जाड़ के दिन माँ येती बिहनिया के काम बूता करे के बाद घर गोसईनीन मन काय करै. एक दू घंटा सुतिन फेर चार साढ़े चार बजे संझा जुवार एक जघा जुरियाये लगिन. तहां ले शुरू गोठियाना. वइसे ये जुरियाना हा गाँव माँ का का होवत हे एखर खबर मिले के अस्थान घलो आय. भले ये खबर हा कतका सही हे कतका बनावटी ये बात अलग आय.
हाँ एक बात जरूर हे बहुत कम अइसे देखे जाय के एक दूसर के नाव (नाम) ले के कोनो ल संबोधित करै. अब देखौ एक दृश्य; शुरू होवत हे गोठियाना (नाव मन मनगढ़ंत आय पढ़ैया मन अपन ऊपर झन ले लेहू)
मंगलू के दाई: "का साग खाए" ओ सुकारो के भौजी?
सुकारो के भौजी: ये दे गर्मी के दिन माँ काहीं बने असन सागो नई आवै, भइगे कोंहड़ा अमटहा (मही याने छांछ वाला) रांधे रेहेंव.
मंगलू के दाई: वाह एला भइगे कथस, अम्टाहा साग हा तो अब्बड़ मिठाथे वो. मोर लार गिरे लागिस.
अउ दू तीन झन बइठे रहै ओहू मन मंगलू के दाई के बात माँ हामी भरे लगिन.
सुकारो के भौजी(मंगलू के दाई ला): ले का होगे बांचे हवे. ले जाबे .
अब अतका तक तो ठीक हे. फेर होगे चालू ;
मंगलू के दाई हा धीमे अवाज मा तिसरैया बइठे रहै तौन डहर इसारा करके केहे लागिस:
"भइगे ओ हमर गाँव के इज्ज़त दांव मा लग गे हे टुरी टूरा मन के बढती उम्मर का का नई होवत हे
अब देख न लछमिन के दाई ददा ला फिकर नई ये लछमिन के गोड़ हा फिसलत हे कोन जनि जब देखबे तब कोन टूरा आथे बने शहरिया कस फूल पेंट पहिने फटफटी मा अउ टुरी टूरा दूनो चलिन. दाई ददा तो निकले रथें काम बूता माँ." बस ये बात निकलना रहिसे के लछमिन के दाई के होगे शुरू : मोर टुरी के चरित्तर माँ तय लांछन लगाथस जबरदस्ती. पहिली अपन घर ला देख. अब टूरी टूरा के बात ले हट के बिहाता मन ऊपर आगे. अपन शादी शुदा ननद ला देख. अपन मइके माँ बइठे हे. कोन जनि खाखर संग फंसे हे के ओखर घरवाला हा ओला छोड़ दिस. अब हो गे इनखर मन माँ शुरू एक झन कहत हे तय ऐसे हस दूसर कहत हे तय ऐसे हस दूनो डहर ले मर्यादा ले बाहिर के भाखा के बान चलाई शुरू राणी दुखहाई, अउ भइगे इहाँ लिखे के लाइक नो है, तइसन तइसन गारी .... इहाँ तक नौबत आगे के मार पीट माँ उतर आईन. मात गे रमझाझर.......... ( यहाँ सारांश यह है कि गाँव में प्रायः महिलायें एक स्थान पर इकट्ठे हो जाया करती थीं सब्जी भाजी से शुरू कर घर घर के किस्से शुरू कर देती थीं कभी कभी वहीँ बैठी महिलायें एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप शुरू कर देती थीं और रमझाझर याने महाभारत शुरू हो जाता था.) ........जय जोहार.
3 टिप्पणियां:
बने सुरता देवा देस भईया, गांव के गली खोर के. अइसन रमझाझर म कभू कभू धरी के झूंमटा, पटकी के पटका हो जथे, ओढना कुरथा तको के हाउस नई रहे. पढत पढत खलखला के हांसत हांवव, अइसनेहे लरई के सुरताकरके. :)
संणा कुन आगी मांगे के बात ला आज के लईकामन ला बताबे त कहिथें अइसे कइसे होही, माचिस तो एक रूपिया म मिलथे कोनो आगी ला छेना मा काबर मांगे जाही, का बताबे, गांव के गोठ बात तहीं-हमी मन जानबोन, सुनबोन, पढबोन अउ खुस होबोन.
...सुग्घर गोठ !!
सन्जीव लेकिन बहुत दुख पहुन्चथे गा ए मेरन कोनो छत्तीसगढिया नइ ये तइसे लागथे। देख ना एको झन के असीस के भाखा (हमर मन के छोड़) काखरो मुँह ले नई (सुवारी गा, मुह ले नही उन्खर कलम ले)निकले ल धरै। बने करे तय टिपिया देस। तोला अब्बड अकन ले जोहार्…………
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