बुधवार, 7 अप्रैल 2010

भीषण नर संहार मन हो जाता है खिन्न

  भीषण नर संहार मन हो जाता है खिन्न  
बस खेद प्रकट कर कर   लेते हैं इतिश्री
सारा मीडिया पता कर लेता है ठौर ठिकाना
विज्ञान औ तकनालोजी का  परचम लहराने के बावजूद ,
समझ नहीं आ रही है बात,
ख़ुफ़िया तंत्र का, हमलों के अंदेशों
के बारे में पता न कर पाना
जिससे मारे जाते हैं जाबांज सिपाही बेचारे.
टुकड़ों टुकड़ों में बँटे  हुए ये दुनिया भर के "वादी'
सिद्धांत को ताक में रख तुले हुए हैं,
देश में फ़ैलाने को बर्बादी
कहते हैं भगवान आपके यहाँ देर है
अंधेर नहीं,  पर देख के यह दृश्य
लगता है सुकून है कहीं नहीं
प्रभु अब और देर न कीजिये
हत्यारों के दिल औ दिमाग में बस
इतना भर दीजिये कि कत्ले आम ही
नहीं है समस्या का समाधान
प्रगति के सोपानों की ओर बढकर
कायम रखें अमन चैन
और मिटने न दें अपने वतन की शान
शहीदों को शत शत नमन व उनकी आत्मा की शांति
और उनके परिवारों को ईश्वर इस जघन्य 
घटना से उन पर  टूटे दुःख के पहाड़ से उबरने की 
शक्ति दे, यह  प्रार्थना प्रभु से करते हुए
जय जोहार ............

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