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गुरुवार, 18 मार्च 2010

नवरात्रि पर्व, सुर लय ताल के संग माँ की स्तुति का पर्व

"जय माँ दुर्गे"

आ हा हा...... नवरात्रि का त्यौहार, चल रहा है माता का यश गान! मन कहीं भटकता नहीं! आदमी ठहर जाता है और पाता है स्वयं को माँ शक्ति स्वरूपा दुर्गा के बीच! नवरात्रि का ही नहीं कोई भी पर्व हो यदि हम गीत संगीतमय स्तुति करते हैं तो अवश्य कुछ क्षण के लिए ही सही अपने मनोविकारों को छोड़ देते हैं. इसीलिए तो संकीर्तन मार्ग भी प्रभु को प्राप्त करने का उत्तम मार्ग बताया गया है. और इस नवरात्रि में यशगान खासकर हमारी क्षेत्रीय बोली में ढोल मांदर के साथ माँ का यश-गायन, जिसे जस गीत कहा जाता है, अंगों में स्फुरण पैदा कर देता है झूमने लग जाते हैं.... मुझे सारी पंक्तियाँ तो याद नहीं रह पातीं केवल एक-एक पंक्ति यहाँ प्रस्तुत करता हूँ.....

"संबलपुर समलाई हो माता रतनपुर महमाया"
"नई माने काली..... कखरो मनाये नई माने"
"खदबद खदबद घोड़ा कुदाये........." आदि आदि
नवरात्रि  की  शुभकामनाओं  सहित......
जय जोहार...............  

3 टिप्‍पणियां:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

बहुत बढिया।
नवरात्री पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं

Udan Tashtari ने कहा…

नवरात्रि की मंगलकामनाएँ..

शरद कोकास ने कहा…

यह जसगीत सुना हुआ है याद आ रहा है ।