आईए मन की गति से उमड़त-घुमड़ते विचारों के दांव-पेंचों की इस नई दुनिया मे आपका स्वागत है-कृपया टिप्पणी करना ना भुलें-आपकी टिप्पणी से हमारा उत्साह बढता है

बुधवार, 31 मार्च 2010

चिंतन देहाती नहीं है

लिव इन रिलेशन शिप - एक देहाती चिंतन
चिंतन देहाती नहीं है, 
कटु  सत्य  है यह,
पाश्चात्य की यह संस्कृति  
उपजी  है  इस   मंशा   के   साथ 
कि   वासना   की  पूर्ती हेत              
समीप   सहज    देह   आती   नहीं   है  
मर्यादा  के  आहाते  के भीतर  रह 
बिताने  को  जिन्दगी  की  विधा 
सहज  ही  किसी  को  भाती  नहीं है
और  सत्य  कहता  हूँ 
मेरी यह सोच किसी के लिए ठकुरसुहाती  नहीं है.

नर्वस 90 का शिकार

धीमी गति से ब्लॉग लेखन करते करते
90 पोस्ट ले दे के लिख पाए हैं
क्रिकेट के बेट्समेन की भांति हो गए हैं
हम नर्वस नाइंटी के शिकार
क्यों मन में उमड़ ही नहीं रहा है
किसी भी किसम का  विचार
विषय  अनेक हैं अनेक हैं प्रसंग
सोचता हूँ कब और कहाँ हो रहा है
ब्लोग्गेर्स सत्संग
जहां पाऊं अपने आप को महान ब्लागरों (ब्लॉगर मित्रों)  के बीच
जहां कोई मेरे विचारों की सूखी बगिया को दे सींच
लहलहाने लगे फिर से सुविचारों के पौधे
नहीं तो गिर जायेंगे हम  इस ब्लॉग की दुनिया में औंधे
जय जोहार .............

रविवार, 28 मार्च 2010

रहस्य गूढ़ नहीं!

आयातित वस्तु बड़ी  प्यारी लगती है. इम्पोर्टेड आईटम. हमारे विभाग के लोगों को आम जन मानस(मित्र गण) पहले कहा करते थे; कस्टम का माल नहीं पकडाया क्या? उसकी नीलामी नहीं हो रही है क्या? क्यों? इसलिए कि (विदेशी  कहना ठीक नहीं लगेगा)  फ़ोरेन का आइटम का अलग क्रेज है सोचते थे.   आज प्रातः  ब्लॉग में लिखी बातें भी आयातित ही है.  हाँ! ईर्ष्या से विकास अवश्य संभव है जब हम ईर्ष्या वश दूसरों का विनाश  न सोचकर अपनी सोच, अपनी बुद्धि का  विकास करें.  मसलन यदि ईर्ष्या नहीं होगी तो हम तटस्थ बैठे रहेंगे आगे बढ़ने की सोच उपज ही नहीं सकती.  प्रतिस्पर्धा की भावना न हो तो मन में शिथिलता, नकारात्मक सोच, घर कर लेती है.  ईर्ष्या को प्रतिस्पर्धा के दृष्टिकोण से लेना होगा.  दूसरों की  "रेखा" छोटी करने वाली बात नहीं होनी चाहिए. ईर्ष्या से जलन और जलन से क्रोध रूपी ज्वाला की "धधक"! और यही "धधक" एक ओर विनाश का कारण. यह ईर्ष्या की ज्वाला तभी शांत हो सकती है जब हम सर्वांगीण विकास की बात सोंचें.  अतएव ईर्ष्या से विकास का रहस्य गूढ़ नहीं है.  चलिए हमारे  मन में भी गुन्गुवाहट हो रही थी. धुन्गिया उडाए लगे रहिसे. तव येदे ओला  बुताये के उदिम करे हौं.
जय जोहार...........

शनिवार, 27 मार्च 2010

इर्ष्या से विनाश नहीं विकास

 किसी भी वस्तु के जलने से उर्जा प्राप्त होती है, यह विज्ञान कहता है. चाहे कोई उपस्कर जले चाहे किसी का दिल जले चाहे किसी का ............... जले. लेकिन उर्जा अवश्य ही प्राप्त होती है. जलने का सम्बन्ध आग से है जहाँ आग जलेगी वहां धुआं जरूर होगा और जहाँ धुआं होगा वहां उबलना भी होगा. अब कौन से वस्तु कितने डिग्री सेंटीग्रेड पर उबलेगी यह उस वस्तु की तासीर पर निर्भर रहती है. भैंस जब गोबर करती है वहां पर भी यह नियम लागू होता है. अब कितनी ऊष्मा उस गोबर में पैदा हो रही है. अब गोबर में कीड़े पड़ते हैं कीड़ों का जन्म इस उष्मा  के कारण होता है. इस तरह जलना एक नई श्रृष्टि को जन्म देता है. फिर उस गोबर में कुछ और कीड़े पैदा होते हैं लेकिन गोबर में पहले से  मौजूद कीड़े स्थापित हो चुके होते हैं इसलिए वे नए कीड़ों को स्थान  नहीं देते. नए कीड़े असुरक्षा की भावना से ग्रसित हो जाते हैं आपस में तालमेल बिठा कर घेटो का निर्माण करते हैं. ये कीड़े बड़े कीड़ों के घेटो में   फंस जाते हैं. न उगलते बनता न निगलते बनता है. गोबर में मौजूद अत्यधिक उष्मा  से  स्थापित कीड़ों का क्षरण होता है और नव पदार्पित कीड़ों का विकास होता है. इस तरह एक का विनाश   होना और एक का विकास होना प्रकृति का नियम है. इस तरह एक मोहल्ले के कुकुर  संगठित होते हैं यदि उस मोहल्ले में कोई नया कुकुर आता है तो उसे भौंक कर भगाने की कोशिश करते हैं. पर नए कुकुर की भी कोई इज्जत और अस्तित्व है. उसमे अतिरिक्त उर्जा है इसलिए वह उस मोहल्ले में आया है. लेकिन पहले से स्थापित कुकुर उसका महत्त्व कम करके आंकते हैं. जब तक ऊँट पहाड़ नई चढ़े तब तक भरवा नई टूटे. इसी तरह नए कुकुर का राज स्थापित हो जाता है.  
                   जलन के कारण ईर्ष्या पैदा होती है और यह ईर्ष्या स्थायी हो जाय तो बैर में परिणित हो जाती है है और यही परिणति विनाश का कारण होती है.  बैर जो है क्रोध से उपजता है और इसी क्रोध से कुरुक्षेत्र का मैदान सजता है.  कृष्ण जो है धर्म का साथ देते हैं इसलिए कि उनके दिल में अधर्म के प्रति अग्नि सुलगती है. अग्नि की ज्वालायें क्रोध का अंतिम रूप है लेकिन क्रोध हमेशा विनाशकारी होता है.  कृष्ण का क्रोध कुरुक्षेत्र के मैदान में विनाशकारी नहीं है यह क्रोध विकास करना चाहता है इसलिए इसे शास्त्रों में मन्यु कहा गया है जहाँ क्रोध विनाश  करता है वहीँ मन्यु विकास करता है इसलिए जलन से पैदा हुई ईर्ष्या को हम क्रोध बनाकर न रखें इसे मन्यु में परिवर्तित करें जिससे धर्म ध्वज और धरा कि रक्षा हो. सबको एक साइज  समझा जाय. कल सुबह ट्रेन पकड़ने मै जा रहा था स्टेशन पहुँचने पर मै देखा २०-२५ कुकुर  सामने में खड़े  २ कुकुर को गरिया रहे थे एक घेटो दुसरे घेटो का निर्माण सहन नहीं कर पा रहा था लेकिन वो कुकुर भी डट कर तैयार खड़े थे. अपने आप को स्थापित करने की चाह लिए निर्भय होकर अकबर के साम्राज्य में...............
जय जोहार  जय छत्तीसगढ़    

शुक्रवार, 26 मार्च 2010

कैसे कैसे अनुसंधान व अनुसंधानकर्ता

कैसे कैसे अनुसंधान व अनुसंधानकर्ता 
इनके द्वारा निकाला गया निष्कर्ष बिलकुल वैसा ही,
जैसे अदालत के सामने  कोई वादी रखता अपना प्रकरण 
कोई अदालत सुनाता फैसला वादी के पक्ष में,
दूसरी अदालत इसे  ख़ारिज करता
आज ही दैनिक समाचार पत्र में पढ़ा 
टमाटर है फलां बीमारी के लिए उपयोगी 
इसी चक्कर में दीवाने हो गए हम टमाटर के
"सूप से लेकर चटनी" चटनी ही नहीं..... डाल दिया 
सब्जी में करके उसकी कटनी, सोचिये इसके 
अति सेवन से हमारी हालत क्या हुई होगी

मौसम बदल गे हे


मौसम बदल गे हे
सूरज तीपत हे
आ गे हे गर्मी
कैसे आबे जाबे
अपन काम मा विधर्मी
निपटी से अभी अभी
नवरात अउ रामनवमी के तिहार
बादलो नई घुमड़त हे, नई उमड़त हे मन माँ
कोनो किसम के विचार
अब्बड़ दिन बाद लिखे हौं ये चार आखर ला
मोर जम्मो ब्लॉगर संगवारी मन ला
जय जोहार. ..............

गुरुवार, 18 मार्च 2010

नवरात्रि पर्व, सुर लय ताल के संग माँ की स्तुति का पर्व

"जय माँ दुर्गे"

आ हा हा...... नवरात्रि का त्यौहार, चल रहा है माता का यश गान! मन कहीं भटकता नहीं! आदमी ठहर जाता है और पाता है स्वयं को माँ शक्ति स्वरूपा दुर्गा के बीच! नवरात्रि का ही नहीं कोई भी पर्व हो यदि हम गीत संगीतमय स्तुति करते हैं तो अवश्य कुछ क्षण के लिए ही सही अपने मनोविकारों को छोड़ देते हैं. इसीलिए तो संकीर्तन मार्ग भी प्रभु को प्राप्त करने का उत्तम मार्ग बताया गया है. और इस नवरात्रि में यशगान खासकर हमारी क्षेत्रीय बोली में ढोल मांदर के साथ माँ का यश-गायन, जिसे जस गीत कहा जाता है, अंगों में स्फुरण पैदा कर देता है झूमने लग जाते हैं.... मुझे सारी पंक्तियाँ तो याद नहीं रह पातीं केवल एक-एक पंक्ति यहाँ प्रस्तुत करता हूँ.....

"संबलपुर समलाई हो माता रतनपुर महमाया"
"नई माने काली..... कखरो मनाये नई माने"
"खदबद खदबद घोड़ा कुदाये........." आदि आदि
नवरात्रि  की  शुभकामनाओं  सहित......
जय जोहार...............  

सोमवार, 15 मार्च 2010

टी.आर.पी. का लफड़ा तो नहीं???

बहुत ही ठेस पहुंची है. इस ब्लॉग जगत के दूसरों की पोस्ट में दूसरे के नाम से टिपण्णी करने सम्बन्धी (वह  भी असंसदीय भाषा का प्रयोग करते हुए जिसमे हमारे नाम से भी टिपण्णी भेजी गयी है), फर्जीवाड़ा काण्ड से. लगता है लोग कहीं आजकल टी आर पी के चक्कर में तो यह सब नहीं कर रहे हैं?  साथियों यह चिंता का विषय है. आजकल दूरदर्शन के कार्यक्रमों में हर धारावाहिकों में टी.आर.पी. बढाने की होड़ लगी है तो क्या अश्लीललता परोसने वाले  धारावाहिकों का टी. आर.पी. बढ़ा  दिखाई पड़ता  है क्या? अरे टी आर पी बढानी है तो अच्छी सामग्री  चयन कर नित पोस्ट लगाया जावे. छींटा कशी, किसी पर व्यंग्य करना,  और तो और असंसदीय भाषा का इस्तेमाल .....थू ..थू  थू .  और हाँ अच्छे रचनाकार इन सब बातों की चिंता भी नहीं करते. उनका तो टी आर पी तो स्वयमेव बढ़ा  हुआ रहता है. अरे किसी की अच्छी पोस्ट सराही नहीं जा सकती तो कम से कम यह फंडा तो न अपनाया जाय.  सभी से सहृदयता पूर्वक बड़े  सौहाद्र के साथ सामंजस्य बनाये रखते हुए हम इस ब्लॉग जगत की शोभा क्यों नहीं बढ़ा सकते? हमारा नाम अकेले नहीं है इसमें. आशा है इससे कुछ परिवर्तन आये.
जय जोहार ........

फर्जी टिपण्णी करने वालों सावधान!!!!!!

 फर्जी नाम से टिपण्णी कर ब्लॉग जगत को बदनाम करने वालों सावधान 
खुद में कूबत नई है तो दूसरों के नाम का सहारा लेते हो. असंसदीय भाषा का प्रयोग  किसी के पोस्ट में टिपण्णी में कर बदनाम करना चाहते हो. हम से बच के नहीं जा पाओगे. सात तालों के भीतर छिपे चोरों को भी हम खोज निकाल लेते हैं तो तुम्हे कैसे छोड़ सकते हैं. अभी हम सावधान किये देते हैं. बच के नहीं जा पाओगे.

"नवरात्रि की आप सभी को बहुत बहुत शुभकामनाएं"

 
 दिनांक 16 मार्च 2010 से प्रारम्भ हो रहा है पर्व  शक्ति की अराधना का चैत्र नव रात्रि. माँ भगवती  हम सभी को इतनी शक्ति प्रदान करें कि किसी भी प्रकार की कठिनाई हो उससे हँसते हँसते उबर जाँय. साथ ही ख़ुशी भी इतनी ही देना माँ कि उस खुशी को आपके सानिध्य में ही प्रकट करें न कि ज्यादा खुशी के  मारे  आपको भूल जाँय.  और माँ भगवती से पूरे विश्व के कल्याण के लिए यह प्रार्थना भी है;
"देवि प्रपन्नार्ति हरे प्रसीद, प्रसीद मातर्रजगतो अखिलस्य.
प्रसीद विश्वेश्वरी पाहि विश्वं त्वमेश्वरी देवि चराचरस्य"
तात्पर्य:  शरणागत की पीड़ा दूर करनेवाली देवि ! हम पर प्रसन्ना होओं. सम्पूर्ण जगत की माता! प्रसन्ना होओं! विश्वेश्वरी !  विश्व की रक्षा करो. देवि! तुम्ही चराचर जगत की अधीश्वरी हो. 
मित्रों यह मन की भावना है. यदि किसी परम सत्ता पर विश्वास रखते हैं,  सभी के मार्ग अलग अलग हैं, तो ऐसे अवसरों पर समूचे विश्व कल्याण की  और जनमानस में सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय की भावना हो ऐसी बुद्धि प्रदान करने की  प्रार्थना उस परम सत्ता (अपने अपने मतानुसार जिसे भी मानते हों )से अवश्य करनी चाहिए. यह न समझा जावे कि यहाँ पर किसी को अनुयायी बनने बनाने के लिए दबाव डाला जा रहा है.  
इस चैत्र नवरात्रि की आप सभी को बहुत बहुत शुभ कामनाएं 
जय जोहार ...........

रविवार, 14 मार्च 2010

हो रहा है पौ बारा

ब्लॉग की तकनीकी जानकारियाँ हमें नहीं है.  नहीं है कहना गलत होगा. वास्तव में हमने जानकारी प्राप्त करने की कोशिश नहीं की है.  यह तो कृपा है हमारे ब्लॉगर मित्रों का विशेष रूप से श्री ललित भाई साहब का जिन्होंने इतना सजा धजा दिया.  यह बात हम इसलिए लिख रहे हैं कि आज सुबह दर्शन किये ब्लॉग देवता के पाया "हवाला 12 " बात थोड़ी समझ में आयी कि ये हवाला 12 भी खेल होगा न्यारा. क्योंकि भाई ललित है न हमारा प्यारा. बस इस जगत में बजने न पाए हमारा बारा. भले लोग कहने लगें कि वाह गुप्ता जी ऐसे ही सिद्धो में तुम्हारा तो हो रहा है पौ बारा. 
जय जोहार.......... वैसे अपनी बालकनी (खोपड़ी) का इस्तेमाल करके थोड़ी थोड़ी तकनीकी जानकारी प्राप्त करने का प्रयास करेंगे और अमल में लायेंगे.
जय जोहार ......

इस बात पे हम सभी करें गौर

 अभी अभी देख रहा था दूरदर्शन समाचार 
बताया जा रहा था, पकिस्तान में बम विस्फोट से
तकरीबन 47 लोग मारे गए व कई घायल हो गए 
मगर वहाँ के ऊंचे ओहदे वाले कह रहे हैं इसमें भारत का हाथ है 
तत्काल मन में विचार घुमड़ा;
इस बात पे हम सभी करें गौर 
पनाह लिए हुए हैं "पाक" में ही आतंकवाद के
बड़े बड़े सिरमौर, 
यह जानते हुए भी वहाँ के कर्णधार 
छोड़ दिए हैं आरोपों का दौर 
 के इस विस्फोट में "भारत" का हाथ है 
अरे अभी भी वक्त है बंद कर ऐसी हरकतें 
निभा रिश्ता भाई चारे का हमसे 
आजमा इसे और देख  आतंकवाद फैलाने  नहीं 
सारे मुल्क में अमन चैन कायम रखने 
कैसे  होता यह शांति प्रिय देश  तुम्हारे साथ है  
जय हिंद ..... जय जोहार

शनिवार, 13 मार्च 2010

"सौर मंडल में अनगिनत सितारे हैं"

इस ब्लॉग जगत के सौर मंडल में अनगिनत सितारे हैं  
कहीं भानु प्रकाश कहीं शशि प्रकाश 
कहीं रवि प्रभा कहीं शशि प्रभा 
(यह उपमा इस ब्लॉग जगत के मूर्धन्य रचनाकारों के लिए है)
अपनी आभा से ब्लॉग जगत की शोभा निखारे हैं 
 इनकी आभा से  झिलमिलाते हुए, टिमटिमाते हुए 
कभी दीखते कभी छिपते,
उल्का पिंड की भांति कहीं बड़े बड़े सितारों से 
टकराकर टूट न जाएँ, इस सोच के हम मारे हैं 
आसरा है इस कहावत का 
"मन के जीते जीत है मन के हारे हार"
हमारा ब्लॉग लेखन तो इसी के सहारे है.
जय जोहार...............


गुरुवार, 11 मार्च 2010

वाह रे मोर छत्तीसगढ़ के भुइंया

 वाह रे मोर छत्तीसगढ़ के भुइंया का का नई हवे तोर गरभ मा
खनिज सम्पदा ले लेके साग भाजी के अनेको परकार;
ओमा एक परकार  के नाव हे घुइंया

रत्न गर्भा इस धरती ने वाकई क्या क्या बहुमूल्य चीजें प्रदान नहीं किया है.  खनिज पदार्थों से लेकर शाक सब्जी, अनाज आदि आदि. इसे कुदरत का करिश्मा कहें या उस परम सत्ता की रचना. मानव भी इस रत्न गर्भा वसुंधरा की गोद में खेलने, अपने विवेक व बुद्धि से नए नए आविष्कार करने, यदि दुर्बुद्धि का शिकार हुआ तो अपनी हरकतों से "भले जन मानस " द्वारा  धरती का बोझ समझा जाने वाला प्राणी है. जिसकी जैसी सोच, वैसी ही उसकी हरकतें चलती हैं भले ही वह कितना ग्यानी हो कहने को स्वयं को सरल कहता हो "अभिमान" का अंश उसमे समा ही जाता है. और जहां यह अभिमान रुपी दुर्गुण का आगमन हुआ फिर दूसरे उसके सामने तुच्छ लगने लगते हैं.   आलोचना करने लग जाते हैं, समीक्षा नहीं.  आलोचना इस वजह से नहीं कि सामने वाला अपनी गलतियों को सुधार ले वरन आलोचना का मुख्य उद्देश्य अपने से नीचा दिखाना होता है. वस्तुतः हमारे इस ब्लॉग जगत में कुछ  ऐसा ही दृश्य दिखाई पड़ता है.

                       शाक सब्जी का  जिक्र इसलिए यहाँ किया गया है कि हमारी क्षेत्रीय बोली में एक सब्जी "कोचई" जिसे अरबी, घुइंया भी कहते हैं का उल्लेख टिपण्णी के माध्यम से हुआ है. यह सब्जी  कम से कम हमारे  इस छत्तीसगढ़ प्रांत मे मठे  व भिन्डी जिसे हम यहाँ क्षेत्रीय बोली में रमकेरिया/ रमकलिया   कहते हैं. के साथ काफी चाव से खाई जाती है.  इसी तारतम्य में हमारे नानाजी के सखा याने सखा नानाजी की एक बात जरूर याद आती है कि;
यदि किसी से हो गयी हो आपकी दुश्मनी, रखें न अपनी इच्छा अधूरी
खिला दें उन्हें  भिन्डी अरबी की मठे वाली सब्जी और गरम गरम पूरी
देखें जनाब के पेट में कैसे मचती है हलचल, होता है उदार व्याधि का शिकार
क्यों?  अच्छा है न दुश्मनों से बदला लेने का अच्छा नुस्खा यार
और अंत में  हम कहना नहीं भूलेंगे:........" जय जोहार" ..........








मंगलवार, 9 मार्च 2010

"जीवन नहीं समझना व्यर्थ"

 "जीवन नहीं समझना व्यर्थ"
कल मैंने अपने यात्रा वृत्तांत में श्री सुधाकर शर्मा जी के बारे में जिक्र किया है. उनकी पुस्तक "गौरव गान" से "कविता" के बारे में लिखी कविता को यहाँ प्रस्तुत करना चाहूँगा. भले ही  यह बच्चों के लिए है; शीर्षक है "जीवन नहीं समझना व्यर्थ"
बच्चों; लिखना सीखो कविता
कविता का तुकांत है "सविता"
तुक से तुक जब मिल जाती है 
तब क्या कविता बन जाती है 
अरे; मात्र तुक नहीं मिलाओ 
उसमे भाव--अर्थ कुछ लाओ 
अपने यहाँ  एक हैं चौबे 
चौबे की तुक हो यदि "क्यों बे" 
अब इसमें क्या भव अर्थ है?
भाव-अर्थ बिन लिखा व्यर्थ है" 
कविता में सविता का तेजस
रचो; तुम्हारा  फैलेगा जस 
शब्द सरल हों ऊंचे भाव 
कविता का है यही रचाव 
पंक्ति पंक्ति जब रचो बराबर 
फिर देखो तुम उनको गाकर 
अगर तुक नहीं मिल पाए तो
बात नहीं कुछ बन पाए तो
बच्चों होना नहीं निराश 
रंग लता है सदा प्रयास
तुकों बिना भी  होती कविता 
पर; न बेतुकी होती कविता 
कविता है जीवन का अर्थ 
जीवन नहीं समझना व्यर्थ 
श्री सुधाकर शर्मा जी की पुस्तक "गौरव गान से साभार .......

सोमवार, 8 मार्च 2010

बिगड़ते बिगड़ते रह गयी हमारी सूरत

शासकीय सेवा का एक आवश्यक अंग
स्थानांतरण में जगह - जगह की तैनाती
यदि गृह नगर- कर्त्तव्य स्थल की हो दूरी न्यूनतम
रेल- सवारी ही भाती
है कर्तव्य स्थल  हमारा शहर राजनांदगांव
देर हो चुकी थी घर से निकलने में,
पहुँच पाए हम   दुर्ग स्टेशन दौड़ के उलटे पाँव
पता नहीं आज कैसे हो गए थे हम मदहोश
कौन सी गाड़ी कहाँ रूकती है,
यह पता करने का हमें नहीं रहा होश
प्लेट फॉर्म आ पहुंची झट से गाड़ी "पुरी - सूरत"
पासधारी होने के नाते बैठ गए गाड़ी में बनके बिलकुल मूरत
पार हुई गाड़ी शहर से, अगला स्टेशन भी पार किया
आगे क्या होगा सोच के बंधू धड़कने लगा था हमारा जिया (ज्यादा नहीं थोड़ा थोड़ा)
इस घटना के हम ही केवल भागीदार थे न  अकेले
साथ बैठे न्यायाधीश (श्रम न्यायालय) संग हँसते हँसते झेले
शहर दुर्ग से गोंदिया नगरी तक आया न कोई टी टी आई
पहुँच के गोंदिया बुकिंग काउंटर पर ही हमारी जान में जान आ पाई
ले टिकट गृह नगर का, चालु हुआ हमारा फिर से सफ़र
बॉस ने खटखटाया मोबाइल, बोले उतरना है कर्त्तव्य स्थल
एक जरूरी काम है, जल्दी घर  पहुँचने का हमारा  प्रोग्राम हुआ ऐसा  सिफर
खैर सफ़र कटा बिन बाधा के, हमने गुनगुनाया,  वाह रे गाड़ी "पुरी - सूरत"
प्रभु कृपा असीम है हम पर, बिगड़ते बिगड़ते रह गयी हमारी सूरत.

                            खैर जिन्दगी में ऐसी घटना अचानक घट जाती है. सबसे बड़ा संयोग यह रहा कि इस घटना की वजह से मित्रों की सूची में  एक नए मित्र का नाम जुड़ गया, वह भी  ओहदे में  बड़े, व्यक्ति का.  बात यहीं ख़तम नहीं हुई. "जनशताब्दी" में जब बैठे तो हमारे सामने ही एक 22 वर्षीय युवक, नैवेद्य शर्मा,  जिसने अपने आप को  सनदी लेखा पाल (चार्टर्ड एकाउंटेंट )की योग्यता हासिल करने के  प्रयास में लगा होना बताया, से परिचय हुआ. उनके पिताश्री के बारे पूछने पर ज्ञात हुआ क़ि बालाघाट निवासी  श्री सुधाकर शर्मा उनके पिता हैं. हमें उनके बारे में कुछ भी ज्ञात न था. किन्तु इस घटना के दूसरे साक्षी माननीय न्यायाधीश महोदय श्री अरुण चौकसे जी  के वे मित्र निकले. नेवैद्य ने हमें अपने पिता के कविताओं की एक किताब भेंट की. किताब का नाम है "गौरव - गान" कविता संग्रह. पढेंगे फुर्सत से. श्री शर्मा जी के बारे में इस किताब में लिखा गया है कि वे भी एक अच्छे माने हुए साहित्यकार, कवि हैं.  उनकी एक और किताब "गंगा का उद्गम" का भी जिक्र है.  उन्हें डॉ० शिवमंगल सिंह "सुमन" एवं  प्रसिद्ध कवियत्री श्रीमती सुभद्रा कुमारी  चौहान का भी सानिध्य प्राप्त रहा है. नवभारत टाइम्स, ब्लिट्ज, करंट व नूतन सवेरा जैसे पत्र पत्रिकाओं से कवि-लेखक और प्रखर पत्रकार के रूप में सुधाकर शर्मा की सम्बद्धता लम्बे समय तक रही.  
                           ऐसा बीता आज का दिन.
सभी को मेरा जय जोहार.....  

रविवार, 7 मार्च 2010

कृष्ण को क्या आप अपहरण भूषण नहीं कहेंगे

व्यक्ति का आचरण कैसा है, इस बात पर तत्काल ध्यान जाता है यदि उस व्यक्ति के द्वारा कुछ सारगर्भित बातें कही या लिखी जाती हैं. वह इसलिए कि उस  व्यक्ति विशेष के  बारे में उन  तथ्यों  को बटोरकर, जिसमे प्रथमदृष्टया मर्यादा के विपरीत लगनेवाली,   अश्लील प्रतीत होने वाली, बातें होती हैं,  संचार माध्यम से अथवा समाचार पत्रों के माध्यम से खूब प्रचारित प्रसारित किया जाता है.  उसकी  गहराई या दर्शन में नहीं जाया जाता. मगर यदि इनके विचारों को किताबों में सहेजकर प्रकाशित किया जाता है तब थोडा सोचना पड़ता है कि अरे इनके विचार तो एकदम उचित लगते हैं, अनुकरणीय हैं. यहाँ स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मैं किसी सम्प्रदाय, संत महात्मा, प्रवचनकर्ता का न तो एकदम से प्रशंसक हूँ न विरोधी पर उनके द्वारा लिखी बातें मुझे अच्छी लगती हैं और लगता है कि इस ब्लॉग लेखन के जरिये उसे व्यक्त करूं. इसी कड़ी में "ओशो" के संस्थापक आचार्य रजनीश जी की किताब " कृष्ण स्मृति " से यह अंश उद्धृत कर्ता हूँ; 
प्रश्न किया जाता है आचार्यजी से "कृष्ण को क्या आप अपहरण भूषण  नहीं कहेंगे खुद ने तो रुक्मिणी का अपहरण किया ही था अर्जुन को भी बहन सुभद्रा का अपहरण करने को लालायित करते हैं." समाधान मिलता है; 
"असल में समाज की व्यवस्थाएं जब बदल जाती हैं, तो बहुत सी बातें बेतुकी हो जाती हैं. एक युग था जब किसी स्त्री का अपहरण न किया जाय, तो उसका एक ही मतलब था की उस स्त्री को किसी ने भी नहीं चाहा. एक युग था जब किसी स्त्री का अपहरण न किया जाए, तो उसका मतलब था कि उसकी कुरूपता निश्चित है . एक युग था जब सौन्दर्य का सम्मान अपहरण था. और अब वह युग नहीं है.  लेकिन आज भी अगर यूनिवर्सिटी कैम्पस में से किसी लड़की को कोई भी धक्का नहीं मारता तो उसके दुःख का कोई अंत नहीं है. कोई अंत नहीं है उसके दुःख का. और जब कोई लड़की आकर दुःख प्रकट करती है उसे बहुत धक्के मारे जा रहे हैं, तब उसके चेहरे को गौर से देखें, उसके रस का कोई अंत नहीं है. स्त्री चाहती रही है कि कोई अपहरण करने वाला मिले. कोई उसे इतना चाहे कि चुराना मजबूरी, जरूरी हो जाय.  कोई उसे इतना चाहे कि मांगे ही  नहीं चुराने को तैयार हो जाय. ......"  
" हमें ख्याल नहीं है आज भी -- युग तो बदल जाते हैं लेकिन कुछ ढाँचे चलते  चले जाते हैं... आज भी  जिसे हम  बरात कहते हैं किसी दिन वे प्रेमी के साथ गए हुए सैनिक थे. और जैसे आज हम घोड़े पर बिठाते हैं दुल्हे को ... दूल्हे को घोड़े पर बैठना बिलकुल बेमानी हैं, कोई मतलब नहीं है -- और एक छुरी भी लटका देते हैं उसके बगल में वह कभी तलवार थी और कभी वह घोड़ा किसी को चुराने गया था और कुछ साथी थे उसके जो उसके साथ गये थे वह बरात थी. और आज भी आपको पता होगा कि जब बरात आती है तो लड़की के घरवाली स्त्रियाँ  गालियाँ देना शुरू करती हैं.  कभी सोचा कि वे गालियाँ क्यों देती हैं? वह जिसके घर की लड़की चुराई जा रही होगी, उसके घर से गालियाँ दी गई  होंगी. लेकिन अब काहे के लिए गालियाँ दे रही हैं , वे खुद ही इंतजाम किए हैं सब.  आज भी लड़की का पिता झुकता है, आज भी. अब कोई कारण नहीं है लड़की के पिता  के झुकने का. कभी उसे झुकना पड़ा था. कभी जो उसे छीन  कर  ले जाता था, जो विजेता होता था, उसके सामने झुक जाना पड़ा था. वह कभी के नियम थे, जो अब भी सरकते हुए मुर्दा हालत में चलते चले जाते हैं...................."
वर्तमान में इसकी प्रासंगिकता पर विचार चाहूँगा.....
जय जोहार





मंगलवार, 2 मार्च 2010

सबै दिन होत न एक समाना.

एक सन्देश एकदम ब्लैंक मसौदे के रूप सहेजा गया था. क्या करूं कुछ ही समय पहले "हॉकी" देख के यहाँ बैठ गया. आज इस ब्लैंक को आज मिली "हार" से भरा जाना था. मन कहने लगा दो दिन पहले ही, मैच देख के खूब हांकी.आज कैसे रह गया  फांकी.  
भाई सबै दिन होत न एक समाना.  
और अब काफी बदल गया है ज़माना
वैसे तो होते सभी एक दूसरे से सवा सेर  हैं (यहाँ वैसे विरोधी ही सवा सेर लग रहे थे)
किसी दिन ज्यादा भूख नहीं होती, तड़पन में हो जाती है कमी
आलस में भी हो जाते ढेर हैं
लेकिन अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है
लेके सबक इस परिणाम से
हो जाओ चुस्त दुरुस्त
आने वाले मैच में कर दो विरोधी को सुस्त
दर्शक मीडिया दोउ से कहें, इनकी करें न टांग खिचाई
मांगे दुआ इनके लिए,
विश्व कप का  हकदार बने अपना देश ही भाई 

   





 

"नानी याद आ गई"

याद आता है बचपन. जाते थे हम अपने नानाजी के साथ वह पवित्र स्थान जहां प्रतीकात्मक होलिका दहन होता था.  मिलता था वहां उपस्थित सीनियरों और जूनियरों से  बड़ा सौहाद्र और अपनापन.  पर्व का प्रथम प्रहर  रंग  गुलाल से सरोबार रहने में बीतता था. मध्यान्ह  स्नान के बाद  बजरंगबली की पूजा प्रसाद स्वरुप रोंठ (एक पकवान का नाम) चढ़ाया जाता था.  शाम का समय साफ़ सुथरे, वैसे नए कपडे पहनकर जाते थे उस जगह पर  जहां फाग गाया जाता था.इससे पहले नानी जी और दादीजी शक्कर की माला पहनाती थीं  और उनसे कुछ मुद्रा भी मिल जाती  थी.  और मुद्रा का उपयोग हम सनीमा देखने में किया करते थे.  और तो और हम पारंपरिक पकवान इस क्षेत्र का, जिसे क्षेत्रीय बोली में "अनरसा" और "देहरौरी" कहते हैं, मजा लेने से नहीं चूकते थे.  आज हो सकता है हम ही "रिजर्व" नेचर के हो गए हों इस वजह से इन सब चीजों का लाभ न ले पा रहे हों. इन सब बातों की याद हमारे मित्र "शिल्पकार" उर्फ़ ललित शर्मा जी द्वारा पोस्टियाई गई रचना "लाल गुलाल अबीर के छाये हुए हैं रंग पढ़कर  आ गई.  लोगों को कड़े परिश्रम करने में, किसी समस्या से निजात पाने में नानी याद आती है.  मुझे मेरी माता स्वरूपा नानी यूँ ही याद आ गई.  उनको मेरा कोटि कोटि  प्रणाम.

सोमवार, 1 मार्च 2010

हॉकी में हुआ चमत्कार

 भले  न पढ़ पाए सुबह का अखबार 
मालूम तो था कि भारत ने कल हॉकी में, 
विरोधी की एक चलने न दिया,
गोल दागे जम के चार
खेलन को निकले थे होली, बातों बातों में 
मिला हमें यह समाचार
हमारे एक खिलाडी का,
पता नहीं, इरादे तो नहीं कह सकते
हो सकता है, जोश में  विरोधी टीम के किसी को
पड़ गई हो स्टिक की मार 
ताव ही ताव में प्रबंधन ने संगीन मान इसे 
जारी कर फरमान निलंबन का (सीधे तीन  मैच का)
कर दिया उसका बंटाधार 
हार की मार न पचा पाय न विरोधी 
कम से कम इस निर्णय से उनका 
दूर हुआ होगा मन का गुबार 

हमारे देश की टीम के लिए 
"जोश भी हो जश्न भी हो जिद्द हो जीतने की जंग"
की भावना के साथ विजयश्री हासिल करें
विश्व कप लाये  ऐसी कामना के साथ
जय जोहार

हर हाल जिया जाता है (जीना पड़ता है)

 देश का आय व्यय का ब्यौरा याने बजट
कैसे पेश हो सदन में, इन्तेजार रहता है
दूर-दर्शन के हर चेनल को, छपने के लिए
तैयार रहता है हर गजट (अखबार)
न्यूज़ चेनल पर बजट की योजनाओं पर,
टेक्स बढ़ने से बढती मंहगाई पर
चार दिन खूब चलता है चर्चाओं का दौर और होती है  समीक्षा 
कुछ दिन, अरे कुछ दिन क्या कुछ घंटों बाद 
सत्यनारायण की कथा  हो जैसे, कथा समाप्त 
कौन  कहाँ से ले लेते हैं दीक्षा
आटोमेटिक सब कुछ बंद हो जाता है 
जनता बेचारी क्या करे, उससे तो परिस्थितियों को
हर हाल जिया जाता है, हर हाल जिया जाता है. 

कहाँ कहाँ त्यौहार के मौके पर 
मुझे ये सब लिखने को सूझा 
जाने दीजिये अभी मनाएं होली 
और प्रभु से कहें वो सबकी भर दे झोली 
होली की शुभ कामनाओं सहित 
जय जोहार