तीन दिनों की बारिश
किसान हुए कहीं खुश
झुग्गी झोपडी के वासिंदों को
क्यों तुने अर्धनग्न किया
(२)
मांग बहुत है पानी की
है यह किसी से छुपा नही
पर यह क्या! तीन दिनों से
हो रही बारिश
जन जीवन हुआ अस्त व्यस्त
बीच बीच में क्यों रुका नहीं
(३)
आया सावन झूम के
बिदा हुआ आषाढ़
जल स्तर थोड़ा बढ़ो गयो
नदी नालों में आयो बाढ़
नदी में आयो बाढ़, उतर जइयो---
प्राकृतिक आपदाओं, भूखमरी,
बेरोजगारी, घोटालों, भ्रष्टाचारों
इनकी बनी रहे जो बाढ़,
क्या करियो भइयो?????
क्या करियो भइयो?????
जय जोहार .......
क्या करियो भईया....
जवाब देंहटाएंबस!
जय जोहार!!
जय हो
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
----- कविता काफी अर्थपूर्ण है, और ज़्यादा समकाली।
जवाब देंहटाएंजय जोहार!!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।जय जोहार!!
जवाब देंहटाएंबडिया है । आभार।
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक और सार्थक लेखन....
जवाब देंहटाएंआप की रचना 30 जुलाई, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
हम तो इतना ही कहेंगे- जय जोहार।
जवाब देंहटाएं…………..
पाँच मुँह वाला नाग?
साइंस ब्लॉगिंग पर 5 दिवसीय कार्यशाला।
इस बात को आपसे बेहतर कौन समझ सकता है ?
जवाब देंहटाएंशुक्रिया !
मंगलवार 3 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ .... आभार
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com/
वाह भैय्या वाह..बहुत रोचक रचना...देर से देखने पर क्षमा...लेकिन क्या खूब लिखा है आपने...बधाई..
जवाब देंहटाएंनीरज