रविवार, 9 मई 2010

मातृ-दिवस

माता के नाम का "दिवस" मना साबित क्या हम करते हैं 
एक ही दिन निभा औपचारिकता,  खुशी का अभिनय क्यों हम  करते हैं
है पृथ्वी से भी ज्यादा गौरव माता का, कौन नहीं यह जानता 
माता है सदैव वन्दिता,  क्यों  कोई नहीं यह मानता 
साया माँ का  हट चुका है सर से, चेहरा तक है याद नहीं   
अगले जनम में पा लूं  तुझे  माँ, प्रभु से करता हूँ फ़रियाद यही 
माँ तुझे कोटि कोटि प्रणाम! तेरे आशीर्वाद से  तेरा यह बेटा तेरे पोती पोते के साथ खुश है 
और प्रार्थना करता है तू जहाँ भी है, तू भी खुश रहे ...............    

8 टिप्‍पणियां:

  1. माता है सदैव वन्दिता, क्यों कोई नहीं यह मानता
    साया माँ का हट चुका है सर से, चेहरा तक है याद नहीं
    अगले जनम में पा लूं तुझे माँ, प्रभु से करता हूँ फ़रियाद यही

    बहुत सुन्दर.....!!

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  2. आज के दिन माँ को इस से अच्छी श्रधांजलि हो ही नहीं सकती
    सच लिखा है आपने

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  3. मेरी माँ...


    कैसी है आरजू ये, मेरी
    कैसी है प्यासे मन की तमन्ना ,

    आज फिर से आँचल में उसकी
    छिप जाने का मन करता है
    माँ के आँचल के लिए आज
    फिर मन ललचा है.....


    इस दुनिया की भीड़ में
    हया में छुपाती वो नाजनीन
    अपने नवजीवन पर
    स्नेह - सुधा बरसाती है |
    माँ की ममतामय गोद में,बैठा शिशु,
    सहजता वह पाता है |



    घर आँगन की वो सौंधी खुशबु
    माँ को तंग करना....भाग जाना ..छिप जाना
    और माँ का हमको परदे ..कभी पंलग के
    नीचे से खींच के बाहर ले आना
    नींद आने पे गोद अपनी
    देकर हमको थपथपाना
    जागती आँखों में भी उसकी
    ममता का ही ख्वाब सजा है

    वो माँ का चूला फूंकना और
    हमको पास बुलाकर गरम गरम रोटी खिलाना
    कभी कभी उसका खुद का भूखे सो जाना
    फिर भी उसके चेहरे पर

    अजीब सा नूर छलकता है

    आज वो बचपन बहुत याद आता है
    मिली है आज जो भी मंजिल
    जिसका हर रास्ता माँ के आँचल से
    गुज़र के आता है
    कैसी है आरजू ये, मेरी कैसी है ये तमन्ना ,
    माँ के आँचल को आज फिर मन ललचा है .....(.anju choudhary ... करनाल)

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  4. अनू जी की रचना का जवाब नही। धन्यवाद! "बस सब कुछ यूँ ही चलते रहता है जब "उत्साह हो ऊर्जा हो हममे और दिल मे हो उमन्ग्। जोश भी हो जश्न भी हो जिद्द हो जीतने की जन्ग"

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