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बुधवार, 16 जून 2010

धर्म, साहित्य और सत्संग

                                धर्म ग्रंथों को यदि सम्प्रदाय से ऊपर रखकर देखें और उनमे उद्धृत बातों की व्याख्या सकारात्मक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए करें साथ ही साथ अमल में लायें तो जीवन सफल हो जाता है. गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीरामचरित मानस जिसे महाकाव्य कहें या ग्रन्थ कहें मनुष्य की जीवनचर्या सुचारुरूप से निष्पादन  के लिए अत्यंत उपयोगी है. मानव जीवन के प्रवाह को नियंत्रित करने के सत्संग आदि  अनेक साधन हैं, किन्तु उनमे दो प्रमुख हैं - धर्म और साहित्य. सत्संग की महिमा से तो सभी अवगत हैं. श्रीरामचरित मानस में इसकी महिमा का वर्णन इस प्रकार किया गया है:-
"सठ सुधरहि सतसंगति पाई. पारस  परस कुधात सुहाई"  अर्थात सतसंग से "सठ" मूढ़ व्यक्ति का जीवन ठीक उसी प्रकार संवर जाता है जैसे पारस पत्थर के स्पर्श से लोहा. सतसंग के बिना विवेक काम नहीं करता और सतसंग भी राम जी की कृपा के बिना सुलभ नहीं नहीं होता. अतएव साधारण मानव को धर्मग्रंथों और साहित्य पर निर्भर रहना पड़ता है. धर्म और ग्रन्थ एक दूसरे के सहायक और पूरक रहते हैं. धर्म से साहित्य को प्रेरणा मिलती है और साहित्य से धर्म की व्याख्या होती है. धर्मग्रंथों का उपदेश कुछ ऊँचे धरातल से होता है. उनमे ईश्वरीय आज्ञा की भावना रहती है. वह उपदेश प्रभु सम्मत होता है, किन्तु साहित्य का उपदेश 'काँटा-सम्मिततयोपदेशयुजे' स्त्री का सा कोमल मधुर और स्नेहपूर्ण होता है.  
                                         इस प्रकार तीनो ही:- धर्म, साहित्य और सतसंग हमारे जीवन में अत्यंत उपयोगी हैं. इस पर मनन करें अच्छे साहित्य का अध्ययन करें और अच्छी बातों पर अमल करें. 
जय जोहार....... 

9 टिप्‍पणियां:

36solutions ने कहा…
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ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

शठ सुधरहीं सतसंगति पाई,
बने कही तुलसीदास जी हां।
जेखर ज्यादा दिमाग हो जथे
तैंहा शठ हो जथे,ओखर बुद्धि हां रचनात्मक कार्य में नई लगय्। तेखरे सेती शठ ला सत संगति करे ला केहे हे।

जोहार ले साहेब

36solutions ने कहा…

जय हो! जय हो!!!

स्वामी बाबा ललितानंद तीर्थ जी की जय हो, बाबा की संगति का असर इस ब्‍लॉग पर भी परिलक्षित है, विचारों की मीमांसा स्‍वामी जी की कृपा से आपके मानस में उमड़ते घुमड़ते रहे और मुझ 'सठ' को विचारों के प्रवाह की संगति निरंतर प्राप्‍त हो.

जय जोहार

कडुवासच ने कहा…

...सतसंग से "सठ" मूढ़ व्यक्ति का जीवन ठीक उसी प्रकार संवर जाता है जैसे पारस पत्थर के स्पर्श से लोहा ...

...बेहद प्रसंशनीय भाव व्यक्त किये हैं .... आप तो स्वयं अंतरयामी हैं .... माडरेशन कार्य प्रगति पर है,जरा संभल कर चलें .... जय जोहार!!!!!

कडुवासच ने कहा…

... आज ई पोस्ट ला तो ऊपर चघना बनत हबय ... नई चघही तो चघा देवो ... फ़िर झन बोलबे गा महराज ... काबर चघायेस कहिके ... शाम तक देखत हंव ...!!!!

arvind ने कहा…

बाबा की संगति का असर इस ब्‍लॉग पर भी परिलक्षित है, .......जोहार ले साहेब

आचार्य उदय ने कहा…

आईये जानें ..... मैं कौन हूं !

आचार्य जी

दिलीप ने कहा…

bilkul sahi kaha...aajkal yahi kar raha hun...jitna padh sakta hun padh raha hun...

शरद कोकास ने कहा…

अच्छा है ।