सोमवार, 19 जुलाई 2010

कमान से निकला तीर जुबान से निकले शब्द वापस नही आते

(१)
मनुष्य जन्म लेता है, 
पग रखता है धरती पर 
रिश्ते- नातों  की श्रृंखला में
जुड़ जाती है एक और कड़ी.
(२)
रिश्तों में खटास पैदा होने में नहीं लगती देर 
लगा दिए जाते हैं सगे सम्बन्धियों पर आरोप
कही सुनी बातों को लेकर बिना दरयाप्ति के
या होके  पूर्वाग्रह से ग्रसित
क्या कहें इसे गलती इंसान के  सोच की 
या समय का फेर
हो जाती है कहा सुनी 
खींच जाती है सबंधों के बीच
दरार की रेखा 
सत्य है,  कमान से निकला तीर
जुबान से निकले शब्द वापस नही आते
यह सभी ने है देखा 
(४)
देखता है मुड़कर पीछे
करता है अपने आप से सवाल
बीता वाकया क्या जायज था 
अंतरात्मा से निकलती है आवाज
नही!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
होने लगती है आत्मग्लानि 
झुलस रहा है पश्चाताप की आग में
(५)
पता चलता है इस बात का आरोपित व्यक्ति  को 
तत्पर हो उठता है बढ़ाने को सामीप्य 
मानके उसका कृत्य क्षम्य 
प्रतीक्षा में है  मिलन के बेला की 
ख़त्म होती है इन्तेजार की घड़ियाँ
दिला जाता है आभास जुड़ने वाली
है फिर से ये रिश्ते नातों की कड़ियाँ 
मिलती है नजरें छलक पड़ता है नयनो से नीर
स्वीकारना अपनी गलती हर लेता मन का पीर 
....ईश्वर से प्रार्थना करते हुए, किसी के प्रति किसी के  मन में खटास  नही आनी चाहिए
जय जोहार.....

14 टिप्‍पणियां:

  1. साहेब जोहार ले

    मस्त रहो मस्ती में,आग लगे बस्ती में।

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  2. bahut hi sundar our philosphical poem.....जय जोहार

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  3. हिंदी ब्लॉग लेखकों के लिए खुशखबरी -


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  4. इसमें आपने अपनी पैनी निगाह ख़ूब दौड़ायी है। साधुवाद।
    जय जोहार

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  5. बहुत ही विचारणीय लेख है, इस पर हमें गौर करने की जरूरत है

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