शनिवार, 5 जून 2010

वीरान धरती एवं पेड़ों की लाशें

(1)
सुबह सुबह उठकर 
दौडाता हूँ नजर, अपने घर की 
चार दीवारी के भीतर  सजाये हुए 
हरे भरे बगीचे की ओर
अरे! यहाँ तो मुरझा गये हैं  पेड़, 
हरी हरी दूब सूखी घास हो गई है.
                          पानी नहीं डाला है,दो दिनों से बगीचे में.                       


(2)
प्रातः भ्रमण में निकल पड़ा
 चलते चलते पहुचता हूँ उस जगह
जहाँ हरा भरा घना  जंगल हुआ करता था 
देखता हूँ, धरती तप रही है 
वीरान पड़ी हुई है 
कम से कम पेड़ों की लाशें तो दिख जाती। 


(भाई रेखाएं दिखाई नही पड़ रही हैं मिट गई है)




(3)
देखता हूँ  इस वीरान धरती पर
निश्चित सीमा निर्धारित करती हुई
 चूना पाउडर से लकीरें खींची गई है
 कोई लौह धातु निर्माण का  कारखाना
खोलने जा रहा है
चहुँ ओर फैलेगा काले धुंए का जहर
किन्तु बढती मंहगाई बेरोजगारी में सहायक होगा
शांत करने में भूख की ज्वाला


भूख की तो ज्वाला शांत होनी ही चाहिए किन्तु प्रकृति से खिलवाड़ कर नहीं. कल कारखाने तीव्र गति से खुल रहे हैं. शासन से आदेश होता है, प्रदूषण नियंत्रक यंत्र अवश्य लगाए जाएँ. किन्तु क्या सचमुच लग पाता है. यदि आपने हरी  भरी वादियों वाली जगह को वीरान कर संयंत्र स्थापित कर दिया तो क्या आपने पर्यावरण को बचाए रखने के लिए अनुपूरक कार्य किया है? आखिर पृथ्वी पर तापमान इतना क्यों बढ़ रहा है? सीधी सी  बात है प्रकृति से खिलवाड़. आज विश्व पर्यावरण दिवस है आइये संकल्प लें बाग़ बगीचे न उजाड़ें बल्कि ज्यादा ज्यादा से पेड़  लगायें. केवल लगाएं ही नहीं पर्याप्त देखभाल भी करें.  (ज्यादा तकनीकी ज्ञान नहीं इसमें तस्वीरें सजाने का..... तस्वीरों में घर के सामने का छोटा सा बगीचा , और गूगल से...... साभार.)
जय जोहार............ 

5 टिप्‍पणियां:

  1. bahut achcha sawal uthaya sirji....aaj jarurat hai vikaas hota rahe hone do...par ped mat katne do...1 kate to 10 lagao...ghar me peepal ug aaye to ukhaado mat use kahin aur laga do ya laga rehne do...ped lagana bahut zaruri hai....jay johaar...sundar prastuti...

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  2. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    इसे 06.06.10 की चर्चा मंच (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
    http://charchamanch.blogspot.com/

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