(१)
प्रदूषण के कितने प्रकार
पूछना न कभी किसी से यार
भौतिक, शारीरिक या चारित्रिक
हर कोई प्रदूषण झेल रहा है
कुछ दूसरे पर ठेल रहा है
(२)
सरकार बनाती है योजनायें
तय करती है एक समय सीमा
हम जो ठहरे आलस के पुजारी,
करते हैं काम धीमा धीमा
(३)
शहर की सड़क, गाँव की डगर
सुधर रही हैं, गति धीमी है मगर
मार्ग दोराहा नहीं रह गया है
एक तरफ 'कार्य प्रगति पर' लिख
दूसरी ओर पथिकों की दुर्गति कर गया है.
(४)
रोड जाम है;
दुपहिया तिपहिया बहुपहिया वाहन फेंके धुंआ,
करें हैरान, कर 'ध्वनि-संकेत' का शोर
बहरे हो गए कान, हो गई नजर कमजोर
धूल स्नान कर कर के हो जाती जनता धुलिया
बदल जाता है गाँव, शहर संग जनता का भी हुलिया
जय जोहार..............
9 टिप्पणियां:
bahut sundar vyangya...kataaksh....majaa aa gayaa....jay johaar.
बहुत सटीक और सार्थक बात कही है ...अच्छी रचना
... bahut khoob !!!
बहुत अच्छी रचना !
उम्दा पोस्ट-सार्थक लेखन के लिए आभार
प्रिय तेरी याद आई
आपकी पोस्ट ब्लॉग4वार्ता पर
मंगलवार 31 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपका इंतज़ार रहेगा ..आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार
http://charchamanch.blogspot.com/
वाह-वाह,बहुत बढिया-बने बने साहेब
कमरछट्ट मना डारे गा।
पसर चांऊर अब्बड़ मांहगी होगे हे-50 रुपया पाव
हा हा हा
जोहार ले
खोली नम्बर 36......!
अच्छी रचना,
कृपया अपने बहुमूल्य सुझावों और टिप्पणियों से हमारा मार्गदर्शन करें:-
अकेला या अकेली
बहुत सही---मानसिक प्रदूषण --हर प्रदूषण की वज़ह.
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