मंगलवार, 2 मार्च 2010

सबै दिन होत न एक समाना.

एक सन्देश एकदम ब्लैंक मसौदे के रूप सहेजा गया था. क्या करूं कुछ ही समय पहले "हॉकी" देख के यहाँ बैठ गया. आज इस ब्लैंक को आज मिली "हार" से भरा जाना था. मन कहने लगा दो दिन पहले ही, मैच देख के खूब हांकी.आज कैसे रह गया  फांकी.  
भाई सबै दिन होत न एक समाना.  
और अब काफी बदल गया है ज़माना
वैसे तो होते सभी एक दूसरे से सवा सेर  हैं (यहाँ वैसे विरोधी ही सवा सेर लग रहे थे)
किसी दिन ज्यादा भूख नहीं होती, तड़पन में हो जाती है कमी
आलस में भी हो जाते ढेर हैं
लेकिन अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है
लेके सबक इस परिणाम से
हो जाओ चुस्त दुरुस्त
आने वाले मैच में कर दो विरोधी को सुस्त
दर्शक मीडिया दोउ से कहें, इनकी करें न टांग खिचाई
मांगे दुआ इनके लिए,
विश्व कप का  हकदार बने अपना देश ही भाई 

   





 

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