13 अप्रैल १९१९, पंजाब के अमृतसर का जलियाँ वाला बाग
बैसाखी पर्व के उल्लास के साथ भीषण नर संहार की अभी भी
कहानी कहता
4.30 बजे संध्या, अपने वतन की आजादी पाने बुलाई गई थी
सभा जहाँ हुए थे जमा हिन्दू मुस्लिम संग संग
अंग्रेजी हकूमत को अंदेशा होने
लगा था, डर लगने लगा था, ब्रिटिश राज के अंत होने का
चलवा दी गई गोलियां, निहत्थों पर
देखते ही देखते बहने लगी खून कि नदियाँ
चीत्कार, पुकार कोई सुनने वाला न था
आर्डर जारी करने वाला था मेजर जनरल डायर
कितना बुजदिल था वह, कह सकते हैं उसे कायर
कायर था, था पराये देश का,
इस वतन को गुलामी की बेड़ियों में
जकड़े रहना देखना चाहता था,
लोगों का बलिदान व्यर्थ नहीं गया
आखिर मिली हमें आजादी,
क्या पता था,
इस आजाद मुल्क में अपने ही लोग तुले
हुए हैं मचा के तबाही, लाने को बर्बादी
नक्सलवादी तैयार किये हुए हैं अग्निकुंड
दे रहे हैं अपनों की ही आहुति,
बाद में ऐलान होता है मृतक के परिजनों को
देने का रूपये लाख, दो लाख, चार लाख,
ऐसा प्रतीत होता है मानो आहुति के लिए
हवन सामग्री की कीमत हो
क्या कहेंगे इन्हें "कायरों में महा कायर?"
जय जोहार......
5 टिप्पणियां:
बने केहे हस,कायर नही महाकायर हे।
अब मिलबो अठवाही के पाछु
तलघस ले जय जोहार
bilkul sahi baat kahi ham kaayar hai kaayar rahenge..aise hi aahuti ki keemat lagaye rahenge...jis din koi apna gaya us din in kutto ko gaaliyan bhi de lenge...ham to bhai aise hi the aise hi rahenge
कायर नही महाकायर हे।
सामयिक स्थानीय चिंतन के लिए धन्यवाद भईया.
आज के समय की सबसे बड़ी और सबसे कड़वी सच्चाई कही है आपने अंकल, नक्सलियों के लिए आपने सबसे सटीक शब्दों का प्रयोग किया है, "कायरों में महा कायर"!
अमित~~
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