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बुधवार, 16 जनवरी 2013

टिपियाते थे डेश बोर्ड की मदद से।

हिंदी फॉण्ट ठीक से काम न करने की वजह से टिपियाते थे डेश बोर्ड की मदद से।  कुछ संकलन पढियेगा हुजुर 
(1)
क्या करिएगा .....आज भारतीय संस्कृति
"रूढ़िवादिता" कहलाने लगी है। बहुत
सुन्दर लेख ...जो कर सके परम्परा का
निर्वाह वे करें ...और जो नहीं कर सकते
वे न करें। मगर इन परम्पराओं के
नकारात्मक पहलुओं को प्राथमिकता देते
हुए इनके विलोपन में योगदान न दें
तो ज्यादा अच्छा है। मन के भाव, व्रत
रखने की क्षमता शारीरिक स्थिति के
अनुसार, इन सब चीजों का ध्यान रखते हुए
पालन करें। जोर जबरदस्ती नहीं है भाई ...
आपका लेख अच्छा लगा .....आभार!
(2)
बड़ सुन्दर रचना लगिस, मिलिस हमू ल गियान ।
हमर भाखा बिस्तार बर, धरबो हमू धियान।। 
जय जोहार ...
(3)
ॐ जयंती मंगला काली भद्र का
ली कपालिनी
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते
जय माता  जी
(5)
यही स्थिति हमारी है ...ब्लॉग जगत में कहीं लुप्तप्राय ...आपका लेख बहुत ही मार्मिक, अंतर्मन को छू लेने वाली ......आभार!                                                              (6)
वैसे भी .... खास होते हैं "आम" कहाँ
          बिक जाते, मिलते हैं "दाम" जहाँ
          सही कहा आपने ...नही ख़ास को आम लिखेंगे ...
          सादर!
              (7)
दीपावली  की अग्रिम बधाई सहित .....नीड़ को नव ज्योतियों से जगमगाने के लिए पर्व की प्रतीक्षा में ....
सादर ....   पुलिस की नौकरी ...बनाती है व्यक्ति को सख्त
           ड्यूटी में कहाँ मिल पाता है, खुद के लिए वक्त
           खासकर महिला होने के नाते, ख्वाहिशें दब जाती हैं
           मगर परवर दिगार देख रहा है,
           इनके जीवन में भी खुशियाँ जरूर आती हैं ...
           त्योहारों के मनाने के ढंग ..बाजार का दृश्य,
           घर में परिवार के प्रत्येक सदस्यों की विशेषताएं
           ख़ास कर भांजी की ....सभी का सुंदर चित्रण
           दीपावली की अग्रिम शुभकामनाओं सहित ...सादर!
                                                                                   (8)
"सफ़र" हुआ सुहाना भले हुए हम "सफ़र"
राह वही सुगम है,
जरा जन्म से मुक्ति दिला दे,
बाकी है सब सिफर ....
सटीक कथन "कर्म ही राह
दिखलाता है, सुगम बनाता है ... तत्व परक  ..
(9)
"हमारे कर्म ऐसे होने चाहिए की हम जहाँ भी चलें, 
राह की कठिनाइयाँ स्वयं दूर हो जाएँ , डगर पर सफ़र सुहाना लगे"
बहुत कुछ बतला दिया "डगर" की इस तस्वीर ने ....सुन्दर "दर्शन" 
........सादर  
                                                 कौन कौन सी पोस्ट में दिए हैं हम टिपियाय।
                                                 होय दर्द दिमाग (घुटने) में  सुरता कछु नहि आय।।
जय जोहार ....... 

1 टिप्पणी:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

दिमाग के बने इलाज करा गौ, घेरी बेरी पिरावत रहिथे। :)