दुर्ग जिला हिंदी साहित्य समिति द्वारा सराहनीय प्रयास जारी है; छत्तीसगढ़ महतारी के सपूतों की प्रतिभा को उकेरने के लिये. इस कार्य के लिये समिति के अध्यक्ष आदरणीय डॉ. संजय दानी जी, भाई संजीव तिवारी जी व समिति के समस्त पदाधिकारीगण को तहे दिल से बधाई देता हूँ. धन्यवाद देता हूँ.
क्रमशः इस सोशियल मीडिया पर अपनी काव्यांजलि प्रस्तुत करने के लिये साहित्यकारों को नामित किया जा रहा है. न केवल नामित किया जा रहा है वरन नामितों से भी अनुरोध किया जा रहा है कि वे भी अपने समीप के प्रतिभावानों को अपनी रचना यहाँ प्रस्तुत करने हेतु नामित करें. बहुत ही प्रशंसनीय कार्य है. एक श्रृंखला बन गई है. आज आदरणीय अरुण निगम भैया द्वारा अपने सुंदर गज़ल प्रस्तुतीकरण के साथ फेसबुक के इस सदस्य को भी नामित किया गया है. आदरणीय अरुण भैया को बहुत बहुत धन्यवाद व आभार. मुझे उनसे प्रोत्साहन व मार्ग दर्शन सदैव प्राप्त होते रहता है. मगर अपने आप को अभी तक इस काबिल नहीं बना पाया हूँ कि साहित्यकार कहलाऊँ. बतौर प्रयास क्षेत्रीय बोली अपनी बोली छत्तीसगढ़ी में चंद पंक्तियाँ प्रस्तुत करते हुये दुर्ग के साहित्य साधक व साहित्य सेवक आदरणीय संजीव भाई को अपनी रचना प्रस्तुत करने हेतु नामित करता हूँ.
भेद तभो कर डारथन, हम बिन सोच विचार.
बेटी घर जब जनम लै, ददा दाइ अकुलाय.
बेटा मारै लात तौ, बेटी सुरता आय.
जाने बात त आय इही, बेटी पराया धन.
आत बिदाई के घड़ी, होथे ब्याकुल मन.
बेटा बर उहि दई ददा, बढ़ चढ़ के इतरांय.
दाई कभू बेटी रिहिस, काबर याद न आय.
तैं बाबू के दाइ ओ, बन गे हस अब सास.
बाढ़ गे हे तोर ओहदा, बन गे हस तैं खास.
कर खियाल ओ दिन तंहू, घुसरे तैं ससुरार.
नवा बहुरिया सास संग, कतका मिलिस बिचार.
बर बिहाव तो आय जी, जिनगी के संस्कार.
निभै निभावै प्रेम से, रख हिरदे मा प्यार.
जय जोहार....
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