चुनाव लड़ने की चाहत
चाहत लोक हित की
या स्वहित की
स्वहित कैसे कहें
आने लगती है हिचकी
चाहता कानून सबूत
दोषी पाया जान सिद्ध करने
खुले आम ले जाते मदिरा
कपड़े, कम्बल
झुग्गी झोपड़ियों में रहनेवालों के
के बीच वितरण करने
बनाते इन्हें अकर्मण्य
देकर दो-तीन रुपये किलो चांवल,
मुफ्त नमक
कर कैसे सकती जनता नमक हरामी
धन्य है! चुनाव आयोग
"खुले आम" पे लगा लगाम
भले अंदर हो बंटवारा जारी
जय हो जय हो जय हो
निकल पड़े
बड़े धाक जमाने ताबड़ तोड़
सभाएं करते
है सबको कुर्सी प्यारी
जय जोहार ......
2 टिप्पणियां:
कोण भाखा म लिखे हव ? समझ के बाहिर हे ...
wahhh
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