हर शख्स आज है भूखा
(१)
दिन रात की मेहनत, नहीं मिलता मेहनताना इतना
कि भर ले उदर अपना खा के रूखा सूखा
गुजर रही है जिन्दगी, रह एक जून भूखा
(२)
पाके लक्ष्मी कृपा असीम, विलासिता में डूबता चला
बीवी बच्चे खुश हैं सोच अपना फ़र्ज़ तू भूलता चला
वक्त नहीं है तेरे पास अपने बिच बांटने को प्यार
घर का हर शख्स आज भूखा है तेरे प्यार का
(3)
ऊंचे ओहदे पर आसीन मानस,
नामचीन, पठन पाठन लेखन
धर्म कर्म साहित्य अनेक प्रतिभाओं के धनी,
भूखा है, प्रतिष्ठा और सम्मान का
(४)
यौवन, नर-नारी का
प्रकृति प्रदत्त उपहार
सृजन का आधार; जिस पर
"मनसिज" इठलाता, इतराता
मन चंचल, कहता मचल मचल
कि भूखा है वह "काम" का
(५)
पनप रही है पिशाच वृत्ति
निरपराधों की नृशंश हत्या
जग देख रहा यह कृत्य
भूखा है इंसान यहाँ
इंसान की ही जान का.
जय जोहार....
9 टिप्पणियां:
देखन में छोटी लगें, घाव करें गंभीर। बहुत कुछ कहती हैं आपकी क्षणिकाएं।
भूखा है इंसान
-सही चित्रण!
... कडुवा सच लिख रहे हो "बडे मियां ...बधाई!!!
हर शख्स भूखा और कितनी तरह की भूख....विचारने योग्य बातें
बेहद उम्दा क्षणिकाएं।
सत्य के करीब ले जाती शानदार क्षणिकाएँ।
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क्या आप बता सकते हैं कि इंसान और साँप में कौन ज़्यादा ज़हरीला होता है?
अगर हाँ, तो फिर चले आइए रहस्य और रोमाँच से भरी एक नवीन दुनिया में आपका स्वागत है।
सुन्दर वाक्यविन्यास. कविता के लिए धन्यवाद भाई साहब.
स्वामी जी की कृपा बनी रहे.
मंगलवार 29 06- 2010 को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है आभार
http://charchamanch.blogspot.com/
लगे रहो....
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