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गुरुवार, 15 नवंबर 2012

देख रहा यह दृश्य सारा जहां है

देख रहा यह दृश्य सारा जहां है
पीड़ा है माँ के मन में
बेटे से दूर रहने की 
मांगती है भगवान् से
बेटे की सलामती की दुआ। 
मगर वाह रे वर्तमान!
माँ बाप का ही दोष है 
अथवा जमाने का;
बेटे को ऊंची तालीम, 
दिलाने की तमन्ना
 उसे ऊंचे ओहदे पर 
देख पाने का ख़्वाब। 
नतीजा; 
दौलत की चाह, 
चकाचौंध करती  
पाश्चात्य सभ्यता, 
चला जाता है वह
सात समंदर पार। 
पसीने की कमाई से 
तैयार आशियाना 
बन गया है डरावना खण्डहर 
व्यतीत हो रहा है 
शेष समय वृद्धाश्रम में।
आ गया वह क्षण, 
आत्मा के निर्गमन का 
अत्याज्य मोह! 
   अपनों को समीप पाने का 
चीत्कार रही है आत्मा 
बेटा! बेटा! ...बेटी! बेटी!
प्रतीक्षा की घड़ी समाप्त! 
कहाँ है बेटा, बेटी कहाँ है?
कंधे देना भी हो नहीं पाता मुनासिब, 
       देख रहा यह दृश्य सारा जहां है .......... 
जय जोहार ........... 

2 टिप्‍पणियां:

संध्या शर्मा ने कहा…

ओह... यही है आज की हकीक़त, अंत समय भी ना ख़त्म होने वाला इंतजार लेकर चले जाते हैं इस दुनिया से, आखिर मोह क्या था? अपनों का कि सपनों का??
मार्मिक रचना.... आभार आपका

सदा ने कहा…

आज केवल यही सच जिंदा है ... बाकी सब झूठ .. बहुत ही बढिया लिखा है