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सोमवार, 15 मार्च 2010

टी.आर.पी. का लफड़ा तो नहीं???

बहुत ही ठेस पहुंची है. इस ब्लॉग जगत के दूसरों की पोस्ट में दूसरे के नाम से टिपण्णी करने सम्बन्धी (वह  भी असंसदीय भाषा का प्रयोग करते हुए जिसमे हमारे नाम से भी टिपण्णी भेजी गयी है), फर्जीवाड़ा काण्ड से. लगता है लोग कहीं आजकल टी आर पी के चक्कर में तो यह सब नहीं कर रहे हैं?  साथियों यह चिंता का विषय है. आजकल दूरदर्शन के कार्यक्रमों में हर धारावाहिकों में टी.आर.पी. बढाने की होड़ लगी है तो क्या अश्लीललता परोसने वाले  धारावाहिकों का टी. आर.पी. बढ़ा  दिखाई पड़ता  है क्या? अरे टी आर पी बढानी है तो अच्छी सामग्री  चयन कर नित पोस्ट लगाया जावे. छींटा कशी, किसी पर व्यंग्य करना,  और तो और असंसदीय भाषा का इस्तेमाल .....थू ..थू  थू .  और हाँ अच्छे रचनाकार इन सब बातों की चिंता भी नहीं करते. उनका तो टी आर पी तो स्वयमेव बढ़ा  हुआ रहता है. अरे किसी की अच्छी पोस्ट सराही नहीं जा सकती तो कम से कम यह फंडा तो न अपनाया जाय.  सभी से सहृदयता पूर्वक बड़े  सौहाद्र के साथ सामंजस्य बनाये रखते हुए हम इस ब्लॉग जगत की शोभा क्यों नहीं बढ़ा सकते? हमारा नाम अकेले नहीं है इसमें. आशा है इससे कुछ परिवर्तन आये.
जय जोहार ........

4 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

मंगलकामना ही की जा सकती है.


-क्या प्राप्त होगा अगर टी आर पी बढ़ भी गई?

बस, सार्थक लेखन किया जाये..बाकी सब आनी जानी है.

शरद कोकास ने कहा…

वा भई बधाई हो .. आपके नाम से भी टिप्पणी भेजी गई । हमारे नसीब मे यह सुख कहाँ ?

Khushdeep Sehgal ने कहा…

समीर जी की बात से पूरी तरह सहमत...

बेनामी की अमर्यादित टिप्पणी पर तो क्या कहना...लेकिन दुख तो तब हुआ जब एक सज्जन ने बेनामी टिप्पणी का बस उल्लेख करते हुए पूरी पोस्ट ही बना डाली...ऊपर से तुर्रा ये कि अगले दिन फिर उस पोस्ट के भड़काऊ टाइटल की वजह से अच्छी तादाद में पाठक मिल जाने के बाद जश्न मनाने के लिए एक पोस्ट और ठोक डाली...काठ की हांड़ी कितनी बार चढ़ाई जा सकती है...

ईश्वर से बस सदबुद्धि के लिए प्रार्थना ही की जा सकती है....

जय हिंद...

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

शरद भाई के बधाई कबुल करिए।
अउ गिरीश बिल्लौरे जी हाँ बेनामी ला
पॉडकास्ट के नेवता दे हे।
वो हां बताही के काबर बेनामी अउ फ़र्जी नामी
टिप्प्णी करथे।