(1)
हे मातृ भूमि!
हे मातृ भूमि!
कर्णधारों ने है निभाया
बखूबी अपना पड़ोसी धर्म
मित्रता कायम रखने या
यूँ कहें; मित्रता दाखिल कराने
क्या क्या न किया इन्होंने,
कैसे हो सार्थक; जब समझे न
पड़ोसी इस धर्म का मर्म
रख मिज़ाज नित अपना गर्म
(2)
हे मातृ भूमि!
पड़ोसी की कायराना हरकत
लेती रहेगी कब तक
तेरे सपूतों की जान
कर लेते हैं "इति श्री" कहकर केवल
"कृत्य है निन्द्य"
"नहीं जायगा व्यर्थ बलिदान शहीदों का"
देश के बड़े बड़े मुखिया श्रीमान
(3)
हे मातृ भूमि!पड़ोसी नकारता गलती अपनी
फूँफकारता विषैले नाग की तरह
व्याकुल है, तेरी रक्षा में तैनात
प्रहरी के रक्तपान को
(4)
हे मातृ भूमि!
कब अवतरित होगी तेरी कोख से
आदि शक्ति!
कब अवतरित होंगे "आज़ाद"
"सरदार भगत" जैसे बलिदानी सपूत
कब होगा?
काम पिपासु वहशी दरिंदों का,
पड़ोसी के नापाक इरादों का नेस्तनाबूत
जय जोहार .........
7 टिप्पणियां:
ऐसी कराना हरकत पर बस बर्दाश्त नहीं किया जाएगा यही सुनने को मिलता है ....पर करते कुछ नहीं ।
कायराना हरकत है। इसका जवाब देना चाहिए।
बेशक! ये हरकत कायराना है... पहल कर रहे हैं, तो जवाब भी पायेंगे... बेहतरीन रचना के लिए आभार आपका...
कवि लक्ष्मण मस्तुरिया की पंक्तियाँ याद आ गईं-
अरे नाग तँय काट नहीं त
जी भर के फुँफकार तो रे
अरे बाघ तँय मार नहीं त
गरज गरज धुत्तकार तो रे
एक न एक दिन ए माटी के, पीरा रार मचाही रे
नरी कटाही बइरी मन के, नवा सुरुज फेर आही रे
कब तक सहता रहेगा भारत !!
राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और स्वार्थपरक सोच का खामियाजा है
बेहतरीन रचना
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