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बुधवार, 5 मई 2010

पारा याने "पारद"/मरकरी/ की महिमा

पारा काफी चढ़ गया था धीरे धीरे उतर रहा 
ब्लॉग जगत में लगे न, पता कौन किसका पर क़तर रहा.  
पारा याने मरकरी जिसे पारद भी कहते हैं, जिसे हमने उच्चतर माध्यमिक शिक्षा प्राप्त करने के दौरान शायद यदि सही याद हो हमें तो 80  वें नंबर का तरल रूप में अविष्कृत धातु है. "चांदी जैसा सफ़ेद" किन्तु जहरीला. रासायनिक विश्लेषण हम नहीं कर पायेंगे पर इसकी उपयोगिता सभी को विदित है. इस धातु का गलनांक 38 .83 डिग्री सेल्सियस व क्वथनांक (उबलनांक) 356 .73 डिग्री सेल्सियस है. यह पर तापमापी यंत्र में प्रयुक्त होता है. इस तापमापी यंत्र के आविष्कारक या कहें भिन्न भिन्न प्रकार के तापमापी यंत्र बनाने वालों में मुख्य रूप से नाम फैरनहाईट एंडरयु सेल्सियस के नाम आते हैं. और दोनों के नाम पर तापमान का पैमाना भी निर्धारित हो गया है. याने सामान्य तापमान 37 .83 डिग्री सेल्सियस याने 98 .4 डिग्री फैरनहाईट. यह होता है सामान्य ताप मान.  यदि इस यंत्र का आविष्कार न होता तो न जाने हम ज्वर से पीड़ित व्यक्ति का शीघ्र इलाज कैसे कर पाते? जैसे ही ज्वर की तीव्रता यह यंत्र बताने लगता है जैसे कि 100  डिग्री से ऊपर पारा चढ़ा ज्वर से पीड़ित व्यक्ति को सरल उपाय के बतौर माथे पर पानी की पट्टी लगाना होता है. यदि शरीर का तापमान बढ़ता गया और यदि हमारे पास यह यंत्र नहीं है, समझिये पीड़ित व्यक्ति के ज्वर को  कैसे  नियंत्रण में लाया जा सकता है ?   यह खोज निकाला गया है कि शरीर अधिकतम कितने डिग्री तक ताप (तापमान) सह सकता है.  जैसे ही पारा 101 के ऊपर गया समझो माथे पे गीले कपडे से पोंछना जरूरी. पूरे शरीर को स्पन्जिंग करना आवश्यक.  पारे की महिमा यहाँ पर स्वास्थ्य की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण. अब पारे की महिमा  इस शब्द के नित्य प्रयोग के रूप में देखिये.
                        
                                    कार्यालय पहुंचे, साहब का मूड पढ़े, चेहरे की भाव भंगिमा देखे, हमारे पहुँचने से पहले किसी के ऊपर बरस भी रहे थे.  और बाहर निकल कर मुह से निकल पड़ा "आज साहब का पारा चढ़ा हुआ है"  कार्यालय ही क्यों घर में, मित्र मंडली में जरा खटपट हुई नहीं की बस, किसी न किसी का पारा चढ़ जाता है.

                                        भाई जी मैं भी सोचूं इस ब्लॉग जगत में हमारा भी पारा चढ़ते जाता है सो ठीक नहीं मालूम पड़ता. यहाँ परे का गिरना उत्तम माना जाता है. कहिये गलनांक  क्वथनांक के बजाय हिमांक में रहना उत्तम है. सो हम आज देखे पर 221 डिग्री पे था कल तक. आज 298 पहुँच  गया.  सोचे आज कुछ यहाँ स्पन्जिंग कर दिया जावे. सो बैठ गए पोस्ट करने. देखें कहाँ तक गिरता है पारा.........  (पौराणिक कथाओं में, ग्रंथों में वैसे और भी वर्णन मिलेगा ..... एक जो हम "पारद शिवलिंग के बारे में सुनते हैं तो कहूँगा  यहाँ तो पारद की महिमा स्वयमेव बढ़ जाती है).  एक बात और अभी अप्रैल महीने में जो पारा चढ़ा हुआ था ज्यादा, बीच बीच में कहीं आंधी तूफ़ान व बारिश होने की वजह से नीचे हो गया है.
सभी मित्रों को जय जोहार.....
 


3 टिप्‍पणियां:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

हमर पारा के भी बढगे हे पारा
जब ले आईस हे घर मा सारा
चढगे गरमी मोर मुड़ मा ज्यादा
जम्मो बजट के होगे वारा न्यारा

त झन चढा गौंटिया पारा

जोहार ले

शरद कोकास ने कहा…

गुलाम अली की गाई गज़ल पारा पारा हुआ सुनते समय भी मुझे यह पारा याद आता था ।

कडुवासच ने कहा…

...jay ho ... jay ho ...jay ho !!!!