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रविवार, 4 सितंबर 2016

विदाई(1)

प्रभुजी की माया, पाते काया, मानुस के हम, रूप धरे।
कर वक्त न जाया, अवसर पाया, परहित के कुछ, काज सरे।।
जब क्षण वह आता, प्रान गँवाता, देत विदाई, रोय सभी।
मरता दुष्कर्मी, दुष्ट अधर्मी, दुख सचमुच ना होय कभी।।

विदाई (2)

हे जगत विधाता, हे जग त्राता, रिश्ता नाता, तँही गढ़े।
सुख दुख सिखलाये, प्यार जगाये, सँग मा गुस्सा घलो मढ़े।।
घर घर के किस्सा, सबके हिस्सा, सुख दुख दूनो संग चलै।
ये घड़ी विदाई, बड़ दुखदाई, पीर जुदाई खूब खलै।।

जय जोहार।…॥
सूर्यकांत गुप्ता
सिंधिया नगर दुर्ग (छ.ग.)