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शनिवार, 26 दिसंबर 2009

समाचार पत्र वाचन (पठन)


भले ही आज दौड़ भाग की जिन्दगी है. विश्व में,  हमारे देश में, राज्य में,  हमारे आस पास क्या हो रहा है क्या होने वाला है खेल कूद की क्या गतिविधियाँ हैं इन सभी चीजों से अवगत होने को प्रत्येक व्यक्ति आतुर रहता है. जानकारी प्राप्त करने के प्रमुख स्रोत तीन तरह के हैं:- (१) समाचार वाचन(समाचार पत्रों द्वारा)  (२) श्रवण (रेडियो समाचार) व (३) दर्शन व श्रवण दोनों (दूर-दर्शन चेनलों द्वारा).  क्या गाँव क्या शहर जहाँ पढ़े  लिखे लोग हैं उनमे सोकर उठते ही (यदि नित्यकर्म से निवृत्त हो जाएँ तो अच्छी बात है) समाचार पत्र वाचन की आदत बन चुकी है. यदि सात बजे तक यदि घर में समाचार पत्र नहीं आया तो बेचैनी लगने लगती है. मैं भी इसका आदी हो चुका हूँ. मैं काफी लम्बे समय से समाचार पत्र "दैनिक भास्कर" का नियमित पाठक हूँ. मुख्य पृष्ठ पर तो सिर्फ शीर्षक ही पढता हूँ. अन्दर के पृष्ठों पर एक नजर डालता हूँ और जहाँ आँखे टिक जाती है उसे पूरी तरह पढता हूँ. खेल समाचार भी. अधिकाँश समाचार "हत्या, "लूट पाट"  "दुर्घटनाओं" और नेताओं द्वारा एक दूसरे पर छींटा कशी से भरा होता है. मेरी सबसे अधिक पसंद का पृष्ठ होता है; "जीवन दर्शन" और "जीने की राह" वाला पृष्ठ. इस शीर्षक के अंतर्गत लिखी बातें जरूर पढता हूँ.  अभी कुछ दिनों से "मैनेजमेंट फंडा" के अंतर्गत नियमित रूप से आर्टिकल लिखा जा रहा है. आज मैंने इसमें  लिखी बातों को भी नज़रअंदाज नहीं किया. इन दोनों शीर्षकों के अंतर्गत छपे हुए सारांश या कहूं हाई लाईट की हुई कुछ लकीरें यहाँ उद्धृत करने का मन हो गया सबके लिए अनुकरणीय समझ कर लिख रहा हूँ;
पढ़ाई को उबाऊ नहीं दिलचस्प बनाएं :- हमें अपने बच्चों को किताबी कीड़ा बनने से बचाने की जरूरत है. आखिर कोई भी विषय सिर्फ अंक हासिल करने के लिए नहीं पढ़ाया जाता. हर विषय हमारे जीवन से कहीं न कहीं जुडा  है जुडाव के बारे में उन्हें समझाना होगा. ( मैनेजमेंट फंडा के अंतर्गत श्री एन रघुरामन जी का आर्टिकल)
 जीवन दर्शन :- (द्वारा पंडित विजयशंकर मेहता ) (१) जब भगवान् ने प्रसाद लेने से किया इंकार: जंगल से लौटते वक़्त एक गाड़ीवान की गाड़ी का पहिया कीचड में फँस गया. तब उसने भगवान् को याद किया. याद इस प्रकार किया कि आर्तनाद करने लगा कहने लगा हे भगवान् मेरी सहायता करो, बस यह गाडी कीचड से बाहर  निकाल दो मैं तुम्हे प्रसाद चढाऊंगा. देवता ने गाड़ीवान कि पुकार सुन ली. वे तत्काल उसके सामने आकर बोले -- क्या चाहते हो बोलो . गाड़ीवान वही बातें दोहराई कि भगवान् मेरी सहायता करो, बस यह गाडी कीचड से बाहर  निकाल दो मैं तुम्हे प्रसाद चढाऊंगा. देवता हंसकर बोले - बैलों को क्यों मार रहे हो? अरे भाई तुम भी पहिये पर जोर लगाओ और बैलों को भी ललकारो, फिर देखो गाडी कीचड से बाहर निकलती है या नहीं? यह सुनते ही गाड़ीवान ने पहिये पर जोर लगाया और बैलों को भी ललकारा तो गाड़ी बाहर आ गई. गाड़ीवान खुश होकर बोला भगवान् आपने मेरी गाड़ी कीचड से  निकाल दी, बस अभी आपको प्रसाद चढ़ाता हूँ. तब देवता ने कहा- मुझे प्रसाद की आवश्यकता नहीं है भाई, मैंने तुम्हारी गाड़ी नहीं  निकाली    तुमने स्वयं यह कार्य किया है. ऐसे व्यक्ति पर मैं प्रसन्ना रहता हूँ और उसकी सहायता करता हूँ. किन्तु जो व्यक्ति दूसरों का मुंह ताकता है वह अपना काम तो बिगाड़ता ही है मेरी  कृपा भी नहीं पाता. 
 यह पढ़ते ही ध्यान आया "हिम्मते मर्द मदद दे खुदा"
 जीने की राह (पंडित विजयशंकर मेहता द्वारा) :- महापुरुष बाहर से अलग पर भीतर से एक जैसे :- "महापुरुष दरअसल एक उर्जा हैं, जो करुना के कारण किसी के भी भीतर जन्म ले लेती है. इसीलिए ध्यान रखें कि जब हमारे भीतर जब ऐसी उर्जा आये या उसका जन्म हो तो हम सावधान रहें और उसे पकड़ लें" 
ऐसे रोज कई शिक्षाप्रद  बातें लिखी होती हैं. कम से कम पढ़ते समय तो लगता है कि इनका अनुपालन किया जाय. केवल पढ़ते समय ही नहीं यदि किसी समय हम बुरे फंसे होते हैं या कोई गलत कर बैठते हैं तो ये बातें जरूर एक बार कान में सुनाई  पड़ती हैं भले हम उसे माने या न माने. परिणाम भी तदनुसार देखने को मिलता है. 
अरे हाँ इस पृष्ठ पर पत्रकार महोदय श्री प्रीतिश नंदी जी द्वारा "प्रोद्योगिकी के गुलाम" शीर्षक के अंतर्गत लिखी बातें भी पढ़ा. उनके द्वारा लिखा गया है...."मैं शर्मिंदा हूँ कि मुझे अपने पिता की पुण्य तिथि को याद रखने के लिए मोबाइल फ़ोन पर अलार्म लगाना पड़ता है या फिर अपनी शादी की सालगिरह से दो दिन पहले कोई वेबसाइट याद दिलाएगी कि पत्नी को फूल भेजने हैं. खत्म होते इस साल पर स्वयं से एक वादा कर रहा हूँ कि मैं टेक्नोलोजी को अपना गुलाम बनाऊंगा न कि अपने जीवन को टेक्नोलोजी का गुलाम बनने दूंगा".  इस पर टिपण्णी चाहूँगा ........ शुभ रात्रि 

 

 




1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

सार्थक आलेख.