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सोमवार, 23 अगस्त 2010

प्याज चौदह रूपये किलो और आलू दस

मित्रों, आप सभी को सादर नमस्कार!
घर में अभी भी अंतरजाल के तार जुड़े नहीं हैं. बस चंद मिनट के लिए ही सही,  यहाँ कुछ लिखने को मन हुआ, बैठ गया.  साग भाजी खरीदने हमने दिन निश्चित नहीं किया है. कभी भी चले जाते हैं. शनि वार का दिन था पास में ही बाज़ार लगता है, चले गए. परिवर्तित निवास स्थान से बाज़ार नज़दीक है. एक दो दिन के अंतराल में चले जाते हैं. एक दिन फरमाइश हुई सब्जी लाना है. निकल पड़े सब्जी लेने. क्या क्या लाना है यह पूछते नहीं. हाँ घर आते ही जरूर पूछा जाता है क्या क्या लाये. सो घर आते आते हम इस प्रश्न का उत्तर तैयार करने में लग गए. जो सब्जियां खरीदी गईं थीं उन  पर ही. सब्जियों के भाव (प्रति किलो) याद कर लिए थे  ;
प्याज चौदह रूपये किलो
और आलू दस
धनिया मिर्ची टमाटर को न माने सब्जी
तो हम लाये हैं करेला भिन्डी बरबट्टी, बस.
आजकल सब्जियों के भाव के बारे में कुछ कहना ही नहीं है.  कुछ भी 'भाव' नहीं उमड़ रहे.  वजह अब सभी सब्जियां बारहों महीने उपलब्ध हैं उनके अब कुछ भाव रह नही गए हैं. नियत अवधि के पहले (प्री मैच्योर)  ही 'बड़े' हो रहे हैं.
बड़े बनने के चक्कर में सब्जी उत्पादक 
विज्ञान के चमत्कारों से प्रभावित, 
जन साधारण के लिए 'धीमे जहर' का
रासायनिक मिश्रण का इंजेक्शन सब्जी भाजी में लगा  
इनका बचपना छीन रहे हैं और
बना रहे हैं बाज़ार में बिकाऊ 
कह रहे हैं, क्या करना है? रख के अपने
हाड़ मांस को ज्यादा दिन टिकाऊ.
अच्छा है, ऐसे स्लो पॉयजन ले के
पता भी नहीं चलेगा, दिखने लगेगा
ऊपर जाने का रास्ता
मंहगाई की मार से
आतंकी, नक्सली के हथियार से
आजकल प्रचलित  'शिष्टाचार' से
तेरा कभी नहीं पड़ेगा वास्ता.
जय जोहार.........

4 टिप्‍पणियां:

36solutions ने कहा…

महगाई डायन खाये जात हैं ..........

36solutions ने कहा…

सखी संइया तो अड़बड कमात हैं, महगाई डायन खाये जात हैं ......

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सही विचार रख दिया है आपने ...ज्यादा जीना भी किस काम का ..

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

सखी दुनो झिन कमात हे,मंहगाई डायन खाय जात हे।
जोहार ले
बेहतरीन पोस्ट, श्रावणी पर्व की शुभकामनाएं

लांस नायक वेदराम!---(कहानी)