(1)
हे माँ आदि शक्ति!
केवल स्वार्थवश
करता मानव तेरी भक्ति
साधना, अराधना
नौ दिन/रात का व्रत
उन सभी बुराइयों का
त्याग नहीं; दमन कर।
(2)
समापन होते ही "नवरात्रि" का
अंग प्रत्यंग हो जाते हैं
क्रियाशील
अपनी अपनी आवश्यकताएं
पूरी करने की फ़िराक में।
(3)
लपलपाने लगती है जीभ
नाना प्रकार के व्यंजनों
खाद्यपदार्थों को देख
लालायित है नासिका
मादक महक पान को।
(4)
"मनसिज डालता" डोरे
मिट जाता माता का स्वरूप
मन मस्तिष्क से
बन जाती पराई नार
केवल और केवल भोग्या।
(5)
सुनाई पड़ती चीत्कार
हो चुकी होती है कोई अबला
दरिंदों की शिकार
करता वह जी भर के
शारीरिक शोषण
या कहें बलात्कार।
(6)
माँ कब सुनेंगी आप
इनकी अबलाओं की पुकार
कब करेंगी इनमे शक्ति का संचार
कब मिटेगा व्यभिचार
कब बंद होगा अत्याचार ???
जय जोहार ...........
2 टिप्पणियां:
नारी हो न निराश करो मन को - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
अति सुन्दर लिखा है..
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