कारगिल की लड़ाई
बीत गए ग्यारह साल
गीदड़ ले गया तमगा
ओढ़ के शेर की खाल
सच कभी मर सकता नहीं
धर धीरज कर इन्तेजार
सब्र का फल होए मीठा
क्या पता नहीं है यार
ये पंक्तियाँ अभी अभी फौज में हुए खुलासे के लिए है. बस, सब जगह अपनी प्रतिष्ठा, और स्वार्थ पूर्ति के लिए लोग क्या क्या नहीं कर बैठते. फ़ौज में हुई इस तरह की हरकत उन अफसरों की ही इज्ज़त नही डुबाता बल्कि देश की इज्ज़त पर भी प्रश्न चिन्ह लग जाता है कि कैसी सैन्य व्यवस्था है इस देश की. बची खुची कसर मिडिया दो-तीन दिनों तक इस खबर को सुर्ख़ियों में बनाए रख कर पूरी कर देता है. सबसे बड़ी बात ग्यारह साल लग गए इसके लिए. होना यह चाहिए था कि जिस अफसर के साथ ज्यादती हुई थी तत्काल सक्षम अधिकारी के समक्ष साक्ष्य सहित अपनी बात रखते उनसे बात यदि बनती नहीं तब आगे बढ़ते जाते. कुसूरवार पर कार्रवाई होती. बात देश के बाहर नहीं जाती. कुसूरवार को सबक भी मिल जाता. अब आज ढिंढोरा पिटा जा रहा है. .............
जय जोहार............
1 टिप्पणी:
bahut acchaa lekh gupta saahaab,lekin senaa me jisake saath jyaadati hoti hai use sena kaa koi saksham adhikaari nahi sunata. yah hamari sena ki paramparaa hai....main khud suffer kar chuka hun..ashaa hai senaa ki sacchaai jarur saamane aayegi.
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