लिव इन रिलेशन शिप - एक देहाती चिंतन
चिंतन देहाती नहीं है,
कटु सत्य है यह,
पाश्चात्य की यह संस्कृति
उपजी है इस मंशा के साथ
कि वासना की पूर्ती हेत
समीप सहज देह आती नहीं है
मर्यादा के आहाते के भीतर रह
बिताने को जिन्दगी की विधा
सहज ही किसी को भाती नहीं है
और सत्य कहता हूँ
मेरी यह सोच किसी के लिए ठकुरसुहाती नहीं है.
4 टिप्पणियां:
अच्छी प्रस्तुति......
http://laddoospeaks.blogspot.com/
रचना अच्छी लगी ।
लिव-इन रिलेशन पर अच्छी कविता है।
जय हो
बहुत अच्छी कविता है
ठकुरसुहाती नही है
कवि कह जाता है पर
सबको समझ आती नही है
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