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शनिवार, 1 दिसंबर 2012

सोलह संस्कार

हमारा हिन्दू धर्म शास्त्र नाना प्रकार के कर्मकांडों से भरा पड़ा है। वैसे जन्म से लेकर मृत्यु तक सोलह संस्कार माने गए हैं।
1. गर्भाधान      2. पुंसवन      3. सीमंतोन्नायन      4. जातक्रम     5. नामकरण
6. निष्क्रमण     7. अन्नप्राशन   8. चूड़ाकर्म           9. कर्णवेध     10. यज्ञोपवीत
11. वेदारंभ      12. केशांत     13. समावर्तन        14. विवाह     15. आवसश्याधाम
16. श्रोताधाम 
इन संस्कारों के बारे में ज्यादा जानकारी तो नहीं है और न ही इन संस्कारों के निष्पादन की तार्किक आवश्यकता के बारे में। पता नहीं हम भी, जैसा कि घर में सयानो के द्वारा कहा जाता है कुछ संस्कारों के निष्पादन/सम्पादन के लिए, उसे मान लेते हैं। अभी हाल ही में हम "गयाजी" गए थे। माता जी तो शैशवा अवस्था में ही, और पिताजी जब हम छठवी कक्षा में थे तब दिवंगत हो चुके हैं। कहा जाता है कि अश्विन मास (क्वार) के कृष्ण पक्ष के पंद्रह दिन पितरों के लिए होते हैं। उन दिनों मृतात्मा की शान्ति के लिए तर्पण इत्यादि किया जाता है और जिन्हें इन पंद्रह दिनों के तर्पण क्रिया से निजात पानी है वे गया जी में जाकर पिंड दान कर आयें। ऐसा करने से जो भी सगे सम्बन्धी दिवंगत हो गए हैं उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है। अतएव हम भी 20 नवम्बर को गयाजी के लिए रवाना हुए थे। 21 व 22 को पिंड दान/श्राद्ध कर्म कर आये। चाहे मृत व्यक्ति के अस्थि प्रवाह के लिए इलाहबाद में कराये जाने वाले कर्मकांड हों या फिर श्राद्ध कर्म के लिए किये जाने वाले कर्मकांड, पंडों की गतिविधियों के बारे में अक्सर बुरा ही सुनने को मिलता था। वह प्रत्यक्ष देखने को मिल गया। हम तो चूंकि जाने से पहले ही हमारे क्षेत्र के यजमानो का काम निपटवाने वाले पंडाजी से संपर्क कर लिए थे इसलिए काम सहज ढंग से निपट गया। वहां जो नजारा देखने को मिला वह ऐसा था कि व्यक्ति कहाँ अपने दिवंगत परिजनों की आत्मा की शांति के लिए, उनके स्वर्ग-गमन की कामना के लिए गया है मगर दान दक्षिणा पण्डाजी के मन माफिक नहीं मिला तो पण्डाजी के गाली गलौच में उतर आने के कारण मन खिन्न हो गया। चूंकि बचपन से ही विभिन्न कर्मकांडों की अनिवार्यता के बारे में घुट्टी पिला दी गई है, मन इन कर्मकांडों को निबटाये बिना शंकित रहता है। वैसे हमें मन से ईश्वर में ध्यान लगाने से ही संतुष्टि मिलती है। गयाजी से आने के बाद 
 सार यही समझने लायक है वर्तमान में खासकर "पैसा पितु पैसा सखा पैसा ही भगवान्". 
जय जोहार ..... 

2 टिप्‍पणियां:

संध्या शर्मा ने कहा…

आप सही कहते हैं मन से ईश्वर में ध्यान लगाने से ही संतुष्टि मिलती है। लेकिन आज तो सचमुच बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा रुपैया वाला फ़ॉर्मूला ही सर्वत्र दिखाई देता है. बड़ी मुश्किल से पहचान में आये आप...

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत बड़ी बात कह दी....
अब तो सुख शांति भी पैसे से मोल लेने की बात होती है..
अच्छी पोस्ट.

सादर
अनु