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शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

शिक्षा और भिक्षा

एक समय था विद्यार्थी गुरुकुल में विद्यार्जन करता था साथ ही साथ भिक्षा मांगने की भी शिक्षा दी जाती थी चूंकि माँ बाप से विमुख रह विशुद्ध ब्रह्मचर्य आश्रम का अनुपालन करते हुए गुरु की शरण में रह विद्या प्राप्त की जाती थी. यह विद्या प्राप्ति का स्थल गुरुकुल कहलाता था. अपने कार्य के लिए समर्पण और गुरु के प्रति श्रद्धा दोनों ही बातें होती थीं.  आजकल जैसे माँ बाप को शुल्क तो देना नहीं होता था अतएव भोजन हेतु अन्न जुटाने के लिए भिक्षा भी मांगनी पड़ती थी विद्यार्थियों को.  समय बीतता गया, स्वरुप बदलता  गया.  शासन द्वारा बच्चों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान करने के लिए पाठशालाएं, विद्यालय महाविद्यालय खोले गए.  अब तो निजी शैक्षणिक संस्थाएं भी बहुत हैं.   दरअसल मैं अपने पुत्र को भारतीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान  प्रवेश-परीक्षा की तैयारी के लिए कोटा भेजा हूँ. उसको छोटी माता निकल आने के कारण उसे वापस भिलाई लाने   गया था. रात में ही भिलाई पहुंचा.  कोटा में  अनेकों प्रशिक्षण संस्थाएं हैं और सालाना शुल्क भी बढ़िया है.  बस एक विचार मन में उमड़ा उमड़ा ही नहीं घुमड़ते रहा. अभी अभी कार्यालय जाने के पूर्व ही सोचा लिख बैठूं. 
प्राथमिक शाला
माध्यमिक विद्यालय
उच्चतर माध्यमिक विद्यालय
महाविद्यालय
बड़े बड़े प्रशिक्षण संस्थान
इन सबकी ओर जरा दीजिये बारीकी से ध्यान
इनके स्तरों के मुताबिक
बच्चों का होता है अध्ययन
शिक्षकों का अध्यापन
स्तर छोटा है; यदि जुड़ा होता है इनके
आगे शासकीय
शिक्षण प्राप्त करना होता है नाटकीय
यहाँ पाते हैं ऐसी शिक्षा
के बन जाते हैं काबिल, कम से कम मांगने को भिक्षा
वहीँ दूसरी ओर
उच्च स्तरीय निजी शिक्षण/प्रशिक्षण संस्थानो में
भेजे जाते हैं बच्चे,
रईसों के बच्चों के लिए तो ठीक है,
मध्यम वर्गीय का होता है हाल बेहाल
नौबत आ जाती है पालकों के मांगने की भिक्षा
                            लेकिन अब घबराने की कोई बात नहीं है;
कर्ज रुपी भीख  देने को तैयार रहता है हर  बैंक
मालूम है आजकल के होनहार बच्चे
साधारण नहीं असाधारण हैं, हां जी असाधारण हैं
जिन्हें कह सकते हैं आप थिंक टैंक
इनके लिए दी गयी भीख यूँ ही बेकार न जायेगी
सूद सहित बैंक में वापस आएगी
यही नहीं थिंक टैंक अपने मकसद पर खरे उतरकर
करेगा नाम रौशन अपने माँ बाप सहित उस बैंक का
ऊंचाई को छूने के लिए जो बना  "पायदान"   उस थिंक टैंक का
जय  जोहार  ..........

सुत बध सुरति कीन्ह पुनि उपजा हृदय बिषाद

"ॐ श्री गणेशाय नमः"  
"ॐ हं हनुमते नमः"
"कपिहि बिलोकि दसानन बिहसा कहि दुर्बाद 
सुत बध सुरति कीन्ह पुनि उपजा हृदय बिषाद" सियावर रामचंद्र भज जय शरणम"
लंका में हनुमान जी अशोक वाटिका उजाड़ दिए. जिन्होंने  रखवाली करते राक्षसों ने) हनुमान जी को फल खाने से रोका 
उन्हें हनुमान जी ने मार गिराया. श्री राम चन्द्र जी के प्रताप से यह सब लीला हो रही है.  यह संकेत है श्री लंका के महाराजाधिराज रावण के लिए के वह अभी भी अपने अहम् का त्याग कर दे. अनेकों योद्धाओं को रावण ने हनुमान से युद्ध कर  उनका वध करने भेजा, यहाँ तक कि अपने पुत्रों को भी. अक्षय कुमार मारा जाता है.  तत्पश्चात मेघनाद को भेजा जाता है,  जिसने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर हनुमान जी को नागपाश से बाँध कर अपने पिता रावण के समक्ष खड़ा किया.  हनुमान जी को देखते ही दुर्वचन कहते हुए रावण हँसता है किन्तु तत्काल पुत्र वध का स्मरण होते ही विषाद में डूब जाता है. उपरोक्त प्रसंग उद्धृत करने के पीछे उद्देश्य यह है कि कोई भी व्यक्ति यदि किसी का नुकसान पहुंचाया हो, भले ही वह बाद में उस नुकसान  के लिए माफी मांग लेता हो, नुकसान को झेले व्यक्ति के लिए वह कभी भी सज्जन नहीं हो सकता. क्षण भर के लिए नुकसान झेले व्यक्ति के मन में उस घटना को याद कर विषाद उत्पन्न होगा ही. 
सियावर रामचंद्र कि जय 
जय जोहार........   

शनिवार, 24 अप्रैल 2010

फर्स्ट आने का सुख


सोचता हूँ यदि जीवन में यदि प्रतिस्पर्धा न हो तो मज़ा ही क्या?  हम सभी सोचते हैं कि हरेक प्रतिस्पर्धा में अपना स्थान पहला हो. चाहे इसे हंसी के रूप में लें या गंभीरता से. एक वाकया लिख रहा हूँ. कल हमारी,  धर्म-पत्नी जो बैंक में वरिष्ठ सहायक के पद पर कार्यरत हैं, बैंक से आयीं और बताने लगीं कतार में खड़े दो व्यक्ति आपस में झगड़ रहे थे कह रहे थे मेरा नंबर पहला है...... ज्यादा बात बढ़ने लगी थी,  माहौल बिगड़े न यह सोच जो वास्तव में पहले खड़ा था, बोला "यार कभी तो फर्स्ट आया हूँ" अब मुझे ही पहले पैसे लेने दो न. बैंक में खड़े सभी ग्राहक और स्टाफ भी हंस पड़े.  जैसा भी हो लगता है उस बेचारे के मन में कहीं न कहीं इस बात का दुःख है........ जय जोहार ........

"जल ही जीवन है"

पड़ रही है कैसी गर्मी 
मर रहे हैं सभी; 
क्या सरकारी, गैर सरकारी
चाहे बंधुआ हो, या हो  
दैनिक वेतन भोगी कर्मी 
पिछले हफ्ते हमने देखा:-
ज्योतिषी हमेशा अपने "भाग्य" का नहीं सोचते 
"ज्योतिष विद्या" के विरोधी इन्हें रहते हैं कोसते 
अखबार के रविवारीय अंक में छपा था 
सभी बारह राशियों पर जल तत्व का प्रभाव 
लिख़ा था "जल व्यर्थ न गंवाएं", फिक्र न करें 
आपके जीवन में नहीं रहेगा सुख सुविधा का अभाव 
सो सीख लें, जल संग्रह करना, 
नहीं तो मर जायेंगे इस भीषण गर्मी में, 
ज्योतिषियों ने बताया नहीं,  ऐसा कभी न कहना
"जल ही जीवन है" आयें इस भीषण गर्मी में
जलने के बजाय, जल बचाएं, राहगीरों को,
प्यासों को जल अवश्य पिलायें  
जय जोहार.............

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

कंप्यूटरवा का मदर बोर्ड बदला

sका बताएं भैया ई कम्प्युटरवा बहुतै परेशान कर रखा है. ऊपर से ऑफिसवा का काम
तनि आज ही ठीक करवाए हैं कंप्यूटर
आप सभी मित्रों को मेरा
जय जय सियाराम
अब इसमें भी माता पिता के वास्ते बोर्ड होता है
ई हमका पता चला जब मेकेनिकवा कहने लगा
ईका मदर बोर्ड खराब हो गया है.  हम कहे
जावो बदल दो, सो बदला है आज ही.
अब करेंगे फिर से लिखना शब्द दुई चार
पहले कर लें आप सभी मित्रों को जय जोहार...............

शनिवार, 17 अप्रैल 2010

घर का भेदी लंका ढाये याने "विभीषण"


घर का भेदी लंका ढाये याने "विभीषण" 
विभीषण था बुरा या अच्छा,
 हो सकता है इस विषय पर विश्लेषण 

                                "ॐ श्री गणेशाय नमः " "ॐ हं हनुमते नमः"
                                  सप्ताह भर बाद पुनः हनुमत स्मरण करते हुए यहाँ उमड़ता हुआ  और दो तीन दिनों से मन में घुमड़ता  हुआ  विचार  प्रस्तुत करने का साहस कर बैठा. पंक्तियाँ ज्यादा नहीं हैं.  विभीषण तो अपने भाई रावण को राज्य,  लंका के हित में व स्वतः रावण के हित में उपयोगी प्रभु श्री राम की भक्ति के लिए कहते हैं और उसके अत्त्याचार को सह नहीं पाने के कारण अपने भाई के वध का कारक बनते हैं. चूंकि विभीषण अपने सगे भाई के हत्यारे के रूप में देखे जाते हैं इसलिए आज दैनिक जीवन में इस तरह के पात्र के लिए उपमा बन गए हैं.  
                                     मुझे अपने सह-यात्रियों के बीच चल रही चर्चा का स्मरण हो आया.  चर्चा के दौरान बात निकल पड़ी कि हम हर वर्ष  राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र  दिवस के अवसर पर राजधानी दिल्ली में जो सुरक्षा मिसाइलों का प्रदर्शन करते हैं और उसकी मारक क्षमता का जो जिक्र करते हैं, जैसा कि पूरे चैनल में इसका प्रसारण करते हैं, क्या इसका परिणाम यह नहीं हो सकता कि कोई विरोधी देश या विरोधी भले न हो  कोई भी देश अपनी ताक़त मजबूत करने के लिए इससे भी अधिक मारक क्षमता का शस्त्र बनाने में लग जाएगा?  संक्षिप्त में क्या   देश की  रक्षा से सम्बंधित अपनी कोई भी योजना हो उसे गुप्त नहीं रखा जा सकता?  बातें लीक होने लगी हैं.  घोटाले उजागर भर होते हैं.  सारे मीडिया चेनलों में सप्ताह भर ऐसे समाचार छाये रहते हैं,    धीरे धीरे  फिर सब कुछ सामान्य.  बनिस्बत इसके क्यों न घोटालेबाजों पर यथोचित  कार्रवाई की जाती ?  ऐसे उजागर होते सन्देश विश्व में भारत  की छवि को क्या धक्का नहीं पहुंचाते?  अभी जो भी हों देश के भीतर ही घुसपैठ जमाये हुए राज्यों को तहस नहस करने वाले अनेकों प्रकार के "वादी" (नक्सलवादी, माओवादी, आतंकवादी ...) वालों को भी राज्य की सुरक्षा व्यवस्था के बारे में जानकारी देने वाले कम नहीं होंगे. अतः ऐसे लोग भी "विभीषण" कहलाने योग्य माने जायेंगे.  पर ये नाम के ही विभीषण होंगे ...... विभीषण से तुलना करना व्यर्थ है .  ये तो अपने देश को ही विनाश के गर्त में धकेलने वाले हैं.  
चलिए जनता तो बोलते रहेगी और अंत में "कोऊ नृप होय हमै का हानी" कहते हुए जिन्दगी चलने देगी. 
सभी मित्रों को जय जोहार .........
                   

शनिवार, 10 अप्रैल 2010

ॐ हं हनुमते नमः


                                             "ॐ श्रीगणेशाय नमः" 
                                               ॐ हं हनुमते नमः
 
आज शनिवार है कहते हैं हनुमान जी की आराधना का दिन है, कारण शनि देव हनुमत कृपा वालों को ज्यादा परेशान नहीं करते.  श्रीरामचरित मानस की महत्ता इस बात से जग जाहिर है की यह  ग्रन्थ प्रायः हिन्दू समुदाय के हर मानस के घर रखा पायेंगे.  मैं भी सुन्दर काण्ड का पाठ समय समय पर कर लेता हूँ,  याद आ रहा है प्रसंग: प्रभु श्री राम  चन्द्र  जी का "जड़" (समुद्र सोखने का प्रसंग)  के प्रति भी प्रेम का उदाहरण.  श्री रामचंद्र जी के समक्ष  समुद्र कहाँ  लगता है,  पर सर्वप्रथम श्रीरामचन्द्र जी समुद्र सोखने के लिए "विनय" की नीति अपनाते हैं न कि बलपूर्वक अग्निबाण से सोखने की.  चूंकि सागर 'जड़" है बुद्धि भले हो सकती है इनमे विवेक का आभाव है, इसीलिए जड़ भी हठ करने लगता है, सोच यह हो जाती है कि आज जरूरत श्रीराम चंद्रजी को है समुन्द्र पार कर सेना लंका ले जाने की (गरज उनकी है)   उसका व्यवहार अत्यंत कठोर हो जाता है. विनय का कोई प्रभाव नहीं पड़ता; 
"विनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीति
बोले राम सकोप तब भय बिन होय न प्रीति" (दोहा क्रमांक ५७) 
स्वाभाविक है क्रोध आएगा ही. प्रभु कहते हैं ---- बिना भय के प्रीति नहीं होती.  जिसे प्रचलित भाषा में कहते हैं-- लातों के भूत बातों से नहीं मानते.  लक्षमण जी से धनुष बाण मंगवाते हैं. यहीं पर मनुष्य के स्वभाव को उद्धृत करते हुए भगवान् राम के द्वारा किये गए  इस संकेत को कि  स्वभाव अनुसार मनुष्य  पर किन किन बातों का असर नहीं होता,  सहज ढंग से गोस्वामी तुलसीदास जी ने चित्रित किया है 
लछिमन बान सरासन आनू. सौ सौ बारिधि बिसिख कृसानू.
सठ सन विनय कुटिल सन प्रीती. सहज कृपन सन सुन्दर नीती. (१)
ममता रत सन ज्ञान कहानी. अति लोभी सन बिरति बखानी.    (२)
क्रोधिहि सम कामिहि हरि कथा. ऊसर बीज बये फल जथा. 
मूर्ख से विनय, कुटिल के साथ प्रीति, स्वाभाविक कंजूस से सुन्दर नीति (उदारता का उपदेश) ममता में फंसे हुए मनुष्य से ज्ञान की कथा, अत्यंत लोभी से वैराग्य का वर्णन, क्रोधी से शम (शांति की बात) और कामी से भगवान् की कथा, इनका वैसा ही फल होता है जैसे ऊसर में बीज बोने से होता है अर्थात सब व्यर्थ.  
                 यहाँ पर इन बातों को लिखने वाले का कतई यह अभिप्राय नहीं है कि वह प्रवचन करने बैठ गया अथवा किसी विशेष धर्म ग्रन्थ का अंधानुकरण करने वाला हूँ. या यूँ कहें कि इस पर टीका करने बैठ गया. ऐसा कुछ भी नहीं है. बड़े बड़े विद्वदजनों को सादर प्रणाम करता हूँ. यह तो इस ग्रन्थ को पढ़कर मात्र शाब्दिक अर्थ को समझकर मन में उत्पन्न हुए भावों  का प्रकटीकरण है. भाई हित अनहित तो अपने अपने दर्शन के अनुसार आँका जाता है. जैसे वाद विवाद प्रतियोगिता होती है तो पक्ष वाले किसी विषय पर अच्छाइयां ढूंढकर अपना तर्क प्रस्तुत करते हैं तो विरोध में बोलने वाले बुराइयों को प्रतिपादित करने में लग जाते हैं. यहाँ वाद विवाद की बात नहीं है.  किसी भी धर्म, सम्प्रदाय का हो उनके ग्रंथों में लिखी जनहित की बातों को, अच्छाइयों को जरूर अपनाना चाहिए, उनका सम्मान करना चाहिए बजाय इसके कि खोद खोद कर बुराइयां ढूंढ कर लड़ने कटने पर उतारू हो जाएँ.  सभी को सभी धर्मो का बराबर सम्मान करना चाहिए ...... याने "सर्वधर्म समभाव" 
सियावर राम चन्द्र की जय 
पवनसुत हनुमान की जय
उमापति महादेव की जय 
सभी संतों की जय 
और सभी मित्रों को मेरा जय जोहार ...........

पहिली के सियानिन देवे "असीस"

"अतिथि देवो भव" के भावना के साथ अतिथि अउ मेजबान के बीच जउन आत्मीयता पहिली रहै ओइसन बेवहार अब तिरियावत जाथे.  कनिहा झुका के बड़े मन के पाँव छुवाई, माने बड़े मन के चरन छू के उंखर सदाचरण ला उंखर आशीर्वाद के रूप मा पावौ, अपनावौ. अपन ब्लॉग के फालोवर मन के आंकड़ा ल देखेंव त सुरता आगे के पहिली दाई बूढी दाई मन उंखर पायलगी करन त कहैं "जुग जुग जी, भगवान तोला एक के एक्कैईस करै, दूधो नहाव पूतो फलौ........... अब एक के एक्कैईस हा तो बढ़त गरीबी मा, नई रहिगे कोनो करीबी माँ" (काबर के एकल परिवार के चलन जादा होगे हे) ला ध्यान मा रखत हुए उचित नई लगे.  हाँ ब्लॉग जगत मा ब्लोगिंग के महत्त्व ला बरकरार रखत सुग्घर सुग्घर विचार के अनुसरण करैया मन के संख्या बढे ले सुकून मिलथे.  अउ कहूं थोर बहुत उठा पटक के दृश्य दिखथे एमा त ओला इही हाना (कहावत) के "चार बर्तन टकराही त आवाज होबे करही समझ के फेर सामान्य हो जाना चाही. मोर ब्लॉग के नवा अनुसरण करैया मन ला धन्यवाद साभार! अउ जम्मो झन ला मोर जय जोहार. 

अंग्रेजियत है कूट कूट के भरा, हिंदी का है क्या भी काम

श्री राम जयराम जय जय राम. अंग्रेजों के थे हम गुलाम
अंग्रेजियत है कूट कूट के भरा, हिंदी का है क्या भी काम
हिंदी है देश कि "राष्ट्र भाषा'' काम काज की "राज भाषा"
जो "हिंदी दिवस"  मनाने आता काम
चाहे कितना भी हम हिंदी के प्रयोग के बारे में बतिया लें, पर अमल में लाना कठिन है. कानून की दृष्टि से, विज्ञान व तकनालोजी  की दृष्टि से,  विश्व में प्रचलित सर्वमान्य भाषा की दृष्टि से, और सबसे बड़ी बात बेरोजगारों को रोजगार या कहें नौकरी दिलाने की दृष्टि से हिंदी भाषा का प्रयोग सहायक सिद्ध नहीं होता. वजह साफ़ है इसे अनिवार्य बनाने की प्रतिबद्धता किसी के भी शासन काल में नहीं देखने को मिली है.  और तो और हम अंग्रेजी चाल चलन को अभी तक अपनाए हुए हैं चाहे वह शिक्षण संस्थान हो या अदालत हो या शासकीय कार्यालय. लोग धीरे धीरे परिवर्तन लाने की सोच रहे हैं.  आज अखबार पढ़ रहे थे "नव-भारत" लिख़ा था अब दीक्षांत समारोह में उपाधि अलंकरण में गाउन का प्रयोग नहीं किया जावेगा और जिसकी शुरुवात गुरुघासीदास विश्व विद्यालय के सम्माननीय कुलपति महोदय द्वारा की गयी है. प्रशंसनीय व अनुकरणीय प्रयास. पूरे भारत में यदि ऐसा हो तो सचमुच यह देश में अपनी विशिष्टता कायम रखने में कामयाब होगा.  आइये अंग्रेजी में शेखी बघारने में नहीं, अपनी राष्ट्रभाषा को समूचे विश्व में सम्मान दिलाने  का  प्रयास करें और बोलचाल के साथ साथ काम काज में भी धड़ल्ले से हिंदी भाषा का ही प्रयोग कर गौरवान्वित हों. 
जय हिंद ........ जय जोहार.

शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

क्या बाह्य आवरण ही किसी वस्तु अथवा व्यक्ति की विशेषता का आंकलन करने में सहायक है?

                आज अचानक मुझे इस विभाग में अपने दाखिले का दिन याद आ गया.  नया, सहमा हुआ, केंद्रीय उत्पाद शुल्क प्रभागीय कार्यालय भिलाई में नियुक्ति आदेश प्राप्त होने पर  अपनी उपस्थिति दर्ज कराया था.  एक बात जरूर बताना चाहूँगा कि मेरे केंद्र शासन के वित्त मंत्रालय के अधीन कार्यरत विभाग में देश के प्रत्येक प्रांत से आये हुए लोग कार्यरत हैं. यूँ कहें कि यहाँ सर्वधर्म समभाव का नमूना देखा जा सकता है.  प्रारम्भ में ही अपने सहयोगी मित्र के साथ क्रोकरी खरीदने जाना पड़ा तो मित्र ने कहा कैसी विडम्बना है पीनी है आठ आने की चाय और कप सासर चाहिए बोन चाइना का. यहाँ उन्होंने ही समाधान भी किया कि यदि किसी बड़े अधिकारी को चाय काफी यदि सहज मग्गे में देंगे तो चाय के साथ साथ उस बड़े अधिकारी की भी इज्जत मिटटी में मिल जायेगी, चाहे भले ही उतनी जायकेदार न बनी हो.  याने चाय का मान बढ़ गया उस बोन चाइना वाले कप में रखे होने के कारण. कुछ यूँ ही हाल ब्लॉग जगत में है.  कैसी भी पोस्ट हो यदि लब्ध प्रतिष्ठित ब्लॉग लेखक के ब्लॉग में है तो समझिये वह पोस्ट हाई लेवल की हो गयी. किन्तु एक सहज व्यक्ति द्वारा लिखी उत्तम पोस्ट का कोई मायने ही नहीं है.  है न बाह्य आवरण का प्रभाव? यहाँ तक तो फिर भी ठीक है. 
                        दूसरा वाकया: एक विभाग के साहब बहादुर, बाह्य सुन्दरता व व्यक्तित्व के धनी, रोबदार चेहरा,  अधीनस्थ वर्ग इन साहब के केवल व्यक्तित्व  का उपयोग कहीं निरीक्षण में जाने पर किया करते थे यह बोलकर  कि अमुक फैक्ट्री में जाना है,  आप चुप बैठे रहिएगा बाकी काम हम लोग निबटा लेंगे.  और हाँ आप मुंह इनके सामने जरा भी नहीं खोलेंगे नहीं तो बनता काम बिगड़ जाएगा.  याने सोचिये;  बाह्य आवरण  आकर्षक  जरूर लेकिन बालकनी खाली.  तात्पर्य यह है की व्यक्ति बाहर से कितना भी सुन्दर स्मार्ट दिख रहा हो पर यदि बालकनी खाली है तो केवल इस बात के सहारे आगे नहीं बढ़ा जा सकता कि आप कितने स्मार्ट हैं. बुद्धि व विवेक का सही इस्तेमाल होना भी जरूरी है. नक़ल करो भी तो विवेक के साथ............. जय जोहार!
 

फकीरा चल चला चल

अनूठा व्यक्तित्व, सहज, सरल,
नित रह तत्पर पर हित
किसने डाला आपके काज मे खलल
हो गया व्यग्र व्यथित तव चित्त
''ईर्ष्या केवल विनाश ही नही, विकास का भी कारक''
जब जब मन व्यथित हो, कर चिन्तन,
बना इसे शत्रु के लिये मारक
जारी रख ब्लाग लेखन, हँसते हँसाते पल हर पल
फकीरा चल चला चल
साथियों हमारा एक मित्र ब्लाग को अलविदा कह रहा है
उन्ही को समर्पित है यह पोस्ट
जय जोहार………।

ले दे के सैकड़ा पार हुआ, सुनि लीजै इसकी कहानी कहीं प्रशंसा कहीं आलोचना कभी मचती है खींचा तानी

                                                                (१) 
साल था सन दो हजार छै या सात             
आरम्भ किया था हम दोनों ने (मैं और मेरी पत्नी) 
अंतरजाल की दुनिया को समझके 
धीरे से इसमें  फंसना 
बच्चों का रोल मेन था इसमें 
हमें मृत देह की संज्ञा देते हुए; 
जैसा कि प्रचलन में है 
माँ को मम्मी (mumy का मम्मी ) 
और पिता को पापा कहना  (वैसे श्रीमद भगवत गीता के अनुसार सभी मरे हुए ही तो हैं)
कहने लगे, अंतरजाल के सहारे
सात समंदर पार रहने वाले लोगों से भी 
मित्रता करना सहज है,  
सो बना लें अनेको मित्र यहाँ 
सुख दुःख परस्पर बांटना 
हँसाना उन्हें, और स्वयं तुम हँसना 
सिखा दी इन बच्चों ने तकनीक 
खुलवा दिया गूगल खाता 
बनवा दिया मेम्बर ऑरकुट का 
जिसकी वजह से  हमको पी सी(कंप्यूटर) 
कभी न छोड़ना भाता (चिपके रहते थे कंप्यूटर के पास) 
बना डाले अनेकों मित्र 
लगे बांटने सुख दुःख हरदम 
करने लगे स्क्रैप वार्ता, प्रायः 
सरल सीधा सादा, और कभी कभी चित्र विचित्र 
                                                                               (२) 


मित्र समूह बिच  पाया , ब्लॉग जगत के रत्न 
मिली  प्रेरणा लेखन का, करने लग गए  हम भी यत्न 


प्रेरणा मिली है जिनसे, देखें पोस्ट क्रमांक उनचास 
संजीव, ललित अरु पाबला अरु भाई शरद कोकास


टिपण्णी के माध्यम से हमें,  या बन ब्लॉग के सब अनुयायी (अनुसरणकरता)
करते रहे हरदम हमारा बढ़ चढ़ के हौसला अफ़जाई
                                                      

                                       अचानक मैं, चूंकि छत्तीसगढ़ प्रान्त के बिलासपुर जिले की मुंगेली तहसील का रहने वाला हूँ, मुंगेरीलाल के हसीन सपने की तरह स्वप्न जगत में खो गया हूँ.  उड़न तश्तरी  में बैठकर धान के देश  की सैर कर रहा हूँ. जिन्दगी के मेले में घुस गया हूँ, खो गया हूँ. पता नहीं दिमाग काम नहीं कर रहा है. सोचा यहाँ तो राजतंत्र लिखा हुआ है जरूर कुछ तंत्र मन्त्र की साधना चलती होगी यहाँ यदि बाहरी हवा लगी होगी तो बाबा  ठीक कर देंगे . पर ऐसा कुछ भी नहीं था. कुछ सूझ नहीं रहा था  झुग्गी झोपडी में रहने वालों के मोहल्ले में पहुँच गया, एक बोर्ड टंगा हुआ है अमीर धरती गरीब लोग

                                  क्या किया जाय प्राकृतिक संपदा से भरपूर इस धान  के देश  में  जनता जनार्दन से लेकर नेत्रित्वकर्ता द्वारा शहीदों के बलिदान से प्राप्त स्वतंत्रता का उपयोग इसका  पर्याय "स्वच्छंदता" का पालन कर किया जा रहा है नियम कानून केवल तोड़ने के लिए बने हैं  तभी तो इस अमीर धरती में गरीब लोग रहने लगे हैं.  पता नहीं मैं कहाँ कहाँ सैर कर आया. सभी स्थानों को याद नहीं कर पा रहा हूँ. तन्द्रा टूट गयी है. अपने आप को पाता हूँ ब्लॉग जगत में.  ब्लॉग जगत के मेरे सभी अनुसरणकर्ताओं का भी मैं तहे दिल से आभारी हूँ.  मेरे सभी ब्लॉगर मित्रों को जिन्होंने मेरे ब्लॉग को झाँका और टिपण्णी के माध्यम से हौसला बढाया, उन सभी का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ वंदन करता हूँ और नमन करता हूँ.  आप सभी के आशीर्वाद से ही १०० वां पोस्ट लिख़ा पाया भले ही धीमी गति से क्यों न हो.   आगे भी आशा करता हूँ आप सभी का सानिध्य बना रहेगा. 
जय जोहार...... 

बुधवार, 7 अप्रैल 2010

भीषण नर संहार मन हो जाता है खिन्न

  भीषण नर संहार मन हो जाता है खिन्न  
बस खेद प्रकट कर कर   लेते हैं इतिश्री
सारा मीडिया पता कर लेता है ठौर ठिकाना
विज्ञान औ तकनालोजी का  परचम लहराने के बावजूद ,
समझ नहीं आ रही है बात,
ख़ुफ़िया तंत्र का, हमलों के अंदेशों
के बारे में पता न कर पाना
जिससे मारे जाते हैं जाबांज सिपाही बेचारे.
टुकड़ों टुकड़ों में बँटे  हुए ये दुनिया भर के "वादी'
सिद्धांत को ताक में रख तुले हुए हैं,
देश में फ़ैलाने को बर्बादी
कहते हैं भगवान आपके यहाँ देर है
अंधेर नहीं,  पर देख के यह दृश्य
लगता है सुकून है कहीं नहीं
प्रभु अब और देर न कीजिये
हत्यारों के दिल औ दिमाग में बस
इतना भर दीजिये कि कत्ले आम ही
नहीं है समस्या का समाधान
प्रगति के सोपानों की ओर बढकर
कायम रखें अमन चैन
और मिटने न दें अपने वतन की शान
शहीदों को शत शत नमन व उनकी आत्मा की शांति
और उनके परिवारों को ईश्वर इस जघन्य 
घटना से उन पर  टूटे दुःख के पहाड़ से उबरने की 
शक्ति दे, यह  प्रार्थना प्रभु से करते हुए
जय जोहार ............

निन्यानबे का फेर

अब तो तारीख बदल गई है
हम आज कार्यालय में रिटर्न दाखिल 
करने वालों को देते थे प्राप्ति स्वीकृति 
और डालते थे तारीख छः चार दस (6+04=10 सन याने दो हजार दस ) 
और मन में याद कर कर के सोच रहे थे
क्या कर देना चाहिए ब्लॉग लेखन यहीं पर 'बस' 
पर सोचा यह पोस्ट क्रमांक निन्यानबे है 
उमड़ गया विचार और लगे हम लिखने 
नर्वस 90 के बाद
अब होने वाला है 99  का फेर 
हमारा यह आंकड़ा नहीं बता रहा है हिसाब रनों का
यह तो कर रहा है बयां कि हमें ब्लॉग जगत में टिके हुए 
हुई है कितनी देर 
99 वां ओवर चल रहा है 
रनों का हिसाब नहीं रख पाए हैं.
मगर हाँ चौके छक्के भले न जड़े हों 
कभी बाउंसर झेलते हुए, कभी अम्पायर कि 
दया दृष्टि से न कभी एल बी डब्लू,  बोल्ड 
होने पर नो बाल का इशारा आदि आदि 
जीवन दान के सहारे ठेलते हुए अपना बेट
ज्यादातर सिंगल्स व डबल्स में ही रन जुटा पाए हैं.
(रन याने ब्लॉगर मिन्त्रों का टिपण्णी के माध्यम से
हौसला आफजाई) 
यहाँ तो एक से एक बल्ले बाज हैं 
ब्लॉग लेखन हेत पूर्ण समर्पित, 
दिन रात उनका केवल यही काज है 
मनवाते हैं अपना लोहा, मानते न कभी हार
अच्छी बात है मनवाइए लोहा, अपने सुविचारों से
करते हैं हम भी अनुसरण, और कहते हैं 
सभी मित्रों को हमारा जय जोहार


 


 

रविवार, 4 अप्रैल 2010

देयर इज नो एनी बार फॉर टेलिंग लाई

छाप रहा है अपने देश का अखबार
ब्रिटिश ज्यादा झूठे हैं, बोलते हैं झूठ
दिन में औसत चार बार.
अपने देशवासियों के लिए लिखा ही नहीं
क्योंकि मालूम है हमें, झूठ बोलने   के लिए
ताल ठोंक के कह सकते हैं, हमारे यहाँ
देयर इज नो एनी बार
भाईजी कहना नहीं भूलूंगा
जय जोहार ........

शनिवार, 3 अप्रैल 2010

छत्तीसगढ़ी बोली माँ हिंदी अउ अंग्रेजी के प्रयोग

                भाखा बोली जेला हिंदी मा भाषा अउ अंग्रेजी मा लेंग्वेज कथें के अपन अपन अलग महत्व हे. कैसे इन तीनो ला समेट के दैनिक जीवन मा बड़े बड़े पढ़े लिखे लोगन मन परयोग करथे ओखर उदाहरण देना चाहत हौं. मैं अपन काम मा एके जघा पदस्थ नई रहौं ट्रांसफर होवत रथे. जादा दुरिहा नई जाँव अप डाउन करे के जघा मा मोर साहेब मन भेजथें मोला. तव अउ डाउन कहूं रेल मा करे लगे त किसम किसम के गोठ. बात चलत हे आपस मा.........."कईसे जी कल हमन गोठियावत रेहेन त तैं कैसे फलां संग कान मा जाके काय कानफिडेनशियल टाक करे लगे रहे. हव गा बने पूछे बातेच ओइसने रहिसे. सबके बीच वार्तालाप मा गोठियाये के नई रहिसे. ले भाई ठीक हे. झन बता हमला. अउ टुमारो आवत हस के नहीं ड्यूटी मा? काबर नई आहूँ जी. निश्चित्ली आहूँ (होगे इहाँ अंग्रेजी के बढ़िया प्रयोग). फेर पूछत हे.... कैसे कमजोर दिखत हस जी? का करबे 3 4 दिन फीवर (बुखार) मा  परेशान रेहेंव ये दे दुए दिन होइसे उतरे. शरीर मा वीकनेस्ता (कमजोरी) आगे हे. ..... कोनो मा विशेषण लगाना हे त ली शब्द ला जोड़ दौ.  
             वइसे ये अंग्रेजी अउ हमर छत्तीसगढ़ी मा घलो बहुत समानता हे....... येदे जी फलाना चीज हा मोर लाइक नई ये. अउ ओही ला अंग्रेजी मा ....... आई डोंट लाइक इट.  कहूँ तय जर उर गे त कथन नहीं बर गे कहिके. उही ला जब अस्पताल मा जरे भुन्जाये केस आथे त कथें बर्न केस आये हे. अउ तो अउ कोनो गंभीर या कहना चाही कष्टप्रद चीज या डराए के बात होगे त कथन जीव पार दे रहिसे ददा. अउ अंग्रेजी मा शायद "जियोपरडाईज" शब्द के भी मतलब ओइसने कुछ आय. काय होगे हे आज महू ला.............. आनी बानी के गोठ सूझत हे.
जय जोहार जी.....................  





लोगों का ईगो क्यों टकराता है

आन बान और शान
बस रखते  इसका  ध्यान
बघारते हैं हम सभी  अपना अपना ज्ञान
(मैं भी वही कर रहा हूँ)
पर एक बात खलती है हमें
लोगों का ईगो क्यों टकराता है
ब्लॉग जगत में देखा हमने
किसी की भी पोस्ट हो,
(भले ही वह आपको निम्न स्तर का लगे)
प्रतिक्रिया देने से क्यों  कतराता है
यह केवल ब्लॉग लेखन के लिए लागू नहीं है.  हमने अनुभव किया है घर-परिवार में, कार्यालय में, खासकर कुछ  बड़े अफसरों की ओर से. यदि हम किसीके अनुयायी बन गए या यूँ कहें कि उनके शरणागत हो गए, उनकी कृपा से लाभान्वित हो गए तो यह स्वाभाविक है कि उनके प्रति श्रद्धा प्रगाढ़ हो जाती है. हम कृतज्ञ हो जाते हैं. पर इसका  आशय यह भी नहीं होना चाहिए कि हमने जिसकी मदद की हैं उससे दूरी बनाए रखें.  जरूरत होगी तो जो कृतज्ञ है वही संपर्क साध लेगा. हम इस मामले में बता दें कि हम तो किसी की मदद कर सकते नहीं. पर हमारी जो मदद किये होते हैं, उनके सामने हम नतमस्तक हो जाते हैं. लगता है इन लोगों का सानिध्य न छूटे. सतत संपर्क में बने रहना चाहते हैं. पर  हम जिसके प्रति कृतज्ञ हैं वहां से प्रतिक्रिया न मिले तो लगता है कि यह एकतरफा है.
          इस मामले में कृतज्ञ व्यक्ति के मुख से कुछ निकल पड़ा तो प्रतिक्रिया क्या मिलती है, प्रायः किन मुहावरों का प्रयोग होता है यहाँ प्रस्तुत है:  "वाह अब चींटी के भी पर निकल आये हैं"  "मेरी बिल्ली मुझे म्याऊं" यदि किसी के सर से माँ बाप का साया उसके बचपन से ही उठ गया हो और जहाँ उसका लालन पालन हुआ हो उनके तरफ से एक टिपण्णी यह रहती है (यदि जाने/अनजाने में कुछ शख्स से कुछ ऐसी गलती हो जाती है कि अभिभावक का बड़ा नुकसान हो जाता है या यह कहें अभिभावक की बात नहीं मानी जा रही हो, सचमुच वह शख्स बड़ा स्वार्थी हो गया हो तब):- "पोंसे डिंगरा खरही माँ आगी लगावत हे (यह क्षेत्रीय बोली छत्तीसगढ़ी में कहावत है) वैसे हिंदी में इसके लिए है "जिस थाली में खाए उसी में छेद कर रहे हैं" आदि......... दरअसल हम जरा ज्यादा भावना में भी बह जाते हैं. यदि कहीं से भी थोड़ा रिस्पोंस मिलता दिखाई नहीं पड़ता तो तड़प उठते हैं. छत्तीसगढ़ी मा जेला हदरहा कथें. 
                     घर में बातें होती हैं अर्धांगिनी कभी कभी कहने लगती है क्यों किसी के पीछे लगे रहते हो.  कोई कुछ भी कह दिया वह जल्दी मान जाते हो, यदि किसी से ज्यादा पटने लगी तो बस दिन रात वहीँ के हो जाते हो.  सामने वाले से कुछ रिस्पोंस नहीं मिल रहा होता है फिर भी आप लगे रहते हो.  दरअसल हम पहले सभी से बराबर संपर्क बना रहे करके जब देखो तब फोनियाते रहते थे. अब इसके लिए भी कहावत का प्रयोग "जादा मिठ माँ जल्दी किरवा लग जाथे"  याने ज्यादा मीठे में कीड़े जल्दी लग जाते हैं. यह ज्यादा पके फल के लिए लागू  होता है. इन सब बातों को सोचकर किंचित मन खिन्न हो जाता है. और लगता है छोडो दुनियादारी. पर क्या दुनियादारी छोड़ देने से जिन्दगी का मजा ले पायेंगे. यही तो एक प्लेटफ़ॉर्म है जहाँ अपने मन की भड़ास निकाल लो.  सो निकाल लिया मन की भड़ास.
जय जोहार................ 
    


काय आज धर लिस मोला नवा बीमारी

 
कहाँ ले आवत हे के फेर कहाँ पहुँचावत हे ये रद्दा हा 
काय आज धर लिस मोला नवा बीमारी
मन मा आ गे हे एक बात के खुमारी 
दू ठन पोस्ट लिखे हौं,
सोचथों अतेक तो बेकार नई होही
जेमा परिस नहीं टिपीयावन दू चारी
ए बीमारी के कारण हे, देखेंव ब्लॉगवाणी जहाँ
अइसन पोस्ट घलो हा आगी(हॉट) के चर्चा म हे
जेमा आगी तो नई ये, लेकिन लिखे हे एला
जौन हा, वो मन आवें  ब्लॉग जगत के परसिद्ध नामधारी
का करबे भाई ............ का फालतू मैं पारे लगेंव गोहार
भाई हो दिन हा बदल गे हे आ गे हे शनिवार
आप जम्मो झन ला मोर जय जोहार......................

शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010

"गाँव का जोगी जोगड़ा आन गाँव का सिद्ध"

कहावतों को चरितार्थ करने के लिए हमारा देश अग्रणी है. मसलन "गाँव का जोगी जोगड़ा आन गाँव का सिद्ध" जरा गौर फरमाइए आज के अखबार में छपी खबर "देश के संस्थान ने की उपेक्षा, सर्न (यूरोपीय ओर्गनाइजेशन फॉर न्यूक्लिअर रिसर्च (सर्न) ने सराहा.  अफ़सोस होता है देश की प्रतिभा की उपेक्षा देश में ही होने पर. केरल के छात्र सी वी मिथुन को बहुत बहुत बधाई. हमने सोचा इस अंतरजाल में इस समाचार को प्रकाशित किया होगा मगर गायब है.  खैर इनकी उपलब्धि क्या है संक्षिप्त में प्रस्तुत कर देते हैं; 
"     मिथुन ने वैज्ञानिक सिद्धांत के जरिये दावा किया था कि बिग बैंग प्रयोग के दौरान जब प्रोटॉन टकरायेंगे तो इससे ब्लेक होल नहीं बनेंगे और इसलिए इससे दुनिया को कोई खतरा नहीं है. यह बालक मलारपुरम जिले में स्थित मजलिस आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज  में  बीएससी प्रथम वर्ष  का छात्र है.  मिथुन ने अपने प्रयोग के दौरान  कणों के टकराने के कारण निकलने वाली किरणों से पैदा हुई उर्जा की तुलना सूर्य किरणों की ऊर्जा से की. मिथुन का सिद्धांत था कि सूर्य किरणों से निकलने वाली उर्जा सर्न के लार्ज हेड्रोन  कोलाइडर (एल एच सी) में कण के टकराने से निकलने वाली किरणों के कारण पैदा हुई ऊर्जा से कहीं अधिक ज्यादा होती है.  मिथुन ने बताया कि उसने करीब छः महीने पहले अपने सिद्धांत को इ मेल के जरिये बेंगलुरु स्थित आईआईएससी के प्रोफ़ेसर एम्. विजयन को भेजा था. विजयन ने इसे इंस्टिट्यूट के हाई एनर्जी फिजिक्स विभाग को भेज दिया, लेकिन मिथुन को संस्थान की ओर से कोई जवाब नहीं मिला. मिथुन ने दो महीने के इन्तेजार के बाद अपने सिद्धांत को सीधे सर्न को भेजा और वहाँ के परमाणु भौतिकविद अब्दुल गुरडु की तरफ से तुरंत जवाब भी आ गया. मिथुन को सर्न की ओर से न सिर्फ सराहना मिली बल्कि अब उसे बिग बैंग प्रयोग की ताजा जानकारियाँ भी इ मेल और मोबाइल के जरिये मिल रही है"
हमारे देश के वैज्ञानिकों को ऐसे छात्रों को प्रोत्साहित करना चाहिए 
जय जोहार...........

बस हरि हरि बोल

 आज प्रातः अखबार में देखा "समस्या दूर करने वाले बाबा को जेल" (बाबा धनी हैं ऐसा लिखा गया है और समाचार है लन्दन का). त्वरित उमड़ गया मन में विचार;
समस्या दूर करने वाले बाबा को हो गई जेल
भारत तो विख्यात है, चलने लगा विदेशों में भी
इन बाबाओं का खेल 
"पूजा"  "अर्चना" "अराधना" अरु "आरती" फिर मन्त्र 
पा जाते प्रसिद्धि ये बनकर साधक तंत्र 
मन्त्र तंत्र साधक बनकर, हो जाते है प्रसिद्ध 
बाद में "पूजा"  "अर्चना" "अराधना" ......... पर रखते हैं नजरे -गिद्ध 
कोई बात नहीं, धीरे धीरे ही सही, खुल रही है इनकी पोल 
झांसे में न आयें इनके, प्रभु करेंगे दूर समस्या,  बस हरि हरि बोल 
मित्रों, इस समाचार को आप सभी ने पढ़ा होगा फिर भी यहाँ दर्शाना उचित समझता हूँ 

लंदन अपनी तरह के पहले मामले में एक धनी बाबा को अपने अनुयायियों से हजारों पाउंड ठगने के जुर्म में 18 माह की कैद हुई है। यह फैसला आने से भारतीय मूल के बुद्धिजीवियों में खुशी की लहर है।
नीम मोहम्मद चेशायर में कथित रूप से 8.50 लाख पाउंड (करीब ५.78 करोड़ रुपए) के घर का मालिक है। उसे वोल्वरहैम्पटन क्राउन कोर्ट में बुधवार को धोखाधड़ी के 11 आरोपों में दोषी करार दिया गया। भारतीय मूल के बुद्धिजीवी ऐसे बाबाओं के खिलाफ कई वर्षों से अभियान चला रहे हैं।

इस फैसले पर खुशी जताते हुए एशियन रेशनलिस्ट सोसाइटी ऑफ ब्रिटेन के महासचिव एसडी विर्दी ने कहा, ‘हमने वैसे लोगों को चुनौती दी है जो चमत्कार से समस्याएं दूर करने के नाम पर भोले-भाले लोगों का शोषण करते हैं। ऐसे लोग हमारी प्रकाशित शर्तों के अनुरूप चुनौती स्वीकार करके 1,00,000 पाउंड जीत सकते हैं।’

ब्रिटेन ने हाल ही में फ्रॉडुलेंट मीडियम्स एक्ट, 1951 की जगह नया उपभोक्ता संरक्षण कानून लागू किया है। इस नए उपभोक्ता कानून का मतलब है कि यदि किया गया वादा पूरा नहीं होता है तो ऐसे व्यापारी को कोर्ट में घसीटा जा सकता है। मोहम्मद का पहला ऐसा मामला है जिसे वादा पूरा करने में विफल रहने पर जेल की सजा दी गई है।
विश्वास है इस पर रखेंगे अपने विचार
जय जोहार.....................