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मंगलवार, 25 मई 2010

वाह रे छः घन्टे की नीन्द

"ॐ हं हनुमते नमः" 
सुप्रभात व आज का दिन आप सभी का खुशमय हो.  
हम कल कुछ ज्यादा ही काम के बोझ के मारे थे. आजकल हमारे विभाग में कुछ ज्यादा ही सांखिकीय विश्लेषण का दौर चल पड़ा है.  गत तीन वर्षों के आंकड़े एकत्र कर तुलनात्मक अध्ययन करने के आदेश प्राप्त हुए हैं. सो इस संगणक  की सहायता से काम चल रहा है.  हम संगणक प्रचालन में उतने दक्ष नहीं हैं इसलिए विभाग के ही आंकड़ा प्रविष्ट प्रचालक की मदद ले लेते हैं. विभाग प्रमुख आदेश के अनुपालन के लिए पर्याप्त समय नहीं देते. अब इसे क्या कहें इम्मिडियेट या इडियट, खैर जो भी हो इन्हें  तो तत्काल कैसे भी  हो कार्य निष्पादन करके देना है. कोई चारा नहीं है भाई. बॉस इस आलवेज राईट. सो गत तीन दिनों से रात दिन काम चल रहा था. कल फुर्सत पाए. निद्रा देवी ने कहा ज्यादा वक्त जाया न करो आ जाओ हमारी शरण में. सो रात दस बजे ही चले गए इनकी शरण में. पर एक बात है हमारे लिए छः घंटे का समय पर्याप्त है नींद पूरी होने के लिए. सो उठ गए हैं आज चार बजे से ही अब उठने के बाद यहीं बैठने की आदत हो गयी है. बैठ गए, झांके कुछ कुछ मित्रों के ब्लॉग. टिपियाये. एक के अनुसरणकर्ता बने. 
                           हम यहाँ भी देखने लग गए आंकड़े. पर किस चीज के? अरे भाई टिप्पणियों के. हम जिनके अनुसरण कर्ता बने हैं आज उनकी अधिकाँश पोस्ट के लिए तेरह-तेरह  टिप्पणियाँ देखने को मिली. हमने सोचा अभी अभी हम इस बात  पर अपनी पोस्ट के लिए प्राप्त टिपण्णी पर एक पोस्ट डाले थे "पांच का पहाडा चल रहा" अब यहाँ के लिए क्या कहें "तीन तेरा नौ अठारा" क्या ? हम भी कहाँ कहाँ तीन पांच,  तीन तेरा के चक्कर में पड़ रहे हैं. पर कुछ ऐसा देखने को मिला हमसे रहा नहीं गया लिख बैठे. हम जिनके अनुसरणकर्ता   बने हैं उनके लिए ये पंक्तियाँ:
"इनकी भी  लेखनी में गजब की धार है
 "क्रांति दूत" चल पड़ा है 
कविता के नौ रसों के संग 
विषय प्रमुख इनका 
रसराज "श्रृंगार" है."
 जय जोहार..........

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बस, लिखते चलिये. पहाड़ा अपने आप बढ़ता रहेगा.

दिलीप ने कहा…

likhte rahiye sir...aapko padhna ek alag romaanch hai...