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शनिवार, 14 नवंबर 2009

नवा बैला के नवा सिंग चल रे बैला टींगे टिंग

मैं हा बने देवारी के दिन ये बलाग लिखे ला शुरू करे रेहेवं। ललित भाई अउ शरद भाई के आशीर्वाद अउ प्रेरणा मिले के बाद एकदम जोशिया गे रहेवं। तहां ले बस हर दिन बलाग लेखे के मन करै। ओइसने ताय ...."नवा बैला के नवा सिंग चल रे बैला टींगे टिंग"। अब सोचे बर परथे थोकिन। तौ गति हा धीरे हो गे हे लिखे के। करीब २-३ दिन ले सुभीता खोली माँ तो नही पर अइसने बइठे बइठे गुनत रहेवंभीतरे भीतर गुंगुवत रहिस मोर सोच हा के ये बलाग लिखे माँ का नफा हे का नकसानछत्तीसगढ़ी माँ तो नई सोच सकेवं। हिन्दी माँ सही लिखत हौं। बलाग के जोड़ तोड़ ला पहिली कर डरे हवं। (बला + आग)। कोनो गुसियाहू झन। हाँ आलोचना समालोचना कर सकत हौ ;
जब से आया है यह डब्बा (कंप्यूटर) नई नई चीजों के साथ ब्लॉग लेखन का अच्छा दौर चला है कवि साहित्यकार लेखक चिंतन करने वालों के लिए :- ब्लॉग लेखन एक कला है उन गृहिणियों के लिए जो अपने "उनको" पाते हैं इसमे व्यस्त सदा, उनके लिए बला है नव सीखिए, रखते हैं कुछ इसी तरह कर गुजरने की तमन्ना उनके ब्लॉग लेखन के लिए यह भला है और यदि इसे कोई तुलनात्मक दृष्टि से देखता हो और यदि कुछ हद नव सीखिए की भावना प्रकट हो रही हो उसकी चंद लकीरों से, प्रशंसनीय है हो रहा हो इसमे अग्रसर तो माहिर लोगों से कहूँगा आपका दिल क्यों जला है, उस नव सीखिए का लिखना आपको क्यों खला है
चाहिए इन्हे आपका आशीर्वाद अच्छे अच्छे सुझाव नव सिखियों को उनके मुकाम तक पहुचाव

1 टिप्पणी:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

धन्य हो महाराज-देखिये कितना फ़ायदा हो रहा है नवोदित लेखकों को अब विचारो के प्रकटीकरण के लिए "सुभीता खोली" मे जाने की जरुरत नही पड़ रही है। अब बैठे बैठे ही विचार आ रहे हैं कितना हर्ष का विषय है। हां बला+आग ऐसी औषधि है कि जिसने अपने दिमाग को ही "सुभिता खोली" बना लिया है उसके दिमाग के मलों को जलाकर मार्जन एवं प्रक्षालन का काम करतीहै, आग का मुख्य कार्य ही मलों का शोधन करना है। तो समय आ गया है, अपने दिमाग को तपाईये और कुंदन बनाकर अपने विचारों से समाज का भला करिये। बधाई