वास्तव में अभी कुछ दिनों से मेरी दैनिक यात्रा रेल से सुचारु रूप से नहीं हो पा रही है. वजह कभी कभी बॉस की कार से जाना हो जाता है. अब बॉस के साथ कार से जाने में भी नित नयी चीजें देखने को, अनुभव करने को मिलती हैं. पहली बात तो यदि आप अकेले अपने वहन से जा रहे हों तो भी मन कुछ न कुछ सोचते रहता है यद्यपि आपका सारा ध्यान रास्ते में अपने वाहन चालन पर रहता है पर मन तो है, इसकी गति की तुलना हवा से की गयी है, स्थिर थोड़े ही रहने वाला है. हम और बॉस जब जा रहे होते हैं तो काफी देर तक चुप रहते हैं तो शायद उन्हें कुछ अच्छा नहीं लगता. कार वही ड्राइव कर रहे होते हैं. वही कुछ टॉपिक निकालकर बात शुरू करते हैं फिर बीच बीच में हम भी उनकी बातों पर अपनी हाँ की मुहर लगा देते हैं या अपनी भी छोटी सी आप बीती सुना देते हैं. मुझे यात्रा के दौरान जो बात पिंच हुई वह यह कि हम जब कभी वाहन चलन करते हैं तो कैसे भी चलायें, हम अपने आप को एक अच्छा ड्राईवर मानते हैं. चाहे हम किसी भी प्रकार से ओवर टेक कर लें जायज है. पर यदि कोई दूसरा वही चीज करने लगता है तो मुह से सीधे गाली निकल जाती है. वास्तव में हुआ ये था कि शिवनाथ नदी कि छोटी पुलिया में दोनों तरफ से गाड़ियाँ (दुर्ग जानेवाली और राजनंदगांव जाने वाली) पुलिया में घुस आयी थीं. एक तरफ की गाड़ियों को पीछे करना पड़ा था लेकिन दुपहिया वाले कैसे भी घुस कर निकल जा रहे थे इससे हमारी गाड़ी को निकलने में लेट हो रहा था. बॉस को जल्दी जाना था इसलिए उनके मुह से उन दुपहिया वाहन वालों के लिए कुछ विशेषण युक्त शब्द निकलने लगे. मैंने मन ही मन सोचा हम भी जब मोटर साइकिल चलाते रहते हैं तब उस परिस्थिति में शोर्ट कट ही सोचते हैं और निकलने का प्रयास करते हैं तो उस समय भी हमारे लिए भी लोग यही सोचते होंगे. होता है अपने को अच्छा लगे वह सब जायज है. और आजकल सभी व्यस्त हैं चाहे काम से हो या " बीजी विदाउट वर्क" हैं. सबको कुल मिलाकर जल्दी है भाई... अब जादा नहीं लिख पाऊंगा मुझे भी जल्दी है ............
1 टिप्पणी:
SAHI SAWAL UTHAYA HAI AAPNE......
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