"अतिथि देवो भव" के भावना के साथ अतिथि अउ मेजबान के बीच जउन आत्मीयता पहिली रहै ओइसन बेवहार अब तिरियावत जाथे. कनिहा झुका के बड़े मन के पाँव छुवाई, माने बड़े मन के चरन छू के उंखर सदाचरण ला उंखर आशीर्वाद के रूप मा पावौ, अपनावौ. अपन ब्लॉग के फालोवर मन के आंकड़ा ल देखेंव त सुरता आगे के पहिली दाई बूढी दाई मन उंखर पायलगी करन त कहैं "जुग जुग जी, भगवान तोला एक के एक्कैईस करै, दूधो नहाव पूतो फलौ........... अब एक के एक्कैईस हा तो बढ़त गरीबी मा, नई रहिगे कोनो करीबी माँ" (काबर के एकल परिवार के चलन जादा होगे हे) ला ध्यान मा रखत हुए उचित नई लगे. हाँ ब्लॉग जगत मा ब्लोगिंग के महत्त्व ला बरकरार रखत सुग्घर सुग्घर विचार के अनुसरण करैया मन के संख्या बढे ले सुकून मिलथे. अउ कहूं थोर बहुत उठा पटक के दृश्य दिखथे एमा त ओला इही हाना (कहावत) के "चार बर्तन टकराही त आवाज होबे करही समझ के फेर सामान्य हो जाना चाही. मोर ब्लॉग के नवा अनुसरण करैया मन ला धन्यवाद साभार! अउ जम्मो झन ला मोर जय जोहार.
2 टिप्पणियां:
आपके बात ह बने लागिस गा सियान । महु ह ओकर सेती ये ब्लाग के फालोअर बन गेँव ।
एक के एक्कीस .. मोला तो तेईस दिखत हे ।
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