आईए मन की गति से उमड़त-घुमड़ते विचारों के दांव-पेंचों की इस नई दुनिया मे आपका स्वागत है-कृपया टिप्पणी करना ना भुलें-आपकी टिप्पणी से हमारा उत्साह बढता है

बुधवार, 30 जून 2010

सब्र का इम्तिहान न लो,

(1)
हे नक्सली, असली है या नकली!  
साक्षात तू नर पिशाच है कौन है तेरा उपासक 
"कायराना हरकत"  कह करते  इति श्री, तुम्हे देते सह,  
तभी तंदूरी बना रहा तू मानव की बेशक
  (2)
क्या उसूल है, क्यों करता तू यह सब,
इसके पीछे क्या है  राज
जिनके सहारे फल पूल रहे हो
उनपर क्यों नहीं  गिरती गाज
देख रहा यह देश, कब आओगे इन
हरकतों से तुम बाज !
(3)
सब्र का इम्तिहान न लो, 
एक दिन उमड़ेगा जन सैलाब,
धधक उठेगी  आक्रोश की प्रचंड ज्वाला
आहूत हो जाओगे, मिट जाओगे समूल,
परिवर्तन ही जीवन है, नैतिकता की राह पे चलो,
अब और किसी की जान न लो.
शहीद हुए उन सैनिकों को, जांबाज सिपाहियों को शत शत नमन.
जय जोहार. 

अंधों मे काना राजा





(1) 
अपनी भाषा अपनी बोली है अपनी हिंदी 
        पर  बन न पाई ये भारत माँ के माथे की बिंदी 
(अपने देश की शान) 
माह सितम्बर, दफ्तर दर दफ्तर,  मनता है हिंदी पखवाड़ा 
क्या चल पाता है यह आयोजन बिना किसी फर्जीवाड़ा  
(2 )
सरकारी दफ्तर ( खासकर निजी संस्थाओं व केंद्र सरकार के अधीन कार्यालय में हिंदी 
दुबकी दुबकी रहती है 
पखवाड़े में निकल के बाहर,  देख चोचले अरु ढकोसले
बहते  नयनो से आंसू, गले में सिसकी हिचकी रहती है 
(3)
ले देकर प्रतिभागी मिलते, कोई एक ही डफली बजा पाता
पारितोषिक मिलता, सीना गर्व से तनता  जाता 
किन्तु विद्वजनो से  जब पड़ता पाला, बज जाता इनका बाजा 
एहसास तभी होता इनको, दबे दबे शब्दों में  कहते 
 "हम तो ठहरे निपट गंवार, थे  अंधों  में काना राजा" 
जय जोहार.......

मंगलवार, 29 जून 2010

मौत कहर बरपाती है किस कदर पेश है एक नमूना

(१)
हे परमेश्वर! मृत्युलोक की अद्भुत हैं लीलाएं
किस किस को कोई याद रखे, किस किस को भूलते  जाएँ 
मौत कहर बरपाती है किस कदर पेश है एक नमूना 
बिजली के करंट ने छीनी तीन जिन्दगी,  कर दिया घर आँगन- सूना
(आज समाचार पत्र में प्रकाशित  पार्षद समेत परिवार के तीन सदस्यों द्वारा बिजली के तार छू  जाने से हुई मौत पर लिखी गई). ठीक इसके विपरीत; 
(२)
पच्चीस फुट उंचाई से गिरकर, कोई बच जाता है जिन्दा 
खोपड़ी फूटी, जबड़ा टूटा, एक आँख की गई रौशनी
सुना रहा है आप बीती लन्दन का एक बंदा 
(यह भी दैनिक भास्कर के पृष्ठ १२ में छपी खबर "हादसे के बाद वह आधी खोपड़ी के साथ जिन्दा है पर आधारित)
और इस पर भी गौर फरमाएं 
(३) 
सबके होते हैं अपने अपने काम धंधे 
क्या बता सकते हैं कौन होते हैं आँख वाले अंधे ?
हम ही हैं वो, जो पूछते हैं उस व्यक्ति से ," क्या कर रहे हो?"
यह देखकर भी कि वह किस कदर अपने काम से है बंधे
//जय जोहार.....//

रविवार, 27 जून 2010

'ब्लॉगवाणी' विलुप्त हुई, लग नही रहा, हरा भरा सा

(1)
'ब्लॉगवाणी' विलुप्त हुई, लग नही रहा, हरा भरा सा
  आज कलम(मेरी कलम) कुंठित हुई , 
 लिख न पा रहा,  जरा सा.
(2 )
ड्राइंग रूम में बैठ कर देखने लगा दूर दर्शन 
कार्यक्रम चल रहा था जिसमे बच्चों का नृत्य प्रदर्शन 
नृत्य कर रहे थे झूम के, ये छोटे छोटे बच्चे 
विषय 'विषय' था लग रहा, वयस्क भी खा जाएँ गच्चे. 
(3 ) 
युग प्रभाव जो दिख रहा, कम होगा कुछ भी कहना 
चलेगी जिन्दगी यूँ ही, दें इसे चलते रहना 
(4)
चेनल बदले, एन० डी० टी० वी० दिखा, चल रही थी  जनता की अदालत
मुवक्किल थे बाबा रामदेव, दृढ प्रतिज्ञ दिखे  परिवर्तन लाने को,  
 योग-निरोग, अध्यात्म, सत्कर्म समझा रहे थे सवालों के बदौलत 
दोनों कार्यक्रम देखकर, कौंधने लगा  मन में विचार 
क्या सचमुच सच कर पायेंगे, प्रतिज्ञा इनकी साकार 
अर्ध रात्रि जो बीत चुकी, जायेंगे निद्रा देवी की शरण में 
कहते हुए आप सभी को .......जय जोहार.

शनिवार, 26 जून 2010

हे दीन दुखियों के पालन हार प्रसन्न होइए!

"ॐ हं हनुमते नमः "
आज शनिवार है. शनि देव की प्रसन्नता के लिए हनुमत उपासना का उल्लेख है ज्योतिष शास्त्र में.  शनि देव कि प्रसन्नता के लिए उन्हें तेल स्नान कराने का प्रावधान है. आज चन्द्रमा को ग्रहण लगा है ऐसा कल समाचार चेनल में दिखाया जा रहा था, भले ही  अपने प्रांत में न दिखाई दे रहा हो. सोने में सुहागा वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए यह बताया जा रहा था कि यह ग्रहण शनि की साढ़े साती में लगा हुआ है. अतएव मंहगाई तो बढ़ेगी ही. शनि देव से यही प्रार्थना रहेगी, "प्रभू यदि आपको सचमुच तेल स्नान पसंद है तो यह क्या किया आपने ? भक्त कैसे आपको प्रसन्न कर पायेंगे? खासकर एक मध्यमवर्गीय परिवार. इस वार से कैसे बच पायेगा.  इंधन सुलभ नहीं तो भोजन कैसे सुलभ हो पायेगा.  प्रभू प्रसन्न होइए! सत्ता का ध्यान खींचिए उनकी ही कही हुई बातों पर ............."आम आदमी की सरकार"   हे दीन दुखियों के पालन हार प्रसन्न होइए! 
"नमस्ते कोण संस्थाय पिंगलाय नमोस्तुते 
नमस्ते विष्णु रूपाय कृष्णाय च नमोस्तुते
नमस्ते रौद्र देहाय नमस्ते कालकायजे
नमस्ते यम संज्ञाय शनैश्चर नमोस्तुते
प्रसीद कुरु देवेश दीनस्य प्रणतस्य च" 
जय जोहार........

शुक्रवार, 25 जून 2010

चौंकिए नहीं!!!!

बाबा, ब्लॉग जगत का हमें 
संक्षिप्त ज्ञान दे गए 
ज्ञान देकर, अंतर्ध्यान हो गए 
बाबा शायद सिद्धि प्राप्त 
करने हेतु तीर्थाटन कर रहे हैं.
जय जोहार...... 

गुरुवार, 24 जून 2010

हर शख्स आज है भूखा

हर शख्स आज है भूखा
                              (१)
दिन रात की मेहनत, नहीं मिलता मेहनताना इतना
कि भर ले उदर अपना  खा के रूखा सूखा
गुजर रही है जिन्दगी, रह एक जून भूखा
(२)
पाके लक्ष्मी कृपा असीम, विलासिता में डूबता चला
बीवी बच्चे खुश हैं सोच अपना फ़र्ज़ तू भूलता चला
वक्त नहीं है तेरे पास अपने बिच बांटने को प्यार
घर का हर शख्स आज भूखा है तेरे प्यार का
(3)
ऊंचे ओहदे पर आसीन मानस,
नामचीन, पठन पाठन लेखन
धर्म कर्म साहित्य अनेक  प्रतिभाओं के धनी,
भूखा है, प्रतिष्ठा और सम्मान का
(४)
यौवन, नर-नारी का
प्रकृति प्रदत्त उपहार
सृजन का आधार; जिस पर
"मनसिज" इठलाता,  इतराता
मन चंचल, कहता मचल मचल
कि भूखा है वह  "काम" का
(५)
पनप रही है पिशाच वृत्ति
निरपराधों की नृशंश हत्या
जग देख रहा यह कृत्य
भूखा है इंसान यहाँ
इंसान की ही  जान का.
जय जोहार....

सोमवार, 21 जून 2010

घुरुवा के दिन घलो बहुरथे

घुरुवा के दिन घलो बहुरथे 
 
ऊपर दिखत हे तउन फ़ोटू माँ दू ठन हा "घुरुवा" के आय अउ एक ठन हा अइसे  बस्ती के, जेन ला  "घुरुवा" च केहे जा सकथे. हमन देखे होबो अउ अनुभव घलो करे होबो के गाँव मा "घुरुवा" के का महत्त्व रहै.  पहिली अतेक आधुनिकता के ज़माना नइ रहिसे.  माटी के घर माँ रहन अउ माटी च के खपरा (भट्ठी मा पका के बनाये) के रहै छान्ही. घर माँ खूब गाय भैंसी पालें. घर ला बने गाय अउ भइन्स के गोबर मा लीपें.  उही गोबर ले छेना थोपें. अउ छेना(कंडा)  के  आगी मा चुल्हा माँ भोजन रान्धें.  पहिली आज कस कचरा फेंके के पलास्टिक के डब्बा उब्बा(जेन ला आज डस्ट बिन कथें) के उपयोग नइ होवत रहिस. घर ले थोर किन दुरिहा मा कचरा ला फ़ेंक देत रहिन हे.  ओमा चाहे गोबर होय चाहे अउ कांही कुछु. कुल मिला के गंदगी रहै. वैसे गोबरे च ला कुढ़ोवें. अउ एखरे ढेर ला कहैं "घुरुवा". गोबर के ये ढेर हा खेती बर अब्बड़ फायदा के चीज रहै. एला कथें गोबर खातू.  एखरो किम्मत रखें जी जेखर "घुरुवा" रहै ओ मन. खेती किसानी के दिन मा इन घुरुवन के बहुत डिमांड रहै. इन्खरो दिन हा फिर जाय अउ घुरुवा के मालिक के ओखर लेवैया के घलो. जम्मो  बर फायदेमंद रहै.  एक बात अउ ये घुरवा के लेवैया ला कचरा के ढेर माँ कांही कीमती चीज मिल गे त झन पूछ. मिले के संभावना बिलकुल रथे च. त ये तो होईस घुरुवा के गोठ.
                                   हमर देश माँ ओइसने एक तबका अइसे हे के  झुग्गी झोपड़ी मा कइसनो करके अपन गुजर बसर करत हे. एक लाँघन दू फरहार करके रहत हे. इहों कभू कभू होनहार लइका निकल जाथे जउन हा कंडिल (लालटेन) अउ चिमनी के अंजोर मा, अउ नही त सड़क मा लगे खम्भा के लाईट के अंजोर माँ पढ़ लिख के अतेक बड़े आदमी बन जाथे के ओखर पूरा घर परिवार तर जाथे. अउ दूसर मन तहां ले केहे ल धर लेथें "घुरुवा के दिन बहुरगे" कहिके.  मैं अपन एक संगवारी ल देखे हंव. ओखर सियान (ददा) हा ठेला चला के ओला पढ़ाइस. आज ओ हा टेलीफोन विभाग मा बने नौकरी करत हे. अपन परिवार ला चलावत हे. बहुत हुसियार रहै. गणित मा ८०-९० प्रतिशत नंबर लावे. ओखर इंजीनियरिंग कालेज मा घलो होगे रहिसे सिलेक्शन. फेर इही रुपिया पैसा के परबन्ध अउ पहिली कालेज मा रेकिंग के नाव मा होअइया मार पीट के डर माँ बिचारा पढ़ नई पईस. सार चीज जउन केहे चाहत हौं वो आय "कमल हा कीचड़ माँ ही खिलथे.  घुरुवा घलो उपयोगी होथे कभू कभू.  आप सबो के समझ आवै कहिके अलकरहा भाखा के मायने घलो लिख देथौं:-
                                                       लालटेन/लेम्प के अंजोर  मा पढ़त

घुरुवा = कचरा/गोबर के ढेर                                                              
अनुभव घलो करे होबो = अनुभव किये होंगे.
अतेक = इतना  
खपरा = खपरैल 
भोजन रान्धें = खाना बनाते थे. (कूकिंग) 
खम्भा के लाईट के अंजोर माँ = सड़क में लगे खम्बे के  लाईट के उजाले में.
इन्खरो दिन हा फिर जाय = इनकी भी तकदीर चमक जाती थी या इनमे भी बदलाव आ जाता था. 
एक लाँघन दू फरहार करके रहत हे = दो जून की रोटी भी नसीब न हो पाना. एक जून खा रहे हैं तो दो दिन उपवास .
"घुरुवा के दिन बहुरगे"  = कूड़े के ढेर के दिन भी बदल गए याने इनकी भी  तकदीर चमक गयी. 
वैसे ज्यादा कठिन नही है. समझ में आ ही जावेगी. 
जय जोहार........

गुरुवार, 17 जून 2010

"नोट" कर लें, पॉइंट टू बी "नोटेड"

बिगुल फूंका गया,   
"मुडा-तुडा नोट 
की महिमा बखान का 
मेरा दिमाग भी कुलबुलाया, सोचा 
कर दूं  बयां  लफ्ज़ "नोट"
की आन बान और शान का. 
"नोट"  वोट की है चिंगारी
"नोट" की जरूरत है सभी को
चाहे वह अमीर हो या भिखारी 
"नोट" कर लें, पॉइंट टू बी "नोटेड" 
 लफ़्ज़ों का करती है उपयोग
दुनिया सारी. 
बात यहीं  ख़तम नहीं हो जाती 
इसमें लगा दीजिये प्रत्यय "शन"
बन जाता है "नोटेशन" याने 
गीत संगीत का फार्मूला;  याद कर इसे
बन जाते हैं बड़े बड़े गायक, वादक 
चढ़ा देते हैं सब पे संगीत की खुमारी.
जय जोहार......... 
  

बुधवार, 16 जून 2010

थोड़ी पचक गई थी तोंद, उसे बढ़ाया

आज हो गया हूँ "विचार शून्य"                                    
कार्यालय से आते ही अपनी तोंद पे नजर दौड़ाया
आवाज सुनाई दिया, भूख लगी है,
भोजन बना नहीं था, पैकेट में रखी मूंगफल्ली चबाया.
देर नहीं लगी भोजन बनने में, थाली लगने में
थोड़ी पचक गई थी तोंद,  उसे बढ़ाया
सोच में डूबा हूँ, क्या लिखूं?
ख़बरें वही हैं; नेताओं के आरोप प्रत्यारोप,
चोरी,  डकैती,  लूटपाट, हत्या, नगर में
आवागमन सुगम बनाने के लिए बने हुए
रेलवे अन्डर ब्रिज की दीवारों का  बारिस के पहले थपेड़े में ही ढहना
किस्से ही किस्से हैं, इन सबका क्या कहना
मान लिया है सभी ने इन बातों को जीवन का अभिन्न अंग
जब तक जियेंगे, पड़ेगा हमें इन्हें सहते रहना.
नोट:- अभी लगता है ब्लॉग का मानसून नहीं आया है. फुहारें दिखाई पड़ती हैं. मूसलाधार बारिश नहीं.(हो सकता है बारिश वाले इलाके में हम जाते न हों).
जय जोहार........

धर्म, साहित्य और सत्संग

                                धर्म ग्रंथों को यदि सम्प्रदाय से ऊपर रखकर देखें और उनमे उद्धृत बातों की व्याख्या सकारात्मक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए करें साथ ही साथ अमल में लायें तो जीवन सफल हो जाता है. गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीरामचरित मानस जिसे महाकाव्य कहें या ग्रन्थ कहें मनुष्य की जीवनचर्या सुचारुरूप से निष्पादन  के लिए अत्यंत उपयोगी है. मानव जीवन के प्रवाह को नियंत्रित करने के सत्संग आदि  अनेक साधन हैं, किन्तु उनमे दो प्रमुख हैं - धर्म और साहित्य. सत्संग की महिमा से तो सभी अवगत हैं. श्रीरामचरित मानस में इसकी महिमा का वर्णन इस प्रकार किया गया है:-
"सठ सुधरहि सतसंगति पाई. पारस  परस कुधात सुहाई"  अर्थात सतसंग से "सठ" मूढ़ व्यक्ति का जीवन ठीक उसी प्रकार संवर जाता है जैसे पारस पत्थर के स्पर्श से लोहा. सतसंग के बिना विवेक काम नहीं करता और सतसंग भी राम जी की कृपा के बिना सुलभ नहीं नहीं होता. अतएव साधारण मानव को धर्मग्रंथों और साहित्य पर निर्भर रहना पड़ता है. धर्म और ग्रन्थ एक दूसरे के सहायक और पूरक रहते हैं. धर्म से साहित्य को प्रेरणा मिलती है और साहित्य से धर्म की व्याख्या होती है. धर्मग्रंथों का उपदेश कुछ ऊँचे धरातल से होता है. उनमे ईश्वरीय आज्ञा की भावना रहती है. वह उपदेश प्रभु सम्मत होता है, किन्तु साहित्य का उपदेश 'काँटा-सम्मिततयोपदेशयुजे' स्त्री का सा कोमल मधुर और स्नेहपूर्ण होता है.  
                                         इस प्रकार तीनो ही:- धर्म, साहित्य और सतसंग हमारे जीवन में अत्यंत उपयोगी हैं. इस पर मनन करें अच्छे साहित्य का अध्ययन करें और अच्छी बातों पर अमल करें. 
जय जोहार....... 

मंगलवार, 15 जून 2010

अंग्रेजी के शब्द और उच्चारण

अंग्रेजी के शब्द और उच्चारण 
मैं आज बैठे बैठे सोच रहा था विदेशी भाषा अंग्रेजी, जो आज हमारी मातृभाषा से भी ज्यादा लोकप्रिय और प्रतिष्ठा कि वस्तु बन गई है, उसका उच्चारण हम किस तरह से करते हैं. जिव्हा सही ढंग से उच्चारित नहीं कर पाती उन शब्दों को; मसलन यदि 'ज़' बोलना है तो भी 'ज' ही बोला जाता है. उदाहरण के बतौर हमने कईयों के मुख से is को 'इज' कहते सूना है न कि इज़. हमारी क्षेत्रीय बोली छत्तीसगढ़ी की तो बात ही कुछ और है.  हमने तीन शब्द लिया है अंग्रेजी का (1)  closure (2) exposure (3) pleasure  जिन्हें हम हिंदी कहें या छत्तीसगढ़ी में कुछ इस तरह उच्चारित करेंगे; (इ) क्लोजर (२) एक्सपोजर (३) प्लेजर. इन तीनो में शब्द 'जर' विद्यमान है. और 'जर' के मायने में हमारी छत्तीसगढ़ी में होता है 'जलना' या 'जल'/तप या खप. और इन तीनो शब्दों के अति होने से याने(१) ज्यादा निकटता (२) ज्यादा अपने आप को प्रकाश में लाना और (३) ज्यादा खुशी का परिणाम वही होता है 'जर'. भाई मन में आया लिख बैठा अपने अपने हैं विचार......... और .....जय जोहार.

जोश में होश नहीं रहता

जोश में होश नहीं रहता 
होश में जोश नहीं रहता
मानुस तन है, बुद्धि है, विवेक है,
गूंगा भी खामोश नहीं रहता
कहा गया है,
"जल्दी में लद्दी (कीचड)
औ धीर में खीर
अपने ही लोग, और अपनों के
कारण, पहुँचती है/पहुंचाते हैं,
मन को पीर
मित्रों, मेरा कतई यह उद्देश्य नहीं था कि किसी को दुःख पहुंचाऊं. आप सभी से माफी चाहता हूँ. स्वाभाविक है, जैसा कि कभी कभी मन में प्रतिस्पर्धा के भाव आ जाते हैं, यह दृश्य उपस्थित हुआ. जिन लोगों के कारण इस मुकाम तक पंहुचा उन्ही को ठेस पहुंचाऊं, "पोंसे डिंगरा खरही मा आगी लगाय" ऐसा हो नहीं सकता. मन अच्छा नहीं लग रहा है. आशा है माफ़ी मिल ही जायेगी. 
जय जोहार.......  

रविवार, 13 जून 2010

अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे

अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे
हमें क्या मालूम था, लोगों के
आशीर्वाद मिल रहते थे वे थे
सब "छद्म" और थे हम आँख मीचे
अब न रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी
"घुरुवा" हट जाएगा हम तो लेते हैं
विदा इस ब्लॉग की  दुनिया से,
मित्रों को देते हुए शुभकामनाएं
पल्लवित, पुष्पित इस बगिया को
सुविचारों से हमेशा की तरह  सींचें.
अब एहसास हुआ कि "किस दुनिया में खोये थे हम" जिन्हें भी, समझिये पहली बार हमसे हुई गलती के  कारण ठेस पहुंची हो,  क्षमा चाहते हैं. वैसे हमारा ऐसा उद्देश्य नही था ठेस पहुंचाने का. 

  जय जोहार ........... अलविदा दोस्तों.

शनिवार, 12 जून 2010

लगदा है तुसि, किसे नु न इ लगदे प्यारे।

लटके झटके वाली पोस्ट इक झलक मे भा जाती है
अब जरूरत क्या है, हो गए हैं हम आज़ाद,
बलिदानी शहीदों की जरा भी  याद नहीं आती है 
गवाह है कल की चली हुई हमारी लेखनी 
जिसने याद किया था उस शहीद को, नाम है करतारा (करतार सिंह)
देखा, श्रद्धा सुमन अर्पण हो न पाया किसी का (केवल भाई दिलीप को छोड़ ) 
क्योंकि, करतारा ओए करतारे, लगदा है तुसि, किसे नु न इ लगदे प्यारे।
जय जोहार.......

मानसून आने की इंतेजारी है


मानसून आने की  इंतेजारी है
भीषण गरमी का प्रकोप जारी है. 
जून महीने की तारीख हो गई बारह 
बारिश के अभी तक प्रवेश न कर पाने की 
क्या हो सकती है वजह 
निहारने  लगा आसमाँ को  
क्षण भर के लिए घने काले बादल,
कदाचित , किंचित  क्षेत्र में आच्छादित 
हो जाते हैं, मन को भाते हैं 
अपने संग ले आते हैं, ठंडी हवा के 
झोंके, बारिश के फुहार में भीगी
मिटटी की  सौंधी सौंधी महक 
पर यह क्या! क्यूं रूठ गए 
छोड़ हमें कहीं और चले 
समझ में आया,  गलती से हरे 
भरे घने जंगलों के बजाय 
काले धुंएँ के इलाके में घुस आये थे
जिसने तुझे अपना दुश्मन समझ भगा दिया
पशु पक्षी से लेकर जन-मानस तक बैठे थे प्यासे
सबको तूने रुला दिया. 
 जय जोहार...........

गुलाम भारत के सपूतो मे आजादी पाने का जुनून

गुलाम भारत के सपूतो मे आजादी पाने का जुनून
स्वतन्त्र भारत के सपूतों को 
एशो आराम की जिन्दगी बिताने में ही मिलता है सुकून 
डॉक्टर आलोक कुमार रस्तोगी जी द्वारा लिखी पुस्तक क्रान्ति नायक पढ़ रहा था. इस पुस्तक में शहीद क्रांतिकारी नायकों के जीवन पर आधारित एकांकी संकलन है. क्या जूनून था माँ भारती को अंग्रेजों की गुलामी की बेड़ियों से आजाद कराने का. क्रांतिकारियों के करतब, उनके साथ अंग्रेजों के व्यवहार, उद्देश्य की पूर्ति हेतु अर्थात अपने देश को आजाद करने जिद्द पर अड़े रहने क्रूर अंग्रेजों के मार सहते सहते प्राणों की आहुति देने का मार्मिक चित्रण है. जिन क्रांतिकारियों के बारे में लिख़ा गया है उनके नाम हैं; लाला हरदयाल, रासबिहारी बोस, ठाकुर केसरी सिंह, करतार सिंह सराबा, पंडित परमानंद, वीर तात्या टोपे, असफाक उल्ला खां, बंता सिंह, सुखदेव, दामोदर चाफेकर, गोविन्दराम वर्मा, बिरसा मुंडा, बाबा पृथ्वीसिंह आजाद, वीरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय, सरदार अजीत सिंह, अमृतलाल, बाघा जतिन, मदन लाल धींगरा, शचीन्द्रनाथ सान्याल, रानी गान्दयु, बिशमसिंह कूका, बन्दा  बैरागी और उधमसिंह.  इनके बारे में एकांकी के रूप में वर्णन कर सटीक जानकारी प्रस्तुत की गई है. प्रस्तुत है वीर क्रांतिकारी करतार सिंह सराबा के क्रांतिकारी विचारों का  प्रहसन के रूप में प्रस्तुतीकरण; 
                                                                          करतार सिंह 
(घर का दृश्य)
(एक किशोर चारपाई पर बैठा है. गृह स्वामी सरदार जी घर में प्रवेश करते हैं.)

  • सरदार जी:-        ओए, करतारा की गल है. तुसी घर में घुसा बैठा है. 
  • करतार सिंह:-      आज मेनू कुछ अच्छा नहीं लगदा है.
  • सरदारजी:-          क्यों किसी नाल कोई झगड़ा कीत्ता है? 
  • करतार सिंह:-       (अपना बदन दिखते हुए) साडे नाल कौन झगड़ सकता है?
  • सरदार जी:          तो फिर गल की है, दसौ मैनू.  कोई स्पेशल डिमांड है. कुड़माई करनी है,  कोई कुड़ी पसंद आ गयी.                                                                                  
  • करतार सिंह:-       नहीं चाचे. मैनु कोई कुड़माई नहीं करनी है, पर मेरा मन यहाँ पढ़ने को  नहीं करदा. मैं इत्थों नहीं                          पढ़ना चाहता. 
  • सरदारजी:-            ओए,  पुत्तर पढ़न वास्ते पंजाब तो उडीसा आया, पढ़ेगा नही तो की करेगा?
  • करतार सिंह:          मैं पढ़ने वास्ते अमेरिका जाना चाहता हूँ. तुसी मैनू अमेरिका जान वास्ते पैसे दे दो.
  • सरदार जी :-          मैं ऐवें किंवे सकदा हूँ. पापा कोनो इजाजत लेनी पयगी.
  • करतारसिंह:-          मैं कुछ नही जांदा, तुसी मेरे प्यारे चाचा हो, त्वानू ही सारा बंदोबस्त करना पायगा, चाहे बाबा नाल गल  करो या नहीं करो.  
यह तो हुई घर की बात. करतार सिंह अमेरिका चले जाते हैं,  पढ़ाई के लिए. फूलों के बगीचे में काम करके पैसा इकट्ठा कर कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में प्रवेश तो पा लिए थे लेकिन अमेरिका में भारतीयों को 'टॉमी कुली' कहकर पुकारने से आहत होते थे. लाला हरदयाल जी से इनका परिचय एवं संपर्क होता है.  'ग़दर' नामक अखबार निकाला. 'काममाय गारू'  जलयान की घटना से आहत होकर करतार सिंह सराबा भारत आ गए. रास बिहारी बोस, विष्णु गणेश पिंगले आदि क्रांतिकारियों से संपर्क स्थापित हुआ. दल के लिए हथियार जुटाने हेतु धनी व्यक्तियों के घर डाके डालने की योजना बनी. डाके डालने शुरू कर दिए थे. एक ऐसी जगह डाका डालने पहुँच गए थे इनके साथी जहाँ माँ व बेटी ही रहती थीं.  उनके गहने कपडे इक्कट्ठे कर लिए गए थे. दरअसल बेटी की शादी होने वाली थी. करतार सिंह को यह सब नागवार गुजरा. अपने साथियों को फटकार लगाई. वह माँ भी कम  नही थी भारत की आजादी के लिए कुछ गहने रख बाकी सब सौप दी  थी इन क्रांतिकारियों को.  पर इस घटना के बाद इन क्रांतिकारियों ने लूट और डाके डालना बंद कर दिए. दूसरे तरीकों से हथियार जमा करने लगे. इन लोगों ने अंग्रेजों की छावनियों में विद्रोह के बीज बो दिए. 21 फरवरी 1915 विद्रोह के लिए तारीख चुनी गयी. लेकिन गद्दारों के कारण इस योजना का भांडा फूट गया, कुछ साथी पकडे गए, रास बिहारी बोस, विष्णु गणेश पिंगले आदि कुछ प्रमुख क्रांतिकारी बच निकले. करतार सिंह सरबा और उनके कुछ साथी भी बच निकले लेकिन जोश में आकर गलती कर बैठने से वे पकडे गए . जेल से निकालकर भागने की योजना भी एक साधारण कैदी की मुखबिरी से ठप्प हो गयी.                                      प्रथम लाहौर षड्यंत्र के केस के नाम से 61 अभियुक्तों पर 3  जजों की पीठ में मुकदमा चला. इनमें एक न्यायाधीश भारतीय और दो अंग्रेज थे. फांसी की सजा होती है. फांसी लगने से एक दिन पूर्व करतार सिंह के चाचा उनसे मिलने जेल पहुँचते हैं. यहाँ दोनों के बीच हुए वार्तालाप  की ओर  ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा;
  • चाचा:-  पुत्तर. तू साडे खानदान दा चिराग है, सारे वीरान हो जावांगे मर्सी अपील नु साइन कर दे. फांसी तो बच जाएंगा. तेरे सहारे जिन्दगी साडी वी कट जावेगी.
  • करतार सिंह:-  चाचे, पापाजी कित्थे ने.
  • चाचा:- ओए पुत्तर ओ तेरे जनम के इक साल बाद ही रब नू प्यारे हो गए.
  • करतार सिंह:- चाचे साडे मामे कित्थे ने.
  • चाचा:- ओए तेनू नई पता, वे तो प्लेग नाल चल बसे.
  • करतार सिंह:- चाचे, निक्की कित्थे?
  • चाचा:- (चाचा की आँखों में आंसू आ गए.) मेरी प्यारी कुड़ी तो हैजे नाल चल बसी.
करतार सिंह:- हैजे नाल, प्लेग नाल, खांसते खांसते, बीमारी नाल मरना कोई मरना है. मैं इयोजी मौत मरना चाहंद हा कि लोग कई सदियों तक याद रखें. मेरी मौत देशवासियों वास्ते ही नहीं हर गुलाम देश दे नौजवां वास्ते  बलिदान दी प्रेरणा दें दी रहे. चाचाजी मैनू इस मौत तों मत रोको. आशीर्वाद दियो मैनूं, रब तो अरदास करो, मैं फिर तो भारत विच जनम लवां और अंग्रेजा नू मार भगावां. बाबे नू चाई जी नू पैरा पौना. सत् श्री अकाल, वाहे गुरु दी खालसा, वाहे गुरु दी फतह! वन्दे मातरम्. तुसी वी इक वार जोर नाल बोलो- वन्दे मातरम्.!
पता नही,   करतार सिंह जी का यदि पुनर्जन्म हुआ होगा तो आजाद भारत के बारे में क्या सोच रहे होंगे. 
जय जोहार........

शुक्रवार, 11 जून 2010

खोटे सिक्के क्यों चलाता है











स्वतन्त्र देश में 
लागू होता है हम पर
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार 
चलती है लेखनी हमारी 
जिसमे होती नही धार
आता नहीं है हमें किसी से लेना उधार 
प्रतिबिम्ब हमारा कहता है हमसे 
मालूम है तुझे सिर्फ "नकद" में 
विश्वास करना आता है 
पर खोटे सिक्के क्यों चलाता है 
जमा कर दे इन्हें टकसाल में 
गलने दे, नए सिक्के बन के निकलने दे 
खनकने दे ब्लॉग जगत में 
देखते रह जायेंगे, तू अपना सिक्का 
कैसे जमाता है. 
वस्तुतः यह मन में उद्वेलित होते विचार हैं.  साहित्य की पुस्तकें, कवितायें उपन्यास आदि पढने का विशेष  शौक नहीं है या कहूं उतना समय नहीं दे पाता. अंग्रेजी में जिसे वोकबुलारी कहते हैं याने शब्दों का खजाना और फिर उसे सजाना यह उस स्तर तक, मुझे लगता है, पहुँच नही पाया है. इसीलिए मैंने सिक्कों और टकसाल का प्रयोग लेख और बड़े बड़े साहित्यकारों की रचनाओं का हिंदी व्याकरण सहित स्वतः  के   गहन अध्ययन के लिए किया है. इस जगत में आकर मुझे इसे और सजाने की प्रेरणा मिलते रहती है. यह पोस्ट मैंने अपने ऊपर लिखा है. कोई इसे अन्यथा ना लें.   अंत में आप सभी के आशीर्वाद की कामना के साथ 
जय जोहार...........

बुधवार, 9 जून 2010

तवा गरम है सेंक लो रोटी



कहावत है तवा गरम है सेंक लो रोटी.  मतलब समय अनुकूल है, परिस्थितियाँ ऐसी निर्मित हो गई हैं कि आप अपना काम बनवा सकते हैं, अपना उल्लू सीधा कर सकते हैं. रोटी कैसी बनती है, कैसी सिकती है, कैसा स्वाद रहता है यह अन्य बातों यथा आटे के प्रकार, रोटी के आकार आदि के अलावा  निर्भर करता है तवे पर पड़ने वाली आंच कितनी है. तवा गरम किस प्रकार हो रहा है मसलन चूल्हे पर  रखा है, कोयले वाली सिगड़ी पर रखा तवा है, स्टोव पर रखा तवा है, या गैस चूल्हे पर रखा तवा है.  हमारे देश में तो वैसे गैस चूल्हे का प्रचलन ज्यादा हो चला है फिर भी गाँव में, अभी भी मिटटी के चूल्हे का प्रयोग होता है जिसमें  कंडे व लकड़ी जलाकर भोजन आज भी पकाया जाता है. शहरों में भी नीचे तबके के लोगों में इसी चूल्हे या स्टोव, सिगड़ी आदि उपयोग में लाये जाते हैं.  वैसे मैं भी गाँव में रहा हुआ हूँ और मुझे चूल्हे में पकाया हुआ भोजन सबसे स्वादिष्ट लगता था. आज कितने दिन हो गए ऐसा भोजन नसीब हुए पता नहीं.  भाई जैसे भी हो उदर के भीतर  भभक रही  भूख की ज्वाला को शांत करने के लिए जरूरी है रोटी.     

                                                       आज इस कहावत का उपयोग होता है अपनी भड़ास निकालने के लिए अथवा आकस्मिक अप्रत्याशित घटनाओं के लिए सरकार द्वारा तत्काल  उपलब्ध कराई  जा रही आर्थिक सहायता का लाभ लेने के लिए, ( हक़दार न होते हुए भी साबित करके  कि हम हकदार हैं ). हम लिखते लिखते रास्ता भटक जाते हैं. अब तवा गरम करने कि लिए यहाँ इंधन किस किस प्रकार का मिल जाता है यह कहना चाह रहे थे. इस प्रकार का इंधन एक पक्ष  (सत्ता पक्ष) के लिए दुखदायी हो जाता है तो विपक्ष के लिए वास्तव में रोटी सेंकने का बढ़िया साधन. इंधन उपलब्ध कैसे हो जाते हैं, जरा गौर फरमाइयेगा; 
  1. लम्बी अवधि से किसी आयोग द्वारा किये जा रहे जांच की रिपोर्ट आ जाना
  2. किसी घोटाले का उजागर हो जाना 
देश के किसी भी स्थान में आतंकवादी, नक्सलवादी, आदि आदि बड़े हमले हो जाना और जन  हानि होना  कहीं कहीं प्राकृतिक आपदा का आक्रमण हो जाना और उसमे भी जन-हानि हो जाना ..........मुद्दे जो इंधन का काम करे बहुत हैं.....  बस क्या है शुरू हो जाती है लोगों (बड़े बड़े जन प्रतिनिधियों) की बयानबाजी, एक दूसरे पर दोषारोपण.  उन्हें मालूम रहता है की ये सब जो बयानबाजी रुपी रोटियां सेंकी जा रही है वह वक्त आने पर काम आएँगी. और वह वक्त होगा "आम चुनाव".    ...................
जय जोहार.....                                            

मंगलवार, 8 जून 2010

पोस्ट और मित्रों के आशीर्वाद (टिपण्णी)

"ॐ हं हनुमते नमः " = बात पते की +  ताकीद करने का ढंग एकदम से हथौड़े की मार जैसा न हो + रविवार अवकाश, काश बीता होता छुट्टी जैसे 


हमारे ये तीनो पोस्ट तीन (३) का पहाड़ा कह रहा है.  पूछेंगे कैसे?  देखिये तीन पोस्ट पर तो भैया ३-३ दुआएं मिली हैं.  चौथी पोस्ट पर ९ लोगों की प्रतिक्रया मिली है. सो हुआ कि नही? 


तात्पर्य:- ९  = ३+३+३


अनायास  इस तरह के संयोग बन जाते हैं.


जय जोहार.........

फैसले ने कुरेदा है लोगों का गम

भीषण गैस त्रासदी झेला  सन उन्नीस सौ चौरासी वाला साल
मध्य प्रदेश की राजधानी, शहर है वह भोपाल 
अदालती कार्रवाई में लग गए पचीस साल
इतनी लम्बी अवधि में बिसर गया था लोगों का ख्याल 
न्यालाय होता है सम्माननीय, कुछ न कहेंगे हम
अफ़सोस है इस बात का, फैसले ने कुरेदा है लोगों का गम
प्रकरण चाहे "अफजल" का हो चाहे हो इसमें "कसाब"
पारित करना होगा कानून ऐसा जिसमे थोड़ा हो "कसाव" 
लोगों की प्रतिक्रिया: देखिये दैनिक भास्कर का मुख पृष्ठ 
"15 हजार मौतें, सजा दो साल";
"पुलिस के कड़े बंदोबस्त के बीच हुए इस फैसले पर मानवाधिकार संगठनों तथा गैस पीड़ितों ने असंतोष जताया है. भोपाल ग्रुप ऑफ़ इन्फर्मेशन एंड एक्शन के कार्यकर्ता सतीनाथ षडंगी के मुताबिक, इस फैसले से पीड़ितों को लगता है की दुनिया की साबसे भीषण त्रासदी किसी सड़क दुर्घटना में बदल गयी है" 
जय जोहार.......

सोमवार, 7 जून 2010

ए का जिनिस ए = यह क्या चीज है

आनी बानी के बियन्जन अउ ओखर नाव। काला बचांव अउ काला खांव. एखरे ऊपर एक किस्सा के सुरता आगे. एक झन गवैंहा हा हलवाई  के दुकान माँ जाथे अउ कई परकार के चीज माढ़े रथे ओमा ले एक मा इशारा करके पूछथे जी. ए का जिनिस ए कहिके. हलवाई कथे "खाजा" . ओला कहानी समझ मा नई परे सोचथे कइसे गोठियाथे हलवाई हा? खा जा कहत हे. फेर पूछथे: ये का जिनिस ए ? फेर उही जवाब; "खाजा". ओ गवैंहा के भेजा मा नई घुसरै. दू तीन पईत दोहराथे. जवाब मा कोनो बदलाव नहीं. अब ओखर दिमाग चढ़ गे रथे. शुरू कर देथे खाए बर. हलवाई परेशान. कथे " अरे अरे ये क्या कर रहा है ?" जवाब पाथे काय करत हौं अतेक जुवार होगे पूछत मोला के ये का जिनिस आय तैं  कहत हस "खा जा" त खाथौं अउ काय. हलवाई अब काय बोलै.....
बियंजन = पकवान 
नाव = नाम
माढे रथे = रखा रहता है                                                  
काला खांव = किसको खाऊं
 काला  बचांव = किसको बचाऊं
सुरता = याद 
गवैंहा = देहाती 
सुरता आगे = याद आ गया 
परकार = प्रकार 
ओमा ले = उसमे से 
जिनिस = चीज 
पूछथे = पूछता है 
गोठियाथे = बताता है या कहता है 
उही = वही 
दू तीन पईत = दो तीन बार 
भेजा माँ नई घुसरै = समझ में नहीं आता या भेजे में नई घुसता.
दिमाग चढ़ जाथे = जोश में आ जाना आवेग में आ जाना या कहें दिमाग गरम हो जाना 
काय करत हौं = क्या कर रहा हूँ 
अतेक जुवार होगे = इतनी देर हो गयी. 
हलवाई अब काय बोलै = हलवाई अब क्या बोले 
मित्रों अब हमारी ये  मीठी बोली (गुरतुर गोठ) समझ में आ ही जावेगी.  
जय जोहार.......

ताकीद करने का ढंग एकदम से हथौड़े की मार जैसा न हो

च च च........। स्सारे लोगों को लालसा रहती है,  हमारी पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा लोगों की दुआएं मिले, प्रतिक्रिया मिले. चाहे वह वरिष्ठ हो या कनिष्ठ. इस बात को लिखने के लिए हमें भी उत्साहित किया इस पोस्ट ने "तिकड़म से ही मिलती हैं टिप्पणि." बात सौ टके सही है जी. सार्थक टिपण्णी करना यह दर्शाता है आप सचमुच उस पोस्ट को कितनी रूचि के साथ गहराई से पढ़ते हैं. और एक बात और यदि ना पसंद है तो क्यों ? यह भी यदि लिख दिया जाय तो बात ही क्या बस ताकीद करने का ढंग एकदम से हथौड़े की मार जैसा न हो.  जय जोहार........

बात पते की

आप कितने धनी हैं  इसे सम्पत्ति के बल  पर ना तौले
असली धनी तो  वह  है जिसकी आँख से एक बूँद भी आंसू टपकने लगे
तो हजारों हाथ उसे पोंछने के लिए तत्पर दिखें
जय जोहार.........

रविवार अवकाश, काश बीता होता छुट्टी जैसे

रविवार अवकाश, काश बीता होता छुट्टी जैसे
 लिख ना पाए पोस्ट एक भी, यह  हो सकता था कैसे
फुर्सत पाए, पर फ़ुरसतिया न कहाए
बैठ गए अब बन निशाचर,
झांके हैं चंद पोस्ट,  ब्लॉगर मित्रों के
ले दे के ये चार लाईना हमहू लिख पाए
लिख़ा गया है  कुत्ता पुरान फिर
हमसे चुप न रहा गया
नम्र निवेदन करते हुए,  बंद करने यह सब
टिपण्णी के रूप में कहा गया
मत करिए तुलना पशु पक्षियों से, अरे ये मानव से महान हैं
इनका स्वभाव इनकी प्रकृति है निश्चित
हम मानस परखे बिन जाने कैसे,  भले मानुस या शैतान है
 कुत्ता, जिसे स्वान भी कहा गया है इसकी महत्ता देखिये; (जानते सभी हैं)
"काक चेष्टा बको ध्यानं स्वान निद्रा तथैव च 
अल्पहारी गृहत्त्यागी विद्यार्थिम पञ्च लक्षणं "
अर्थात विद्यार्थी वही होता है  कौवे के समान चेष्टा करता है, बगुले के समान जिसका ध्यान हो याने कंसंट्रेशन, कुत्ते के समान जो नींद सोता हो तात्पर्य सतर्क होकर सोना खटक की आवाज में भी नींद खुल जाए, सुपाच्य व कम भोजन करे जिससे अध्ययन में भारीपन न लगे और   घर गृहस्थी में रमने वाला न हो घर का त्याग करे. अब इसमें कौवा, बगुला, और कुत्ता तीनो पक्षियों/पशु  का उदाहरण दिया गया है. ऐसा नहीं है कि मैंने कोई नई बात लिख दी हो. सभी जानते हैं.
जय जोहार...............

शनिवार, 5 जून 2010

"ॐ हं हनुमते नमः "


"ॐ हं हनुमते नमः "
विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर श्री रामचरित मानस के पंचम सोपान "सुन्दरकाण्ड" के छंद क्रमांक २ की पहली पंक्ति "बन बाग़ उपबन बाटिका, सर कूप बापीं सोहही  "दशानन" की लंका का दृश्य है.  वीर हनुमान ने लंका प्रवेश करते समय पर्वत पर चढ़कर यह दृश्य देखा था.  बन, बाग़, उपवन(बगीचे), फुलवारी, तालाब, कुएं और बावलियां सुशोभित हैं. तात्पर्य पर्यावरण की रक्षा की आवश्यकता व अनिवार्यता आज की ही आवश्यकता नहीं है.   
jay johaar...............   


    वीरान धरती एवं पेड़ों की लाशें

    (1)
    सुबह सुबह उठकर 
    दौडाता हूँ नजर, अपने घर की 
    चार दीवारी के भीतर  सजाये हुए 
    हरे भरे बगीचे की ओर
    अरे! यहाँ तो मुरझा गये हैं  पेड़, 
    हरी हरी दूब सूखी घास हो गई है.
                              पानी नहीं डाला है,दो दिनों से बगीचे में.                       


    (2)
    प्रातः भ्रमण में निकल पड़ा
     चलते चलते पहुचता हूँ उस जगह
    जहाँ हरा भरा घना  जंगल हुआ करता था 
    देखता हूँ, धरती तप रही है 
    वीरान पड़ी हुई है 
    कम से कम पेड़ों की लाशें तो दिख जाती। 


    (भाई रेखाएं दिखाई नही पड़ रही हैं मिट गई है)




    (3)
    देखता हूँ  इस वीरान धरती पर
    निश्चित सीमा निर्धारित करती हुई
     चूना पाउडर से लकीरें खींची गई है
     कोई लौह धातु निर्माण का  कारखाना
    खोलने जा रहा है
    चहुँ ओर फैलेगा काले धुंए का जहर
    किन्तु बढती मंहगाई बेरोजगारी में सहायक होगा
    शांत करने में भूख की ज्वाला


    भूख की तो ज्वाला शांत होनी ही चाहिए किन्तु प्रकृति से खिलवाड़ कर नहीं. कल कारखाने तीव्र गति से खुल रहे हैं. शासन से आदेश होता है, प्रदूषण नियंत्रक यंत्र अवश्य लगाए जाएँ. किन्तु क्या सचमुच लग पाता है. यदि आपने हरी  भरी वादियों वाली जगह को वीरान कर संयंत्र स्थापित कर दिया तो क्या आपने पर्यावरण को बचाए रखने के लिए अनुपूरक कार्य किया है? आखिर पृथ्वी पर तापमान इतना क्यों बढ़ रहा है? सीधी सी  बात है प्रकृति से खिलवाड़. आज विश्व पर्यावरण दिवस है आइये संकल्प लें बाग़ बगीचे न उजाड़ें बल्कि ज्यादा ज्यादा से पेड़  लगायें. केवल लगाएं ही नहीं पर्याप्त देखभाल भी करें.  (ज्यादा तकनीकी ज्ञान नहीं इसमें तस्वीरें सजाने का..... तस्वीरों में घर के सामने का छोटा सा बगीचा , और गूगल से...... साभार.)
    जय जोहार............ 

    गुरुवार, 3 जून 2010

    "आचार्य जी" का प्राकट्य

    गीता के महात्म्य से कौन अनभिज्ञ होगा. हमने देखा आज कल ब्लॉग जगत में "आचार्य जी" का प्राकट्य  यत्र तत्र सर्वत्र हो रहा है . स्वलिखित ग्रन्थ में सद्विचार की धारा प्रवाहित कर रहे हैं. आचार्य शब्द का प्रयोग प्रथम अध्याय में ही समरभूमि कुरुक्षेत्र में  गुरु द्रोणाचार्य के लिए दुर्योधन ने किया है; एक बात और कही जा सकती है उस अर्थात द्वापर युग में कल पुर्जे कहाँ रहे होंगे. आज की तरह दूर दर्शन, अंतरजाल (इंटरनेट) आदि आदि ....! किन्तु मनुष्य अपने तप से, साधना से ऊर्जावान अवश्य रहता था. दिव्य चक्षु प्रदत्त थे. (प्रत्येक मनुष्य दिव्य चक्षु प्रदत्त भले न रहा हो किन्तु तपस्वी के पास यह शक्ति अवश्य रही होगी अथवा ईश्वर से ऐसा वरदान प्राप्त रहा हो) यही कारण है की संजय कौरवों के पिता  धृतराष्ट्र को कुरुक्षेत्र में हो रही घटनाओं का आँखों देखा हाल बताने में सक्षम रहे. 

    "दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढम दुर्योधनस्तदा 
    आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत"

    श्लोक का अर्थ तो यह है कि "संजय बोले (वास्तव में संजय धृतराष्ट्र के यह  पूछने पर कि धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्रित युद्ध की इच्छा वाले कौरवों और पांडवों के पुत्रों ने क्या किया,  कहते हैं) उस समय राजा दुर्योधन ने यूह रचनायुक्त पांडवों की सेना को देखकर और द्रोणाचार्य के पास जाकर यह वचन कहा .(श्लोक क्रमांक दो) यह कुरुक्षेत्र के यूद्धस्थल में सैन्य निरीक्षण का प्रसंग है.  गीता के श्लोकों का बड़े बड़े आचार्यों ने वृहत विश्लेषण किया है. उन्ही संतों में से एक श्री श्रीमद ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद; संस्थापकाचार्य: अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ: द्वारा इस श्लोक की व्याख्या इस प्रकार की गई है; 
    धृतराष्ट्र जन्म से अंधा था. दुर्भाग्यवश वह आध्यात्मिक दृष्टि से भी वंचित था. वह यह भी जानता था कि उसी के समान उसके पुत्र भी धर्म के मामले में अंधे हैं और उसे विश्वास था कि वे पांडवों के साथ कभी भी समझौता नही कर पायेंगे क्योंकि पाँचों पांडव जन्म से ही पवित्र थे.  फिर भी उसे तीर्थस्थान के प्रभाव के विषय में संदेह था.  इसीलिए संजय युद्धभूमि की स्थिति के विषय में उसके प्रश्न के मंतव्य को समझ गया. अतः वह निराश राजा को प्रोत्साहित करना चाह रहा था. उसने उसे विशवास दिलाया कि उसके पुत्र पवित्र स्थान के प्रभाव में आकर किसी प्रकार का समझौता करने नही जा रहे हैं. उसने राजा को बताया कि उसका पुत्र दुर्योधन पांडवों की सेना को देखकर तुरंत अपने सेनापति द्रोणाचार्य को वास्तविक स्थिति से अवगत कराने गया.  यद्यपि दुर्योधन को राजा कहकर संबोधित किया गया है तो भी स्थिति की गंभीरता के कारण उसे सेनापति के पास जाना पड़ा.  अतएव दुर्योधन राजनीतिग्य बनने के लिए सर्वथा उपयुक्त था. किन्तु जब उसने पांडवों की व्यूह रचना देखी तो उसका कूटनीतिक व्यवहार उसके भय  को छिपा न पाया.   

                                                           धन्य हैं  आचार्य जी कम से कम आपके प्राकट्य ने हमें थोड़ा धर्मग्रन्थ की ओर झाँकने को प्रेरित किया.  सादर नमन........ 
    जय जोहार......

    अमृत वाणी

    आप सभी को सुप्रभात! आज शीघ्रतातिशीघ्र कार्यालय पहुन्चना  है अतएव  इन शब्दों के  साथ;
    "संसार के कटु वृक्ष का एक ही फल अमृत के समान है - सज्जन पुरुषों कि संगति"
    आप सभी के खुशमय दिन कि कामना करते हुए 
    जय जोहार......... 

    बुधवार, 2 जून 2010

    धडाधड महराज चिट्ठा जगत

    अभी कुछ सूझ नहीं रहा है, सोचा एक बार फिर ब्लॉग में प्रयुक्त होने वाले शब्दों की ओर चलूँ. ध्यान गया ब्लॉगवाणी  के नीचे लिख़ा "धडाधड महराज चिट्ठा जगत" चलिए देखते हैं इस पर क्या लिखते बनता है;
    धडाधड महराज चिट्ठा जगत
    दोस्तों ये ब्लॉग की दुनिया है 
    खोल लीजिये खाता
    ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ते नहीं 
    ले लीजिये अन लिमिटेड डाउन लोड वाली स्कीम 
    लिखते जाइए, जो जी में आये फ़क़त 
    लेकिन ध्यान रहे, और करें श्री बी. एस. पाबला जी की 



    बहुत ज़हर उगल लिया लेकिन क्या अब कानूनी कार्रवाई के लिए तैयार हैं "


     पे गौर 
    यदि नहीं किये गौर तो पता नहीं कहाँ हो सकती है आपकी ठौर 

    जय जोहार......

    "धरती पर रहें ज्यादा उछल कूद ठीक नहीं"

    बुद्धू बक्सा जिसे कहा जाता है, हम भी कभी कभी चाव से समाचार चेनल, हास्य धारावाहिक दिखाया जाने वाला सब चेनल, गीत संगीत का कार्यक्रम देखते हैं. कल इंडियन आइडल में यह कार्यक्रम चल रहा था. प्रत्येक प्रतिभागी  अपनी प्रतिभा से कार्यक्रम की शोभा बढ़ा  रहे थे. राजस्थान के किसी गाँव से आया युवक भी इसमें जमा हुआ है. कल उसके द्वारा पंकज उधास (कृपया यदि वे अपना उपनाम 'उदास' लिखते हों तो 'उदास' समझा जावे) जी का गजल "चिट्ठी आई है" कुछ राजस्थानी लहजे में गाया गया. हमें भी सुर ताल का ज्ञान न होने के बावजूद थोड़ा फीका लगा. पर एक बात जो हमारे दिल में घर कर गई वह यह कि निर्णायक  मंडल में बैठे अनु मलिक जी ने फटकार लगाते हुए उसे कहा "गाँव से इस स्तर तक पहुँच कर तुम अपनी लगन भूल चुके हो अपने आपको राजा समझने लगे हो" चाहे अपना समझकर क्यों न कहा गया हो, इससे प्रतिभागी के मन में क्या लगा होगा? हम भी इसीलिए सोचते हैं कि भैया "धरती पर रहें ज्यादा उछल कूद ठीक नहीं". थोड़ा विनोदी स्वभाव के होने के कारण कुछ फिसल जाते होंगे तो उसके लिए अपना खेद प्रकट करते हैं.............जय जोहार...  

    क्रोध पर नियंत्रण

    क्रोध पर नियंत्रण का बोध हुआ कि नही (जानते सभी हैं, पर ......)
    आचार्य जी के दर्शन कैसे होंगे, कौन हैं,
    इस पर शोध हुआ कि नहीं,
    इन्हें कहा जाय, शान्ति के उपाय
    शीघ्र बताएं. वैसे क्रोध हमें है नहीं सताय
    हरि ॐ तत्सत!
    और चूंकि छत्तीसगढ़ी हमारी मात्री बोली है
    इसलिए
    जय जोहार.........

    मंगलवार, 1 जून 2010

    आज तारीख है एक जून

    आज  तारीख है एक जून 
    दैनिक अखबार "दैनिक भास्कर"
    का मुखपृष्ठ सजा है बड़े बड़े अक्षरों
    में लिखे शीर्षक से "गर्मी के दिन चार"
    याने कुछ ही दिनों में प्रवेश 
    करेगा मान सून, आएगी बरखा बहार 
    हे ईश्वर मत पड़ने देना  काली छाया 
     "सूखे" की, न ही दिखाना बाढ़ का
    विकराल रूप, न फेर देना पानी किसानो
    की उम्मीदों पर, बाट जोहते रहता है
    निहारते रहता है आसमा की ओर 
    होता है वह महीना अंग्रेजी का "जून"
    कम से कम मिलेगी तो रोटी उसे एक जून 
    जय जोहार........