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रविवार, 7 नवंबर 2010

पञ्च दिवसीय दीपोत्सव व लोक संस्कृति

यद्यपि भारतीय हिन्दू संस्कृति  के अनुसार प्रत्येक माह की प्रत्येक तिथि अपने आप में एक पर्व  है, कार्तिक का महीना सभी दृष्टिकोण से पावन माना जाता है. कृष्ण पक्ष व शुक्ल पक्ष दोनों ही त्योहारों से परिपूर्ण है. चारों ओर खुशियाँ बिखेरे हुए. क्यों न हो. यह सब अकारण नहीं है. बरसात का मौसंम विदा ले चुका होता है. शीत ऋतु का आगमन. स्वास्थ्य की दृष्टि से भी सामान्यतया रोगों की विदाई का समय. चिकित्सकों के लिए बीमार सीजन.  खेत खलिहानों में भी खुशहाली का वातावरण. पञ्च दिवसीय दीपोत्सव का तो कहना ही क्या.  तरह तरह के पकवान. उत्साह प्रदर्शित करने का भिन्न भिन्न तरीका, मजा ही आ जाता है. यह कहना भी अनुचित नही होगा की अपनत्व महज औपचारिकता में परिवर्तित होता दिखाई पड़ने लगा है. शहरों में लोक संस्कृति भी लुप्त होती नजर आ रही है. धनतेरस से अमावस्या तक अपने ही घर में इस पर्व का आनंद लिया गया. विस्तृत तकनालोजी की देन चलित दूरभाष से शुभकामना  सन्देश का आदान प्रदान. लक्ष्मी पूजा. तत्पश्चात चल पड़े अपने ननिहाल जहाँ प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्चतर माध्यमिक की शिक्षा पूरी हुई है.  एम बी बी एस स्व वाहन से जा रहे थे. रास्ते में कई गाँव पड़े जहाँ यादवों का पारंपरिक पोशाक में पारंपरिक नृत्य चल रहा था. पुरानी यादें ताजा हो आई. बच्चे पूछते गए जहाँ तक बन पड़ा बताये. बचपन में अपन भी उनके नृत्य में शामिल हो जाया करते थे. उनकी कुल देवी या कुल देवता कहें उन्हें जगाया जाता है, जिसे मातर जगाना कहते हैं.   (शायद आह्वान किया जाना इसका पर्यायवाची हो सकता है) इसमें बलि प्रथा का भी प्रचलन था पहले अभी भी है की नही मैं कह नहीं सकता.  अपनी प्यारी छत्तीसगढ़ी बोली में दोहे गा गा के यादव लोग नाचते हैं एक तरफ ईश्वर भक्ति की ओर ले जाता हुआ दोहा तो एक तरफ हास्य का पुट देता हुआ । वाद्य यंत्र भी अलग किसम का जिसे  "गंड़वा बाजा "कहा जाता है, के साथ नाचते हुए नर्तक  जिसमे एक या तो महिला भी होती थी या कोई महिला पात्र बनकर नाचता था। अभी शहरों में यह दृश्य देखने में कम आता है.  देखिये दोनों प्रकार के दोहों की एक झलक;

"राम नाम की लूट है लूट सके तो लूट 
अंत काल पछतायेगा प्राण जाएगा छूट 
(२)
सबके बारी म अताल पताल मोर बारी म केला रे 
अउ सबके डउकी कानी खोरी मोर डउकी अलबेला रे .......                                                                                                                                              राम राम सब कोई कहे, दसरथ कहे न कोय अउ                                                                                                                                        एक बार दसरथ कहे तो घर घर लइका होय
बलि प्रथा के ऊपर निम्न लिखित पंक्तियाँ लिखने को सूझ बैठा:-
धनतेरस, नरक चतुरदस, सुरहुत्ती देवारी अउ भाई दूज 
अपन अपन देवी देवता संवुर के बोकरा बोकरी कुकरी पूज 
जय जोहार ...........

5 टिप्‍पणियां:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

सबके बारी म अताल पताल मोर बारी म केला रे
अउ सबके डउकी कानी खोरी मोर डउकी अलबेला रे

जय हो, बने माते राह गा।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

नयी जानकारी मिली ..

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत अच्छी जानकारी है धन्यवाद।

शरद कोकास ने कहा…

क्या बात है दिवाली तक एकदम फास्ट चले फिर ठंडे हो गये ... अच्छा दिवाले के बाद आराम ?

sumit das ने कहा…

ye hamari chhatisgari sanskrti hai.vakai ise sahajna jaruri hai nahi to ye bhi lupt hone ke kagar mai hai. "ram se hote sab kam.auu jaam se jaam re. .abhanpur ke blogger bhaiya lalit jo okar nam re"