तारीख २६ दिन बुधवार. जिन्दगी के रोज के ढर्रे के मुताबिक भिलाई से कर्तव्यस्थली राजनांदगांव आगमन. दोपहर के डेढ़ बज रहे थे, बड़ी बड़ी मूंछों वाले जनाब, "शेर सिंह" के नाम से संबोधित किये जाने वाले, दुलारू ललित भाई का फ़ोन आया. "मैं गोंडवाना मा हंव गा" (याने मैं गोंडवाना ट्रेन में हूँ) मैं समझ गया साहब दिल्ली से लौट रहे हैं. आइसक्रीम का क्रीम (दिल्लीवाली aaiskreem) अब बचा नहीं है. मैं बोला "गोंडवाना अभी? बोले: "हाँ रे भाई लेट चलत हे" (ट्रेन लेट है). तोर ड्यूटी ख़तम होए के बेरा मा पहुँचही, तहूँ आजा ट्रेन मा संघर जाबो. (हाँ ट्रेन लेट चल रही है, तुम्हारी ड्यूटी ख़तम होने के समय पर पहुंचेगी राजनांदगांव, आ जाओ स्टेशन, साथ चलेंगे). हमारे साथ एक समस्या है हम अपनी ओर से कुशल क्षेम पूछने के आलावा और कुछ नहीं कर पाते. किसी की क्या समस्या है, चलो हल कर दें, तत्काल नहीं सूझता. यदि किसी से परिचय हुआ हो और वह रिश्ते में बदल गया हो तो अपनत्व के नाते उससे अपनी बात कह देना सहज नहीं है. लेकिन इस बात को मानना पड़ेगा कि ललित भाई साहब ने हमें अपना समझ एक अवसर प्रदान किया हमसे सेवा लेने का. अच्छा लगा. सो चले आये हम भी ट्रेन में. मिले. बहुत मजा आ गया. और तो और दुर्ग पहुँचने पर मूंछों वाले हमारे ललित भाई के अनुज श्री जी. एल. शरमा जी, कृषि विश्वविद्यालय रायपुर में पदस्थ, जिनकी जन्म तारीख भी वही है जो हमारी जन्म तारीख है, से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ. दर असल वे कुछ अपने काम से दुर्ग आये थे कार से. ललित भाई द्वारा उनसे चलित दूरभाष से संपर्क करने पर ज्ञात हुआ. भाई जी के कहने पर निर्णय लिया गया कार से ही अपने गंतव्य स्थान के लिए रवाना हुआ जाय. मेल मिलाप हुआ. जलपान इत्यादि हुआ. फिर ललित भाई एंड कंपनी अपने ठिकाने की ओर रवाना हुए और हम भी हमेशा कि तरह अपनी डुगडुगी (मोपेड) स्टेशन के स्टैंड से उठा अपने घर की ओर...........जय जोहार........!
6 टिप्पणियां:
चित्र मा हंव गा
अरे राजकुमार भाई ह तो कहत रहिसे कि नेताजी ह हवई जेहाद म आही कहिके गा. टरेन म कइसे मसक दिस.
चल बने होइस आप संग मेल मुलाकात होगे, फोटू लगा ना गा.
दिक्कत एही बात के हे के कैमरा हा काय मरा होगे मोबाइल के बेट्री (ललित के) सिरा गे। पछतावा होईस।
चलिये, शेर सिंग की वापसी में सबसे पहले आपसे मुलाकात हो गई.
batav bhalaa haman to rajkumar soni jee ke kahe ke mutabik laav-lashkar band baja ke airport jaaye ke taiyari kar dare rahen ihan.....
;)
chalav jaisan hovay maharaj ha aa to ge, bhalaa hois
त्रिपाठी महराज परनाम! आपो बने छत्तीसगढी लिख लेथौ। बने लागिस।
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