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मंगलवार, 27 मई 2014

कामयाबी और नकामी

कभी भी 'कामयाबी' को दिमाग और 'नकामी' को दिल में जगह नहीं देनी चाहिए। क्योंकि, कामयाबी दिमाग में घमंड और नकामी दिल में मायूसी पैदा करती है।

शुक्रवार, 23 मई 2014

सुशासन

बात सुशासन की करें, समझावें न उपाय
स्व-अनुशासन अमल में कैसे लाया जाय
स्वच्छ रखें सुन्दर रखें घर शहर अरु गांव
तन मन सुंदर होत हैं, रोग पसारे न पांव
जनता के लिये चुनत है, जनता मुखिया कोय
गर काज सही वह करत है, कोइ दुखिया काहे होय
बिनती जनता से करूं, सोचे न केवल स्वार्थ
व्यर्थ कबहुं नहि जात है, किय कारज परमार्थ
जय जोहार

गुरुवार, 22 मई 2014

राष्ट्र की उन्नति में जनता का कितना योगदान


मेरे मन में.यह विचार उमड़ रहा है कि हम यदि राष्ट्र सर्वोपरि मानते हैं, तो हमारा कर्तव्य राष्ट्र की सेवा करना होना चाहिए, किसी भी रूप में. यह सभी जानते हैं ईश्वर ने हमें मानव रूप में भेजकर हमें कितना भाग्यशाली बनाया है ...रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदासजी ने बड़े अच्छे ढंग से समझाया है ...
"बड़े भाग मानुष तन पावा | सुर दुर्लभ सद् ग्रन्थन्हि गावा ||
साधन् धाम मोक्ष कर द्वारा | पाई न जेहिं परलोक सँवारा ||"
इसका अर्थ है मानव  शरीर बड़े ही भाग्य से प्राप्त होता है क्योंकि मानव शरीर पाना देवताओं के लिए भी दुर्लभ होता है अर्थात मानव शरीर के लिए देवता गण भी तरसते रहते हैं - लालायित रहते हैं | ऐसा इसलिए कि मानव शरीर जीव को मोक्ष के दरवाजे तक पहुँचाने के लिए समस्त मोक्ष साधनों का धाम या घर है | इस मानव शरीर को पाकर भी जो मनुष्य अपना परलोक सँवार नहीं लेता यानी अपने जीव का उद्धार तथा मुक्ति-अमरता नही  पा लेता वह वहाँ परलोक में और यहाँ लोक में अपार दु:ख, कष्ट पाता है .
मगर कैसे ?  शायद सबसे पहली सीढ़ी इसकी "परहित सरिस धरम नहि भाई. पर पीड़ा सम नहि अधमाई.." हो.  चलिए परहित को भी थोड़ी देर के लिए गोली मारें. हमारे आस पास यदि कोई ऐसा कार्य है जिसके न करने से न केवल आस पास के निवासियों को, वरन स्वतः  को  भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा हो तो शासन की ओर मुंह ताकने के बजाय हम मुहल्लेवासी ही उसका निराकरण कर लें तो कैसा हो. यदि विरोध हो भी रहा हो अन्यों के द्वारा तो कोई एक व्यक्ति जो उस कठिनाई के निराकरण के लिए किसी काम  को कराने के लिए सक्षम हो तो उसके द्वारा वह काम  करा लिया जाय. और यह तभी संभव हो पायेगा जब थोड़ी देर के लिए दूसरों का नफ़ा नुकसान  भूल जाय.  इस बाबत यह विनिर्दिष्ट करना अनुचित नहीं होगा कि ऐसे कामों के लिए शासन कहें या नगरी निकाय कहें,  जो इन सब चीजों के लिए जनता से "कर" वसूलता है वह यदि किसी व्यक्ति विशेष या जन समूह, जिसके  द्वारा कोई काम  करवाया जाता है, को न केवल वसूले जाने वाले कर भुगतान में छूट प्रदान कर बल्कि कर की राशि में वास्तविक लागत समायोजित करते हुए शेष राशि का भुगतान कर उन्हें प्रोत्साहित करे तो बात ही क्या. मगर यह तब संभव होगा जब कुछ इस तरह के प्रावधान वाले नियम बनाए जांय.  नगर के हर मुहल्लों में सफाई का कार्य, छोटी छोटी सड़कों का  निर्माण का कार्य, नाली सफाई का कार्य इस विधि से कराया जा सकता है .  फिर क्यों ताकना पड़ेगा उन जन्प्रतिनिधियों का मुंह जो केवल चुनाव के समय जन जन के द्वार पर दस्तक देते हैं मगर बाकी समय "जय रामजी की".  हां एक बात और, लोगों में जागृति पैदा करनी होगी कि भैया अब हम मोहल्ले वालों द्वारा ही मोहल्ले की साफ़ सफाई, बिजली पानी की व्यवस्था की जा रही है इसलिए फ़र्ज़ बनता है की इसे बरक़रार रखें. कहीं पर थूक देना, गंदगी करना बर्दाश्त नहीं होगा और ऐसा करते पाए गए तो  सीधे हवालात की सैर करने तैयार रहना . मानता हूँ कि आज बहुतायत में पति पत्नी दोनों अर्थोपार्जन में लगे हैं अतः वे ऐसे कार्यों की निगरानी नहीं कर पायेंगे पर घर में रहने वाले चाहे वे बेरोजगार युवक हों या सेवा निवृत्त बड़े बुजुर्ग  निगरानी में रहने  वाले  अपने आपको इन कार्यों के लिए सहयोग प्रदान कर सकते हैं. बस एक चीज मन से निकालना होगा:  "हटा अपने को क्या लेना देना जिस स्टैण्डर्ड का भी काम हो रहा हो, हमारे घर का काम थोड़े ही है" हो सकता है कुछ इस तरह विकास कार्य का प्रारम्भ
....जय जोहार ......