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गुरुवार, 5 नवंबर 2009

बला के आग

अपन ऑफिस माँ बइठे ब्लॉग माँ अपन लिखे चीज ला देखत रेहेंव। हमन एला बलाग कथन। देखत देखत सोचेंव के शरद भाई मेरन बात कर लेना चाही। घनघनवायेवं ओखर मोबाइल के घंटी। जन मानस के एक ठन स्वाभाविक प्रवृत्ति होथे के पहिली जउन काम ल करना हे, बेरा कुबेरा कोनो ल पेरना हे त फोनिया के पेरलौ, अउ दखल डारे के बाद सामने वाले ला कहौ के आप ला तकलीफ थोरे होईस। लोक लाज माँ बिचारा का केहे सकही। झक मार के कइही ... नही नही कोनो तकलीफ नई हे, ले गोठिया। अइसने तंग मैं हा शरद भाई ल करेवं। जम्हाई लेवत रहिसे ओतके माँ मैं फोनिया देवं। खैर ओ हा घर परिवार के मनखे बरोबर हे। गारी देही त दे लेही। करीब आधा घंटा ले गोठियाएन। एही बीच माँ मोर मुह ले निकल गे ये ब्लॉग हा यदि बलाग कहिबो त बला के आग हो जाही। अउ ये ओ आग आय जेन मेरन ले हटे के मन नई लगे जैसे जाड के दिन माँ पहिली गोरसी के आगी तापत बैठे रहन. त ये विचार ल भाई शरद कहिस के तुंरत तैं पोस्ट कर दे। येदे कर देवं जी पोस्ट.......

2 टिप्‍पणियां:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

ये ओ आग आय जेन मेरन ले हटे के मन नई लगे जैसे जाड के दिन माँ पहिली गोरसी के आगी तापत बैठे रहन.बने करेस जउन पोस्ट कर देस नही त इहि बिचार हां पेरत रहितिस,अउ कोन जनि तैं हां के झन ला एदे बला के आगि मा तिपोए रहितेस, अब हमर जैसे मनखे बर जाड़ हां घलो मांहगी होगे हवे,पहिली के जमाना मा फ़ोकट मा पा जान, तिपे बर गोरसी के ठिकाना नई परत हवय, कहां ला तिप बे तेखरे सेती चलो तिप नई सकौं त कोई संसो नई ये, टीप त सकत हंव कहिके टीपत हंव।

रवि रतलामी ने कहा…

हव जी, बने कहेस. ये बलाग हर बला के आगी च हे. फेर आप मन अब गोड़सी ल जला ले हव (बलाग खोल ले हव) तब तो तापे ल पड़ही. अब गरमी पड़े के सरदी.