दारू
(1)
(1)
पीहीं दारू चाय कस, जब पाहीं तब जान।
पी लेहीं कँहु अकतहा, गिरहीं फेर उतान।।
गिरहीं फेर उतान, जघा के कहाँ ठिकाना।
बुढ़वा होय जवान, जान लौ मंद दिवाना।।
मारत हे सरकार, आदमी कइसे जीहीं।
आदत से लाचार, चाय कस दारू पीहीं।।
(2)
बेंचँय बेचावय बेचात हवै मरे जियो, जघा जघा दारू देख लव खुले आम जी ।
बंद होय कारोबार मंद के कहत माई,
करत विरोध दिन रात सुबह शाम जी।।
बेचे बर सरकार खुदे हवै तइयार,
एमा अब कइसे कब कसही लगाम जी।
पीहीं अउ पियाहीं घलो होली के तिहार मा गा,
परय चुकाय बर चाहे कतको दाम जी।।
जय जोहार भाई..
सिंधिया नगर दुर्ग
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