मनखे के तेवर
तेवर मनखे के चढ़ै, सम्हले ना सम्हलाय।
चिटिकुन गलती देख के, नानी याद देवाय।।
भय भीतर माढ़े रथे, तभे उपजथे क्रोध।
जब अंतस मा झांकथे, होथे एकर बोध।।
बड़े बड़े विद्वान के, अलग अलग हे झुंड।
सुधा पान स्नान बर, जघा जघा हे कुंड।।
गुस्सा ले बढ़के कथें, करौ क्षमा के दान।
गलती बर जी डांट दौ, समझ तनिक नादान।।
जय जोहार......
सूर्यकांत गुप्ता
1009 सिंधिया नगर
दुर्ग (छ. ग.)
तेवर मनखे के चढ़ै, सम्हले ना सम्हलाय।
चिटिकुन गलती देख के, नानी याद देवाय।।
भय भीतर माढ़े रथे, तभे उपजथे क्रोध।
जब अंतस मा झांकथे, होथे एकर बोध।।
बड़े बड़े विद्वान के, अलग अलग हे झुंड।
सुधा पान स्नान बर, जघा जघा हे कुंड।।
गुस्सा ले बढ़के कथें, करौ क्षमा के दान।
गलती बर जी डांट दौ, समझ तनिक नादान।।
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