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रविवार, 10 अगस्त 2014

सम्प्रदाय बनाम धर्म

 सम्प्रदाय बनाम धर्म
केवल पल भर के लिये, मन मे लायें भाव.
नाम 'धरम' हम क्यूं करें, दिल में गहरा घाव.
बात हमेशा मानिये, संप्रदाय नहि धर्म.
जीव जगत मे भोगता, करता जैसा कर्म.


व्यर्थ कट्टर पंथवाद को बढ़ावा देना छोड़ प्रत्येक संप्रदाय की अच्छाइयों का निचोड़ निकाल सत्कर्मों की ओर बढ़ें. हां भई सैकड़ों समाचार चैनल अपने व्यवयाय की वृद्धि के लिये, ऊपर से विरोधी अंदर से मित्र का संबंध रखने वालों, समाधान के बदले समस्या का स्वरूप विकराल करने वालों को बिठाना और स्थिति यहां तक पहुंचा देना कि बस अब दोनो मे वाक युद्ध से आगे हस्त शस्त्र संग्राम न चालू हो जाय ऐसा प्रतीत होने लगे, आवश्यक समझते हों तो बात अलग है.
 

लगती प्रश्नों की झड़ी.
नहि मिलती उत्तर की कड़ी.
एक से पूछा जाता उत्तर
दूजा सोच से पाता इत्तर.
हो जाता वह भी शुरू
इतने से काम न चलता गुरू
चालू हो जाते सब के सब
मिल जातीं आवाजें,
कछु समझ न आये
कहता प्रश्नकर्ता नहि समय है अब....

कोई ये क्यूं नही समझता समझाता कि बिना किसी को नुकसान पहुंचाये, अपने अपने पथ पर चलें क्योंकि दावे के साथ कहा जा सकता है कि धर्म तो केवल एक है और वह है, इंसानियत, मानव धर्म...
जय जोहार...

1 टिप्पणी:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

लोग जब सम्प्रदाय को धर्म समझने लगते है तो सारी समस्याएं यहीं से प्रारंभ होने लगती है। धर्म को धर्म और सम्प्रदाय को सम्प्रदाय समझे से लगभग उलझने एवं समस्याएं मिट जाएगी।