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सोमवार, 9 अगस्त 2010

अभी बहुत दिन ले रैहौं सबले दुरिहा

सभी मित्रों को क्षमा प्रार्थना के साथ नमस्कार.  कुछ परिस्थितियाँ ऐसी निर्मित हो जाती हैं जो कुछ दिनों के लिए अपनों से अलग कर देती हैं  जुड़ने के लिए समय लग जाता है. इसके अलावा एक वजह ब्लॉगर मित्रों से अलग होने का यह भी है कि अभी अंतरजाल की बुनाई कहीं से टूट गई है और यही वजह है अभी लेखनी बंद है.  आज कहीं ज़रा  सा वक्त मिला है सो  अपनी इन पंक्तियों से इन्हें क्षेत्रीय बोली में व्यक्त करने का प्रयास किया है:-
चाहे महल हो, बंगला हो
चाहे बनवाथें अपन बर कुरिया
चाहे बेटी ल भेजे बर परै दुरिहा
चाहे घर मा लाव  बहुरिया
बने बने माड़ गे गाड़ी  अपन पटरी माँ त  ठीक हे
नई तो कर दे थे अपन ला अपने च ले दुरिहा
सारांश यह है कि अभी हम सरकारी आवास छोड़ के अपने  ठौर (जुन्ना कुरिया) में रंग रोगन करके रहने चले गए हैं. इस वजह से सारे टेलीफोन कनेक्शन अंतरजाल (इन्टरनेट) कनेक्शन टूट चुका है. अभी जुड़ने में वक्त लगेगा. तब तक अवसर मिलने पर ही मुलाक़ात हो सकेगी.
जय जोहार........

4 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला ने कहा…

सब से पहले घर। बलागिन्ग तो होती रहेगी। बहुत दिन से मै भी चुट्टी पर थी। शुभकामनायें और बधाइयाँ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अपने घर में व्यवस्था दुरुस्त कर लें ....शुभकामनायें ...

arvind ने कहा…

kuchh dino se aapse dur rahane par vaise hi tabiyat bigad rahi hai upar se aapne maafi mangkar sharminda bhi kar diya....शुभकामनायें और बधाइयाँ।

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

पहिली घर ला बने चौंकस कर ले,
फ़ेर ब्लागिंग करबे, अभी आफ़िस ले करत हस, मै जानत हंव।
मतलब हेराफ़ेरी हवे।
जोहार ले