जन "काल का" ग्रास बना ले गई
हावड़ा दिल्ली "कालका" मेल
हे ईश्वर ! है तेरा यह कैसा खेल ?
कुसूर मुसाफिर का क्या था
भोंक दिया इन पर खंजर
खड़े हो गए रोंगटे सबके
देख भयावह यह मंजर
(२)
दफ़न ना हो पायी थी लाशें, हुए मुंबई में बम के धमाके कहीं खेद प्रकट, कोई आरोप जड़त, सब अपनी अपनी हांके
छीना सुहाग, बुझ गया चिराग, हट गया साया माँ बाप का
मकसद हमारा "आतंक" है; मरे कोई जिए कोई
क्या जाता हमारे बाप का
(आतंकवादियों को जरा भी अफ़सोस नहीं होता कि मारे जाने वाले उन्ही के सगे सम्बन्धियों में से हो सकते हैं. उन्हें तो केवल पैदा करनी होती है सबके के दिलों में दहशत .....शायद यह "शंकर" का संहारक रूप हो ......आयें करें विनती उनसे:- प्रभु ! "संहारक" रूप त्यागें, जगत का कल्याण करें .
"हर हर महादेव" "बोल बम" "ॐ नमः शिवाय"
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥
जय जोहार .........
3 टिप्पणियां:
सटीक अभिव्यक्ति ... काल का .. और आतंक दोनों के दृश्य आँखों के सामने आ गए ..
कुच्छु नइ जाए हमर बाप के
कौनो आ जाए रांपा मा खांप के।
मर्म पर चोट!! प्रखर अभिव्यक्ति!!
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