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शनिवार, 12 जून 2010

गुलाम भारत के सपूतो मे आजादी पाने का जुनून

गुलाम भारत के सपूतो मे आजादी पाने का जुनून
स्वतन्त्र भारत के सपूतों को 
एशो आराम की जिन्दगी बिताने में ही मिलता है सुकून 
डॉक्टर आलोक कुमार रस्तोगी जी द्वारा लिखी पुस्तक क्रान्ति नायक पढ़ रहा था. इस पुस्तक में शहीद क्रांतिकारी नायकों के जीवन पर आधारित एकांकी संकलन है. क्या जूनून था माँ भारती को अंग्रेजों की गुलामी की बेड़ियों से आजाद कराने का. क्रांतिकारियों के करतब, उनके साथ अंग्रेजों के व्यवहार, उद्देश्य की पूर्ति हेतु अर्थात अपने देश को आजाद करने जिद्द पर अड़े रहने क्रूर अंग्रेजों के मार सहते सहते प्राणों की आहुति देने का मार्मिक चित्रण है. जिन क्रांतिकारियों के बारे में लिख़ा गया है उनके नाम हैं; लाला हरदयाल, रासबिहारी बोस, ठाकुर केसरी सिंह, करतार सिंह सराबा, पंडित परमानंद, वीर तात्या टोपे, असफाक उल्ला खां, बंता सिंह, सुखदेव, दामोदर चाफेकर, गोविन्दराम वर्मा, बिरसा मुंडा, बाबा पृथ्वीसिंह आजाद, वीरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय, सरदार अजीत सिंह, अमृतलाल, बाघा जतिन, मदन लाल धींगरा, शचीन्द्रनाथ सान्याल, रानी गान्दयु, बिशमसिंह कूका, बन्दा  बैरागी और उधमसिंह.  इनके बारे में एकांकी के रूप में वर्णन कर सटीक जानकारी प्रस्तुत की गई है. प्रस्तुत है वीर क्रांतिकारी करतार सिंह सराबा के क्रांतिकारी विचारों का  प्रहसन के रूप में प्रस्तुतीकरण; 
                                                                          करतार सिंह 
(घर का दृश्य)
(एक किशोर चारपाई पर बैठा है. गृह स्वामी सरदार जी घर में प्रवेश करते हैं.)

  • सरदार जी:-        ओए, करतारा की गल है. तुसी घर में घुसा बैठा है. 
  • करतार सिंह:-      आज मेनू कुछ अच्छा नहीं लगदा है.
  • सरदारजी:-          क्यों किसी नाल कोई झगड़ा कीत्ता है? 
  • करतार सिंह:-       (अपना बदन दिखते हुए) साडे नाल कौन झगड़ सकता है?
  • सरदार जी:          तो फिर गल की है, दसौ मैनू.  कोई स्पेशल डिमांड है. कुड़माई करनी है,  कोई कुड़ी पसंद आ गयी.                                                                                  
  • करतार सिंह:-       नहीं चाचे. मैनु कोई कुड़माई नहीं करनी है, पर मेरा मन यहाँ पढ़ने को  नहीं करदा. मैं इत्थों नहीं                          पढ़ना चाहता. 
  • सरदारजी:-            ओए,  पुत्तर पढ़न वास्ते पंजाब तो उडीसा आया, पढ़ेगा नही तो की करेगा?
  • करतार सिंह:          मैं पढ़ने वास्ते अमेरिका जाना चाहता हूँ. तुसी मैनू अमेरिका जान वास्ते पैसे दे दो.
  • सरदार जी :-          मैं ऐवें किंवे सकदा हूँ. पापा कोनो इजाजत लेनी पयगी.
  • करतारसिंह:-          मैं कुछ नही जांदा, तुसी मेरे प्यारे चाचा हो, त्वानू ही सारा बंदोबस्त करना पायगा, चाहे बाबा नाल गल  करो या नहीं करो.  
यह तो हुई घर की बात. करतार सिंह अमेरिका चले जाते हैं,  पढ़ाई के लिए. फूलों के बगीचे में काम करके पैसा इकट्ठा कर कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में प्रवेश तो पा लिए थे लेकिन अमेरिका में भारतीयों को 'टॉमी कुली' कहकर पुकारने से आहत होते थे. लाला हरदयाल जी से इनका परिचय एवं संपर्क होता है.  'ग़दर' नामक अखबार निकाला. 'काममाय गारू'  जलयान की घटना से आहत होकर करतार सिंह सराबा भारत आ गए. रास बिहारी बोस, विष्णु गणेश पिंगले आदि क्रांतिकारियों से संपर्क स्थापित हुआ. दल के लिए हथियार जुटाने हेतु धनी व्यक्तियों के घर डाके डालने की योजना बनी. डाके डालने शुरू कर दिए थे. एक ऐसी जगह डाका डालने पहुँच गए थे इनके साथी जहाँ माँ व बेटी ही रहती थीं.  उनके गहने कपडे इक्कट्ठे कर लिए गए थे. दरअसल बेटी की शादी होने वाली थी. करतार सिंह को यह सब नागवार गुजरा. अपने साथियों को फटकार लगाई. वह माँ भी कम  नही थी भारत की आजादी के लिए कुछ गहने रख बाकी सब सौप दी  थी इन क्रांतिकारियों को.  पर इस घटना के बाद इन क्रांतिकारियों ने लूट और डाके डालना बंद कर दिए. दूसरे तरीकों से हथियार जमा करने लगे. इन लोगों ने अंग्रेजों की छावनियों में विद्रोह के बीज बो दिए. 21 फरवरी 1915 विद्रोह के लिए तारीख चुनी गयी. लेकिन गद्दारों के कारण इस योजना का भांडा फूट गया, कुछ साथी पकडे गए, रास बिहारी बोस, विष्णु गणेश पिंगले आदि कुछ प्रमुख क्रांतिकारी बच निकले. करतार सिंह सरबा और उनके कुछ साथी भी बच निकले लेकिन जोश में आकर गलती कर बैठने से वे पकडे गए . जेल से निकालकर भागने की योजना भी एक साधारण कैदी की मुखबिरी से ठप्प हो गयी.                                      प्रथम लाहौर षड्यंत्र के केस के नाम से 61 अभियुक्तों पर 3  जजों की पीठ में मुकदमा चला. इनमें एक न्यायाधीश भारतीय और दो अंग्रेज थे. फांसी की सजा होती है. फांसी लगने से एक दिन पूर्व करतार सिंह के चाचा उनसे मिलने जेल पहुँचते हैं. यहाँ दोनों के बीच हुए वार्तालाप  की ओर  ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा;
  • चाचा:-  पुत्तर. तू साडे खानदान दा चिराग है, सारे वीरान हो जावांगे मर्सी अपील नु साइन कर दे. फांसी तो बच जाएंगा. तेरे सहारे जिन्दगी साडी वी कट जावेगी.
  • करतार सिंह:-  चाचे, पापाजी कित्थे ने.
  • चाचा:- ओए पुत्तर ओ तेरे जनम के इक साल बाद ही रब नू प्यारे हो गए.
  • करतार सिंह:- चाचे साडे मामे कित्थे ने.
  • चाचा:- ओए तेनू नई पता, वे तो प्लेग नाल चल बसे.
  • करतार सिंह:- चाचे, निक्की कित्थे?
  • चाचा:- (चाचा की आँखों में आंसू आ गए.) मेरी प्यारी कुड़ी तो हैजे नाल चल बसी.
करतार सिंह:- हैजे नाल, प्लेग नाल, खांसते खांसते, बीमारी नाल मरना कोई मरना है. मैं इयोजी मौत मरना चाहंद हा कि लोग कई सदियों तक याद रखें. मेरी मौत देशवासियों वास्ते ही नहीं हर गुलाम देश दे नौजवां वास्ते  बलिदान दी प्रेरणा दें दी रहे. चाचाजी मैनू इस मौत तों मत रोको. आशीर्वाद दियो मैनूं, रब तो अरदास करो, मैं फिर तो भारत विच जनम लवां और अंग्रेजा नू मार भगावां. बाबे नू चाई जी नू पैरा पौना. सत् श्री अकाल, वाहे गुरु दी खालसा, वाहे गुरु दी फतह! वन्दे मातरम्. तुसी वी इक वार जोर नाल बोलो- वन्दे मातरम्.!
पता नही,   करतार सिंह जी का यदि पुनर्जन्म हुआ होगा तो आजाद भारत के बारे में क्या सोच रहे होंगे. 
जय जोहार........

4 टिप्‍पणियां:

दिलीप ने कहा…

yahi junoon to tha jisse angrej dar ke bhaage the...varna ahinsa se kya mila bas laathiyan aur gaaliyan...jay johaar...aur jay kartaar

कडुवासच ने कहा…

... प्रभावशाली व प्रसंशनीय पोस्ट!!!

दीपक 'मशाल' ने कहा…

ऐसी देशभक्ति से भरी पोस्ट को समय से नहीं पढ़ा.. माफ़ कीजिएगा..

शरद कोकास ने कहा…

सही है मरना हो तो ऐसे ही मरना है