दुम में कितना है दम
कुत्ता
जानवरों में वफादार
दुम हिलाता मालिक सम्मुख
पाता है मालिक का प्यार
भार है घर की रखवाली का
होवे दुलारा घरवाली का
सुनके आहट अजनबी की
कहता है, हो जा प्यारे खबरदार!
करना नही देहरी पार
वरना
दुम की तरह, इरादे हैं पक्के
रह न पाओगे मानव तुम
कर दूंगा तुम पे दन्त, नख वार
(३)
इंसान की दुम हो गयी है गायब
फिर भी दुम हिलाता फिरता है
दुम की दम पे टिकता है,
रख ताक इज्जत बिकता है
हो चुकी होती है देर सम्हलने को
जब दुनिया की नजरों से गिरता है
जय जोहार............
डार्विन ने मानव विकास के बारे में कहा था कि पहले मानव की भी पूँछ होती थी लेकिन लंबे समय तक इस्तेमाल न होने की वजह से वह धीरे-धीरे ग़ायब हो गई. वैज्ञानिक मानते हैं कि रीढ़ के आख़िर में पूँछ का अस्तित्व अब भी बचा हुआ है. वे ऐसा कहते हैं तो प्रमाण के साथ ही कहते होंगे क्योंकि विज्ञान बिना प्रमाण के कुछ नहीं मानता. बात जब रीढ़ की हड्डी की हो तो यह सभी जानते हैं कि रीढ़ की हड्डी की मजबूती हमारे शरीर के लिए कितना महत्वपूर्ण है. और जब रीढ़ की हड्डी मजबूत हो तो 'दुम' जिसका अस्तित्व रीढ़ की आखिर में होना माना जा रहा है, में दम तो रहेगा भाई. विवेकशील मानव में दुम का भौतिक रूप में दृश्य अस्तित्व भले न हो चारित्रिक अस्तित्व तो अवश्य है. मन में उमड़ते घुमड़ते विचारों की श्रृंखला की एक कड़ी आपके समक्ष प्रस्तुत है कुछ इस तरह;
(१)
माता सीता की खोज में
रामदूत हनुमान का हुआ आगमन लंका
दुम हिलाया नहीं, दुम दबाया नहीं,
वह दुम ही तो है,
राख कर दी थी सोने की नगरी
दुराचार पर सदाचार की
जीत का बज गया था डंका
दुराचार पर सदाचार की
जीत का बज गया था डंका
(२)
कुत्ता
जानवरों में वफादार
दुम हिलाता मालिक सम्मुख
पाता है मालिक का प्यार
भार है घर की रखवाली का
होवे दुलारा घरवाली का
सुनके आहट अजनबी की
कहता है, हो जा प्यारे खबरदार!
करना नही देहरी पार
वरना
दुम की तरह, इरादे हैं पक्के
रह न पाओगे मानव तुम
कर दूंगा तुम पे दन्त, नख वार
(३)
इंसान की दुम हो गयी है गायब
फिर भी दुम हिलाता फिरता है
दुम की दम पे टिकता है,
रख ताक इज्जत बिकता है
हो चुकी होती है देर सम्हलने को
जब दुनिया की नजरों से गिरता है
जय जोहार............
8 टिप्पणियां:
insaan ke adrishy dum me koi dam nahi... puri rachna bahut achhi lagi .
आभासी और प्रतीकात्मक दुम.
दुम हां दूम-दूम ले हालथे फ़ेर दिखे नहीं।
पौराणिक काल से आधुनिक युग तक दुम के दम को प्रतिपादित बेहतरीन पोस्ट.
उमड़ते घुमड़ते विचारों से 'दुम का दम'खूब दिखाया है आपने.बहुत पसंद आया यह दम.
रामचरितमानस मुझे भी बहुत पसंद है.
आपका मेरे ब्लॉग पर हार्दिक स्वागत है.
भाई सूर्यकान्त जी बहुत सुन्दर कविता बधाई |
वह दुम के बहाने आपने गहरा कटाक्ष किया है।
वह दुम के बहाने आपने गहरा कटाक्ष किया है।
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