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शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

सुत बध सुरति कीन्ह पुनि उपजा हृदय बिषाद

"ॐ श्री गणेशाय नमः"  
"ॐ हं हनुमते नमः"
"कपिहि बिलोकि दसानन बिहसा कहि दुर्बाद 
सुत बध सुरति कीन्ह पुनि उपजा हृदय बिषाद" सियावर रामचंद्र भज जय शरणम"
लंका में हनुमान जी अशोक वाटिका उजाड़ दिए. जिन्होंने  रखवाली करते राक्षसों ने) हनुमान जी को फल खाने से रोका 
उन्हें हनुमान जी ने मार गिराया. श्री राम चन्द्र जी के प्रताप से यह सब लीला हो रही है.  यह संकेत है श्री लंका के महाराजाधिराज रावण के लिए के वह अभी भी अपने अहम् का त्याग कर दे. अनेकों योद्धाओं को रावण ने हनुमान से युद्ध कर  उनका वध करने भेजा, यहाँ तक कि अपने पुत्रों को भी. अक्षय कुमार मारा जाता है.  तत्पश्चात मेघनाद को भेजा जाता है,  जिसने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर हनुमान जी को नागपाश से बाँध कर अपने पिता रावण के समक्ष खड़ा किया.  हनुमान जी को देखते ही दुर्वचन कहते हुए रावण हँसता है किन्तु तत्काल पुत्र वध का स्मरण होते ही विषाद में डूब जाता है. उपरोक्त प्रसंग उद्धृत करने के पीछे उद्देश्य यह है कि कोई भी व्यक्ति यदि किसी का नुकसान पहुंचाया हो, भले ही वह बाद में उस नुकसान  के लिए माफी मांग लेता हो, नुकसान को झेले व्यक्ति के लिए वह कभी भी सज्जन नहीं हो सकता. क्षण भर के लिए नुकसान झेले व्यक्ति के मन में उस घटना को याद कर विषाद उत्पन्न होगा ही. 
सियावर रामचंद्र कि जय 
जय जोहार........   

2 टिप्‍पणियां:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

सियावर रामचंद्र कि जय
जय जोहार........

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

अद्भुत ज्ञान पाकर गदगद हो गए देव हम तो
आपके यात्रा पर होने हमे बहुत सूना सूना लग रहा था। जब से सुना की आप आ गए हैं, त बने जीव हां जुड़ाईस आर्य।

लगे राह अईसने।

जोहार ले