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शुक्रवार, 28 मई 2010

विश्व में हिंदी भाषा का स्थान क्या है

हमारे देश की विशेषता क्या है यह प्रायः सभी जानते हैं.  अनेकता में एकता इसी राष्ट्र में देखने को मिलती है. अलग अलग भाषा, अलग बोली, रहन सहन में भी भिन्नता पर बस एक अवधारणा "हम सब एक हैं" यही मुख्य विशेषता है. प्रत्येक राष्ट्र के लिए वहां बोली जाने वाली भाषा का स्थान महत्वपूर्ण है. भाषा सामाजिक संपत्ति है. यह केवल विचार अभिव्यक्ति का साधन नहीं है, अपितु राष्ट्र विकास तथा आर्थिक विकास का उपकरण भी है.  पर यहाँ  हमारी राष्ट्र भाषा, राजभाषा हिंदी का अपने ही राष्ट्र में दर्जा क्या है? आज प्रत्येक व्यक्ति अपनी राष्ट्र भाषा में बात करने के बजाय, भले आती हो या न आती हो, अंग्रेजी में बात चीत करने में गर्व महसूस करता है.  आज मेरे हाथ एक किताब लगी "विश्व भाषा हिंदी"  वैसे तो इस पुस्तक में बड़े बड़े विद्वानों के विचार समाचार संकलित हैं पर हिंदी का स्थान विश्व में कौन सा है यह ज्ञात होने पर यहाँ लिख देने का मन हुआ सो डॉक्टर जयंती प्रसाद जी नौटियाल, डी. लिट. जी द्वारा शोध के दौरान एकत्रित किये गए आंकड़ों के अनुसार विश्व में बोली जाने वाली भाषाओँ में हिंदी का स्थान पहला पाया गया और दूसरे स्थान पर रही चीनी. वर्ष दो हजार पांच के शोध पर आधारित आंकड़ा यह है कि विश्व में हिंदी जानने वाले तकरीबन एक हजार बाइस (1022) मिलियन लोग हैं जबकि चीनी (मंदारिन ) जानने वाले नौ सौ (900)  मिलियन लोग. मुझे आश्चर्य होता है कि इसके बावजूद हम अंग्रेजी के गुलाम अभी भी बने हुए हैं!  जय जोहार.......

6 टिप्‍पणियां:

Arvind Mishra ने कहा…

अच्छी खबर ...हम होंगे कामयाब एक दिन !

honesty project democracy ने कहा…

गुप्ता साहब हिंदी इतनी इमानदार भाषा है की ,अगर उसे पूरा विश्व अपना ले तो विश्व के आधे समस्या का समाधान हो जायेगा / अंग्रेजी जैसे चार सौ बीस भाषा ने ही पूरे विश्व और इस देश में भी ठगी और बेईमानी का साधन बनकर साडी समस्याओं को जन्म देने का काम किया है /

Udan Tashtari ने कहा…

आम बोलचाल और व्यापार की भाषा का अंतर है.

एक दिन तो परचम लहरायेगा, आश्वस्त रहिये.

कडुवासच ने कहा…

...बम बम ... बम बम ...!!!

arvind ने कहा…

bilkul sahi likha hai aapane ki ham aaj bhi angreji ke gulaam hain. aashaa karate hai hindi vah samman paa legi jisaka vah adhikar rakhati hai.

36solutions ने कहा…

जय जोहार, विचारोत्‍तेजक चिंतन.