौकरी दिलाने की दृष्टि से हिंदी भाषा का प्रयोग सहायक सिद्ध नहीं होता. वजह साफ़ है इसे अनिवार्य बनाने की प्रतिबद्धता किसी के भी शासन काल में नहीं देखने को मिली है.  और तो और हम अंग्रेजी चाल चलन को अभी तक अपनाए हुए हैं चाहे वह शिक्षण संस्थान हो या अदालत हो या शासकीय कार्यालय. लोग धीरे धीरे परिवर्तन लाने की सोच रहे हैं.  आज अखबार पढ़ रहे थे "नव-भारत" लिख़ा था अब दीक्षांत समारोह में उपाधि अलंकरण में गाउन का प्रयोग नहीं किया जावेगा और जिसकी शुरुवात गुरुघासीदास विश्व विद्यालय के सम्माननीय कुलपति महोदय द्वारा की गयी है. प्रशंसनीय व अनुकरणीय प्रयास. पूरे भारत में यदि ऐसा हो तो सचमुच यह देश में अपनी विशिष्टता कायम रखने में कामयाब होगा.  आइये अंग्रेजी में शेखी बघारने में नहीं, अपनी राष्ट्रभाषा को समूचे विश्व में सम्मान दिलाने  का  प्रयास करें और बोलचाल के साथ साथ काम काज में भी धड़ल्ले से हिंदी भाषा का ही प्रयोग कर गौरवान्वित हों. 
जय हिंद ........ जय जोहार.

2 टिप्‍पणियां:

  1. sahi kaha sir...yahan software industry me din bhar bas english ka hi istmaal karta hun...:(

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  2. अपनी राष्ट्रभाषा को समूचे विश्व में सम्मान दिलाने का प्रयास करें

    -मुहिम में हम आपके साथ हैं.

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