आईए मन की गति से उमड़त-घुमड़ते विचारों के दांव-पेंचों की इस नई दुनिया मे आपका स्वागत है-कृपया टिप्पणी करना ना भुलें-आपकी टिप्पणी से हमारा उत्साह बढता है

मंगलवार, 10 नवंबर 2009

भगवान आखिर तही हा जीत थस

खेल के मैदान होवे चाहे होवे राजनीतउतरे के बाद मैदान माँ हो जाथे तोर ले प्रीत अभी अभी होए रहिस इहाँ उपचुनाव१५ झन मनखे मन लगाये रहिन अपन दाँव लेकिन देवत रहिन दुए झन अपन अपन मेछा माँ ताव एक झन हा कहत हे हे ईश्वर जागले दे के चांस मिले हे जगा दे मोर भाग दूसर हा कहत हे मैं तो अतके जानथौं। तय हस निराकार येला मैं मानथौं उतरे हौं मैदान माँ तबले रेगुलर करथौं मैं भजन तोरलगाबे नैया पार, मत देबे तय नरवा माँ मोला चिभोरवो तारीख रहै सात होगे इंखर किस्मत हा इ. व्ही. एम्. माँ बंद दिन ले शुरू होगे इंखर मन माँ अंतर्द्वंद। अगोरत अगोरत होगे दस तारीख के बिहन्हा। नेता जनता दुनो पहुचगे पालीटेक्निक कालेज जाने चुनाव रिजल्ट, हलावत अपन कनिहा। निराकार के जीत होईस हार गे साकार। अरे दुनो माँ त तही हस तोर लीला हे अपरम्पार। अउ जम्मो छत्तीसगढिया मन ला मोर जय जोहार।

2 टिप्‍पणियां:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

निराकार के जीत होईस हार गे साकार।
बने सुग्घर गोठ केहे ह्स सरकार,
तोर होवे जय-जय कार

शरद कोकास ने कहा…

भैया पहिले काबर नही बताये रहेस अतेक सुन्दर भजन लिखे हे । अब ये भजन के का जरूरत भजन भैया त चुनव जेत गे हे । जय छत्तीसगढ